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सामना के संपादकीय में शिवसेना ने प्रियंका गांधी को लेकर भाजपा सरकार पर निशाना साधा

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Published : Oct 6, 2021, 12:03 PM IST

सामना के संपादकीय
सामना के संपादकीय

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लखीमपुर खीरी की घटना के बाद प्रियंका गांधी को गिरफ्तार करने और उन्हें नजरबंद करने को लेकर भाजपा सरकार पर निशाना साधा है. साथ ही कहा है कि उन्हें जिस स्थान पर रखा गया था वह भी गंदा था जिसका वीडियो आने के बाद देश की बदनामी हो रही है.

मुंबई : शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में भाजपा सरकार को लेकर सवाल उठाया है. सामना में शिवसेना ने लिखा है कि प्रियंका गांधी को योगी सरकार ने आखिरकार गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 36 घंटे से उन्हें सीतापुर में नजरबंद रखा गया है. साथ ही जिस जगह पर प्रियंका गांधी को नजरबंद रखा गया है, उस जगह की प्रियंका को खुद सफाई करनी पड़ रही है. हाथ में झाड़ू लेकर कचरा साफ करने का प्रियंका का एक वीडियो वायरल होने से देश की बदनामी हो रही है.

संपादकीय में लिखा है प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव होने के कारण उन पर राजनीतिक हमले हो सकते हैं. इसके अलावा वो देश के लिए त्याग करने वाली व पाकिस्तान के टुकड़े करके हिंदुस्तान के विभाजन का बदला लेनेवाली इंदिरा गांधी की 'पोती' हैं. इसका प्रियंका को अवैध ढंग से कैद करनेवालों को ध्यान रखना चाहिए था. संपादकीय में लिखा है कि प्रियंका गांधी ने मोदी सरकार से ‘मेरा अपराध क्या है? किसी भी वारंट के बगैर, एफआईआर के बिना मुझे क्यों बंद किया गया है? किसानों पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना हमारे देश में गुनाह हो गया है क्या?’ आदि सवाल पूछे हैं. पत्र में कहा गया है कि प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी में कुचलकर मारे गए किसानों के परिजनों से मिलने के लिए जा रहीं थीं, ऐसे में प्रशासन ने प्रियंका को सिर्फ रोका ही नहीं बल्कि उन्हें जबरन गाड़ी में बैठा दिया गया.

सामना ने संपादकीय में लिखा है कि प्रियंका गांधी जुझारू हैं. उनकी आंखों में और आवाज में इंदिरा की धार है. सीतापुर जेल से भी उन्होंने संघर्ष जारी रखा है. पत्र ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश के किसानों के हत्याकांड पर दुनिया भर में प्रतिसाद देखने को मिल रहा है. लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री के बेटे ने किसानों के हत्याकांड को अंजाम दिया. उस मंत्री पुत्र को बचाने का प्रयास योगी की पुलिस ने किया. ‘वह मैं नहीं था, मैं वहां था ही नहीं.’ ऐसा बहाना मंत्री पुत्र ने बनाया, परंतु अब किसानों के बीच गाड़ी घुसाने का वीडियो सामने आया है इसलिए सरकार क्या करेगी? यदि ऐसी घटना प. बंगाल, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल में हुई होती तो उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे के लिए भाजपा द्वारा देश भर में आंदोलन का आह्वान किया गया होता.

