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संयुक्त किसान मोर्चा एमएसपी और अग्निपथ योजना को लेकर 22 अगस्त को पंचायत करेगा

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Published : Jul 12, 2022, 10:20 PM IST

samyukt Kisan Morcha meeting new delhi
संयुक्त किसान मोर्चा बैठक नई दिल्ली

संयुक्त किसान मोर्चा ने नई दिल्ली में मंगलवार को बैठक की. इस दौरान 60 किसान संघों ने खुद को खुद को गैर-राजनीतिक संयुक्त किसान मोर्चा बताया जिसके बाद इसे देश के सबसे बड़े किसान संगठन के विभाजन के तौर पर देखा जा रहा है. बैठक में मोर्चे के मुद्दों में अग्निपथ योजना को शामिल किए जाने की घोषणा भी की गई.

नई दिल्ली: तीन कृषि कानूनों और एमएसपी गारंटी की मांग के खिलाफ संयुक्त विरोध प्रदर्शन करने के लिए गठित संयुक्त किसान मोर्चा अब सबको एक साथ रखने के लिए संघर्ष कर रहा है. मंगलवार को नई दिल्ली में 60 किसान संघों ने खुद को गैर-राजनीतिक संयुक्त किसान मोर्चा बताते हुए बैठक की. बैठक में दूसरे पक्ष, पर किसान नेता होने का दावा करने वाला राजनीतिक कार्यकर्ता होने का आरोप लगाया गया. वहीं मोर्चा ने यह घोषणा भी की है कि एमएसपी गारंटी, लखीमपुर खीरी पीड़ितों के लिए न्याय और किसानों की अन्य शेष मांगों को पूरा करने के लिए 22 अगस्त को जंतर मंतर पर 'किसान महापंचायत' का आयोजन करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि वह अग्निपथ योजना के मुद्दे को भी आंदोलन में शामिल करेंगे.

इस बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा के कोर कमेटी का हिस्सा रह चुके जगजीत सिंह दल्लेवाल और शिव कुमार शर्मा शामिल रहे, जिन्होंने किसान संगठनों और राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले नेताओं के साथ अपने अलगाव की घोषणा की थी. किसान नेताओं ने बैठक के बाद मीडिया को संबोधित किया जिसके दौरान उन्होंने घोषणा की कि वे लखीमपुर खीरी की घटना एमएसपी सहित अन्य किसान मुद्दों पर लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अपने समूह को किसी ऐसे संगठन से नहीं जोड़ेंगे जो राजनीतिक हो.

किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि वह और कई अन्य किसान संगठनों के नेता पंजाब चुनाव लड़ने वाले लोगों के खिलाफ थे और उन्होंने इस मुद्दे को आम मंच पर भी उठाया था. इसके बाद राजनीतिक रूप से जाने वाले 16 किसान संगठनों को संयुक्त किसान मोर्चा से निलंबित कर दिया गया था. उन्होंने बताया कि चुनाव लड़ने और हार का सामना करने के बाद, वह नेता फिर से संयुक्त किसान मोर्चा में बिना शर्त वापसी चाहते थे.

दल्लेवाल ने कहा, हम उनकी वापसी का विरोध कर रहे थे, लेकिन कई संगठनों की आवाज को नजरअंदाज करते हुए गाजियाबाद में 3 जुलाई की बैठक के बाद इन नेताओं का संयुक्त किसान मोर्चा में स्वागत किया गया. उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा को विभाजित करने से पहले, देशभर से 400 से अधिक किसान संघों ने समर्थन का दावा किया था. वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष और शिव कुमार कक्काजी ने कहा कि जब संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन को स्थगित करने घोषणा की थी तब वह प्रदर्शन को स्थगित करने के पक्ष में नहीं थे.

उन्होंने कहा कि हमारे सालभर के विरोध प्रदर्शन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करने के लिए मजबूर किया, लेकिन एमएसपी पर हमारी मांग अभी भी लंबित थी. उन्होंने आगे कहा कि अगर हम एक सप्ताह या दस दिन और सीमा पर रहे होते तो सरकार को एमएसपी गारंटी की मांग पर भी सहमत होना पड़ता. लेकिन कुछ नेताओं की राजनीतिक आकांक्षाएं थीं जिसके चलते हमें वापस जाना पड़ा जिसके कारण हमारा मुख्य मुद्दा अभी तक लंबित है. वास्तविक संयुक्त किसान मोर्चा होने का दावा करने हुए समूह ने यह भी कहा कि वे आंदोलन के साथ आगे बढ़ेंगे लेकिन भविष्य में राजनीतिक गुट का कभी सहयोग नहीं करेंगे.

संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) के अनुसार, योगेंद्र यादव, हनान मुल्ला, गुरनाम सिंह चादुनी, बलबीर सिंह राजेवाल और कई अन्य जैसे नेता राजनीतिक हस्तियां हैं जिन्हें संयुक्त किसान मोर्चा से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. समूह ने कहा कि जिस दिन संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया था, हमने तय किया था कि किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को न ही सभा को संबोधित करने के लिए मंच पर जगह दी जानी चाहिए और न ही उसे समूह में शामिल होने की अनुमति दी जानी चाहिए.

यह भी पढ़ें-गाजियाबाद में संयुक्त माेर्चा किसान की बैठक, इन मांगाें काे लेकर दी आंदाेलन की चेतावनी

बैठक में यह भी कहा गया कि यह सब तय होने के बावजूद, नेताओं ने आंदोलन पर कब्जा कर लिया और मंच का उपयोग करके अपना राजनीतिक स्कोर बनाने की कोशिश की. वहीं किस गुट को वास्तविक संयुक्त किसान मोर्चा मानने के सवाल का जवाब देते हुए किसान नेता ने कहा कि अराजनीतिक समूह ही असली संयुक्त किसान मोर्चा है क्योंकि इसके गठन के समय पहली बात यह स्पष्ट की गई थी कि किसान संगठन के समूह को गैर-राजनीतिक रहना चाहिए. इस बैठक के बाद आयोजित मीडिया संबोधन को देश में किसान संगठनों के सबसे बड़े समूह के विभाजन की औपचारिक घोषणा के रूप में माना जा रहा है, जिसने सरकार को तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया. वहीं बैठक पर दूसरे गुट के वरिष्ठ किसान नेताओं की प्रतिक्रिया आनी अभी बाकी है.

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