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कौशल विकास घोटाला मामला: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को रद्द करने की चंद्रबाबू की याचिका को बड़ी पीठ को भेजा

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 16, 2024, 3:03 PM IST

Updated : Jan 16, 2024, 3:33 PM IST

कौशल विकास घोटाले में उनके खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग करने वाली आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच बंट गई. मामला अब भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा जाएगा और तीसरे न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा. पढ़ें ईटीवी भारत के सुमित सक्सेना की रिपोर्ट...

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया, जिसमें कथित कौशल विकास घोटाला मामले में उनके खिलाफ दायर भ्रष्टाचार के मामले को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. मामला अब धारा 17ए की प्रयोज्यता पर एक बड़ी पीठ गठित करने के लिए सीजेआई के पास भेजा गया है, जो किसी लोक सेवक की जांच से पहले पूर्व अनुमोदन को अनिवार्य करता है.

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने भ्रष्टाचार निवारण (पीसी) अधिनियम की धारा 17ए की प्रयोज्यता पर मतभेद व्यक्त किया. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि मामले को बड़ी बेंच के पास भेजना होगा. जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ पीसी अधिनियम के तहत 13(1)(सी), 13(1)(डी) और 13(2) के तहत अपराधों के लिए कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि संबंधित प्राधिकारी की कोई पूर्व मंजूरी प्राप्त नहीं की गई है.

न्यायमूर्ति बोस ने रिमांड आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि मंजूरी के अभाव में रिमांड आदेश रद्द नहीं होगा. न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने कहा कि उनका दृष्टिकोण अलग है. न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि कानून को पूर्वव्यापी रूप से तब तक लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया हो और साल 2018 का संशोधन केवल निर्दिष्ट तिथि से प्रभावी बनाया गया था, इसे पूर्वव्यापी या पूर्वव्यापी नहीं बनाया जा सकता है.

दो-न्यायाधीशों की पीठ ने धारा 17ए की प्रयोज्यता पर एक बड़ी पीठ गठित करने के लिए मामले को प्रशासनिक पक्ष से भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया है, जो एक लोक सेवक की जांच से पहले पूर्व अनुमोदन को अनिवार्य करता है. हालांकि, दोनों न्यायाधीश इस मुद्दे पर सहमत हुए कि रिमांड आदेश में कोई खामियां नहीं थीं, क्योंकि नायडू पर आईपीसी के तहत अपराध का भी आरोप लगाया गया था.

शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के 22 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ टीडीपी प्रमुख द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया गया था. नायडू ने कौशल विकास केंद्रों की स्थापना में 3,300 करोड़ रुपये के घोटाले के संबंध में उनकी गिरफ्तारी और प्राथमिकी दर्ज करने पर सवाल उठाया था.

नायडू का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, सिद्धार्थ लूथरा, दम्मलपति श्रीनिवास, प्रमोद कुमार दुबे और सिद्धार्थ अग्रवाल ने किया. आंध्र प्रदेश सरकार का नेतृत्व वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, रंजीत कुमार, जयदीप गुप्ता और एस निरंजन रेड्डी सहित अन्य ने किया. नियादु की याचिका में राज्य भर में कौशल विकास केंद्र स्थापित करने से संबंधित अपराध जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा दर्ज 2021 एफआईआर में 8 सितंबर, 2022 को उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी.

हाई कोर्ट ने कौशल विकास केंद्र स्थापित करने से जुड़े मामले में 9 दिसंबर 2021 को दर्ज एफआईआर और उनकी न्यायिक रिमांड के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था. पिछले साल नवंबर में नायडू को नियमित जमानत दी गई थी.

Last Updated :Jan 16, 2024, 3:33 PM IST
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