साथ ही पत्र ने लिखा है कि प्रियंका गांधी को जिस तरह से अपमानित किया गया, ऐसा भाजपा महिला कार्यकर्ताओं के साथ हुआ होता तो महाराष्ट्र की भाजपा महिलाओं की फौज सड़क पर उतर गई होती. महिलाओं पर अत्याचार की अलग व्याख्या भाजपा द्वारा की गई है. उस व्याख्या में इंदिरा गांधी की पोती पर हुआ हमला नहीं बैठता है. वहीं लखीमपुर खीरी जाने से छत्तीसगढ़, पंजाब के मुख्यमंत्रियों को भी योगी सरकार ने रोका है. पत्र ने सवाल उठाया है कि ये हिंदुस्थान-पाकिस्तान युद्ध हो रहा है क्या? हमारे देश के दो मुख्यमंत्रियों को लखनऊ में उतरने से रोका जाता है. यह संघीय राज्य की अजीबोगरीब घटना है. लोकतंत्र का इस तरह से गला आपातकाल के दौरान भी कभी नहीं घोंटा गया था.

लखीमपुर की लड़ाई राजनीतिक न होकर दुनियाभर के किसानों, मेहनतकशों के अधिकार की बन गई है. अंग्रेजों के दौर में लाला लाजपत राय किसानों के नेता के रूप में अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ सड़क पर उतरे थे. उन पर अंग्रेजों ने नृशंस हमला किया. उसी वजह से लाला जी की मौत हो गई थी. वहीं जलियांवाला बाग में किसानों पर गोलियां चलानेवाला जनरल डायर अंग्रेज था. मुंबई में विदेशी कपड़ों के विरोध में आंदोलन करनेवाले बाबू गेनू के शरीर पर ट्रक चढ़ानेवाला भी अंग्रेज था, परंतु लखीमपुर में अपने हक के लिए आवाज उठानेवाले किसानों पर तेज रफ्तार गाड़ी चढ़ाने वाला स्वतंत्र हिंदुस्थान के केंद्रीय मंत्री का पुत्र है. स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में यह सब हुआ है. किसानों ने देश की आजादी में अनमोल सहयोग दिया था. सरदार पटेल के नेतृत्व में ‘बारडोली सत्याग्रह’ किया गया. यह किसानों को कुचलकर मारनेवालों को समझ लेना चाहिए. गांधी जी द्वारा नमक से परदेशी कपड़ों तक किए गए आंदोलन किसानों के ही बलिदान के कारण सफल हुए.

संपादकीय में कहा गया है कि देश की आजादी के लिए किसानों के बच्चे शहीद हुए व आज देश की सीमा पर भी किसानों के ही बच्चे मर रहे हैं. उन जवानों के परिजनों पर तेज रफ्तार गाड़ी चढ़ाकर मारने का पाप सरकार कर रही होगी तो ‘देश खतरे में है!’ ऐसा मानना ही होगा. किसानों को क्या चाहिए? तीन कृषि कानूनों पर पुनर्विचार किया जाए ऐसा उन्हें लगता है, परंतु सरकार सुनने को तैयार नहीं है. केंद्र सरकार को कृषि का निजीकरण करके पसंदीदा उद्योगपतियों को देश की कृषि भूमि देनी है. सभी सरकारी संपत्तियां निजी लोगों को बेचने के बाद अब कृषि भूमि की नीलामी शुरू हो गई है. इन मनमानी के खिलाफ किसान खड़ा हो गया है. प्रधानमंत्री मोदी को किसानों की बात सुननी चाहिए. कानून जनता के लिए बनाए जाते हैं. जनता कानून के लिए जन्म नहीं लेती है. कानून तोड़कर कानून का उल्लंघन करके ही गांधी जी ने स्वतंत्रता के आंदोलन को भड़काया, इसे भूलें नहीं. प्रियंका गांधी की लड़ाई किसानों के न्याय-अधिकार के लिए ही जारी है. उन्हें गिरफ्तार करके उनकी आवाज और किसानों के आक्रोश को दबा दिया जाएगा, ऐसा सरकार को लगता होगा तो वे भ्रम में हैं. उनके इस भ्रम का कद्दू कल फूटे बिना नहीं रहेगा. देश का निजीकरण शुरू हो गया है. नई ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में देश को सौंपा न जाए, इसलिए संघर्ष करनेवाले किसानों को कुचलकर मारनेवाली सरकार पर धिक्कार है!

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