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Joshimath Landslide: इस मॉडल को अपनाकर भू-धंसाव से बच सकेंगे जोशीमठ जैसे संवेदनशील शहर, जानें पूरा प्लॉन

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 25, 2023, 6:47 PM IST

Updated : Aug 25, 2023, 8:14 PM IST

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Satellite Town Model Help For Landslide जोशीमठ समेत अन्य शहरों को भू धंसाव जैसी घटना से सैटेलाइट टाउन मॉडल बचाएगा. जोशीमठ व्यापार की दृष्टि से अहम है, इसलिए यहां पर छोटे-छोटे सैटेलाइट टाउन बनाकर भविष्य में होने वाले खतरे को टाला जा सकता है. पढ़ें पूरी खबर- Joshimath Land Subsidence

भू धंसाव से बच सकेंगे जोशीमठ जैसे संवेदनशील शहर

देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ में हुई भू-धंसाव जैसी घटना प्रदेश के अन्य कई शहरों में भी देखी जा रही है, जिससे उत्तराखंड सरकार कई शहरों की भूमि क्षमता का सर्वे करवा रही है, ताकि इस बात की जानकारी हो सके कि कौन-कौन से ऐसे शहर हैं, जहां क्षमता से अधिक बसावट हो चुकी है. जोशीमठ में हुई घटना के बाद से ही प्रदेश के तमाम शहरों में सर्वे अभियान शुरू किया गया. जोशीमठ की घटना की मुख्य वजह सामने आने के बाद अब देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट इस बात पर जोर दे रहा है कि जोशीमठ और जोशीमठ जैसे शहरों को भविष्य के खतरों से बचाने के लिए सैटेलाइट टाउन मॉडल को अपनाना चाहिए.

Satellite Town Model Help For Landslide
जोशीमठ समेत अन्य शहरों को सैटेलाइट टाउन मॉडल बचाएगा

जोशीमठ एक अहम पड़ाव: सैटेलाइट टाउन मॉडल के तहत जोशीमठ और जोशीमठ जैसे जो संवेदनशील क्षेत्र हैं, उन क्षेत्रों में छोटे-छोटे टाउन बनाकर भू-धंसाव की घटनाओं से बचा जा सकता है. मुख्य रूप से जोशीमठ चारधाम यात्रा और धार्मिक दृष्टि से भी एक अहम पड़ाव है, जिसके चलते स्थानीय लोगों के लिए यह शहर रोजगार का एक बेहतर साधन भी है. ऐसे में अगर इतनी अधिक घनत्व की बजाय सैटेलाइट टाउन मॉडल को छोटा-छोटा टाउन बनाकर और थोड़ा डिस्टेंस मेंटेन करते हुए विकसित किया जाता है, तो उससे लोगों का व्यापार भी चलेगा और भू धंसाव की घटनाओं से निजात मिलेगी.

Satellite Town Model Help For Landslide
सैटेलाइट टाउन मॉडल को अपनाना जरूरी

भविष्य के खतरे से बचा सकता है सैटेलाइट टाउन मॉडल: वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. काला चंद्र साईं ने कहा कि अलग- अलग क्षेत्र की क्षमता अलग-अलग है. जोशीमठ शहर में जो दरारें आई हैं, उस क्षेत्र में भी भार को वहन करने की क्षमता अलग हैं. जोशीमठ क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है. ऐसे में इस तरह के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सैटेलाइट टाउन मॉडल बनाना चाहिए. उन्होंने बताया कि जोशीमठ शहर बिजनेस प्वाइंट से काफी अहम है, क्योंकि तमाम पर्यटक और धार्मिक स्थलों तक पहुंचने का एक मात्र गेटवे है. यही वजह है कि थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सैटेलाइट टाउन बना सकते हैं, जिससे भविष्य के खतरों से बचा जा सकता है.

शहर लैंडस्लाइड के मलबे पर बसा जोशीमठ: डॉ. काला चंद्र साईं ने कहा कि जोशीमठ में हुए भू-धंसाव को लेकर पहले भी सर्वे किया गया था और वर्तमान में भी सर्वे किया जा रहा है. हालांकि, लैंड सब्सिडेंस और क्रेक डेवलपमेंट की समस्या आई थी. स्टडी में पता चला कि इस समस्या के लिए कोई एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं है, बल्कि कई फैक्टर जिम्मेदार हैं-

  1. पहला फैक्टर ये कि शहर लैंडस्लाइड के मलबे पर बसा हुआ है.
  2. दूसरा फैक्टर साल 2021 में आई आपदा की वजह से जो भूमि कटान हुआ था. जिससे दरारें बढ़ने लगी थी.
  3. तीसरा फैक्टर और मुख्य फैक्टर जोशीमठ के सरफेस ग्राउंड वाटर में इनबैलेंस के चलते क्रैक्स डेवलप होने लगे थे.

वाडिया इंस्टीट्यूट ने चार क्षेत्रों में किया भूस्खलन की संवेदनशीलता का सर्वे: उत्तराखंड के तमाम क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं, जिसको देखते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने मसूरी, नैनीताल, भागीरथी वैली और गौरीगंगा वैली का सर्वे कर इन क्षेत्रों में भूस्खलन की संवेदनशीलता, वल्नेरेबिलिटी और खतरे (Landslides Susceptibility, Vulnerability and Risk) का मैप जारी किया है. हालांकि, मैप में इन क्षेत्रों में भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को अंकित किया गया है. कुल मिलाकर, अगर इन क्षेत्रों पर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में गंभीर समस्या खड़ी कर सकती है.

भू धंसाव के कारण 863 भवनों में दरारें चिन्हित की गई: जनवरी 2023 में जोशीमठ में भू-धंसाव की घटना बढ़ी. इसके कारण कई घरों में दरारें आ गई थी. हर बीतते दिन के साथ जोशीमठ शहर में दरारों की चपेट में आने वाले मकानों की संख्या बढ़ती गई. तब जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू धंसाव के कारण 863 भवनों में दरारें चिन्हित की गई. इसमें से 181 भवन असुरक्षित जोन में थे. आपदा प्रभावित 282 परिवारों के 947 सदस्यों को तब राहत शिविरों में ठहराया गया है. इस दौरान जोशीमठ भू धंसाव के मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरी थी.
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2006 की वाडिया की रिपोर्ट: वाडिया इंस्टीट्यूट की साल 2006 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसने इस बात की पुष्टि की गई थी कि अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम लगातार जोशीमठ और विष्णुप्रयाग के पहाड़ों को काट रहा है. जिसे बेहद गंभीर माना गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि इस कटाव की वजह से पहाड़ का दवाब नीचे की ओर हो रहा है. यही वजह है कि लगातार इस क्षेत्र में भूस्खलन होता रहेगा. अब इसके ट्रीटमेंट के लिए खास तरह की एक वॉल बनाने की आवश्यकता है. नदियों से शहर को बचाने के लिए रिटेनिंग वॉल का निर्माण सर्वोत्तम माना जा रहा है. इसमें कई तरह की लेयर का इस्तेमाल किया जाता है. बताया जा रहा है कि इस वॉल के बनने से ना केवल शहर, बल्कि पहाड़ को भी काफी हद तक बचाया जा सकता है.
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Last Updated :Aug 25, 2023, 8:14 PM IST
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