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हिमालयी ग्लेशियर्स की बिगड़ रही सेहत, तेजी से पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर, नदियों के अस्तित्व पर खड़ा हो सकता है संकट

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 19, 2023, 6:02 PM IST

Updated : Dec 20, 2023, 1:19 PM IST

Glacier in Uttarakhand
उत्तराखंड में ग्लेशियर

Threat of global warming on glaciers दुनियाभर की तरह ग्लोबल वार्मिंग का खतरा हिमालय पर भी दिख रहा है. यहां ग्लेशियर्स अपने इलाके से पीछे हट रहे हैं. जबकि बर्फबारी भी पिघलते ग्लेशियर्स की भरपाई नहीं कर पा रही है. जाहिर है कि इस स्थिति से आने वाले बड़े संकट का इशारा मिल रहा है. जिसको लेकर वैज्ञानिकों से लेकर सरकारें और सिस्टम लाचार हालात में हैं. इस स्पेशल रिपोर्ट में जानें वैज्ञानिकों ने क्या कहा.

हिमालयी ग्लेशियर्स की बिगड़ रही सेहत.

देहरादून (उत्तराखंड): दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग के कई असर दिखाई दे रहे हैं. इनमें से एक, ग्लेशियर्स की बिगड़ती सेहत भी है. खासतौर पर हिमालय इसके कारण तेजी से अपनी सेहत को खराब कर रहा है. बड़ी बात ये है कि कुछ एक ग्लेशियर्स को छोड़ दें तो सभी ग्लेशियर्स में मेल्टिंग दिनों दिन बढ़ती जा रही है. जाहिर है कि इससे हिमालय के ग्लेशियर्स और इससे निकलने वाली नदियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है.

हिमालय को देखें तो यहां करीब 34 हजार ग्लेशियर मौजूद हैं. इसी क्रम में भारतीय क्षेत्र में हिमालय करीब 10 हजार ग्लेशियर खुद में समेटे हुए हैं. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में ही करीब 980 से 1000 ग्लेशियर मौजूद हैं. वैज्ञानिक कहते हैं कि वैसे तो दुनिया भर के ग्लेशियर तेजी से पीछे खिसक रहे हैं और ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर ग्लेशियर पर हो रहा है. लेकिन हिमालय क्षेत्र में देखें तो काराकोरम ग्लेशियर के अलावा बाकी सभी जगह ग्लेशियर तुलनात्मक रूप से अधिक पिघल रहे हैं.

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक मनीष मेहता भी कुछ इसी बात की तस्दीक कर रहे हैं. वैज्ञानिक मानते हैं किसके पीछे कई वजह है. लेकिन इनमें ग्लोबल वार्मिंग सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण वजह है.

ग्लेशियर पिघलने के दो बड़े कारण: इस समय ग्लेशियर पर दोहरी मार पड़ रही है. एक तरफ वातावरण के गर्म होने से ग्लेशियर अधिक तापमान के कारण ज्यादा पिघल रहे हैं. जबकि दूसरी वजह ग्लेशियर को पर्याप्त मात्रा में बर्फबारी ना मिलना भी है. दुनिया भर में मौसमी चक्र बदलने के कारण मौसम में काफी बदलाव आया है. इस बदलाव ने हिमालय को भी बदल कर रख दिया है. हिमालय केवल एक पहाड़ नहीं है, बल्कि ये एक बड़े भूभाग के मौसमी चक्र को निर्धारित करता है. यहां के जीवन से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है. इस क्षेत्र में होने वाली बारिश, ठंडी हवाएं और सर्द मौसम तक में हिमालय अपनी अहम भूमिका निभाता है. साफ है कि हिमालय की ऊंची पहाड़ियां पश्चिमी हवाओं के संपर्क में आकर बारिश की स्थितियों को पैदा करती है.
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गंगोत्री ग्लेशियर की हालत विकट: उत्तराखंड में वैसे तो करीब 1000 ग्लेशियर हैं और अधिकतर तेजी से सिकुड़ रहे हैं. लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण गंगोत्री ग्लेशियर की स्थितियां बेहद ज्यादा विकट दिखाई देती है. साल 1937 से लेकर अब तक करीब 1.7 किलोमीटर गंगोत्री ग्लेशियर पीछे हट चुका है. इतना ही नहीं, हर साल करीब 19 मीटर की कमी इस ग्लेशियर में देखी जा रही है. गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर आंकड़े एक अध्ययन के दौरान सामने आए हैं जिससे भारत सरकार के मंत्रालय से लेकर तमाम वैज्ञानिकों में भी चिंता बढ़ा दी है.

पानी के संकट की तरफ बढ़ रही दुनिया: दुनिया में पीने के पानी को लेकर हिमालय को तीसरा सबसे बड़ा रिजर्व वायर माना जाता है. यही नहीं, ऐसी कई नदियां हैं जो सीधे तौर पर हिमालय पर ही निर्भर है और यहां के ग्लेशियर से निकलने वाला पानी ही इन नदियों में जल की मात्रा को पूरा करता है. इन नदियों पर करोड़ों लोगों का जीवन भी निर्भर करता है. वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यदि ग्लेशियर्स की सेहत बिगड़ रही है तो सीधे तौर पर दुनिया पानी के संकट की तरफ बढ़ रहा है.
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बर्फबारी में आई कमी: मौसम के बदलते रुख के कारण भी हिमालय के ग्लेशियर अपने स्वरूप को बदल रहे हैं. मौसम विभाग यह मानता है कि पिछले कुछ समय में तापमान में बढ़ोतरी हुई है. खासतौर पर सर्दियों के समय भी पहले के मुकाबले तापमान बढ़े हुए हैं. इतना ही नहीं, जिस मात्रा में बर्फबारी होनी चाहिए, उतनी बर्फबारी भी ऊंचे स्थानों पर नहीं देखने को मिल रही है. शायद यही कारण है कि इससे ग्लेशियर कमजोर पड़ रहे हैं और प्राकृतिक संतुलन भी गड़बड़ा रहा है.

बर्फबारी कम-ज्यादा होने से संतुलन बिगड़ रहा: वैज्ञानिकों के ही अध्ययन को देखें तो इस समय दुनिया कूलिंग पीरियड में है. यानी पृथ्वी का तापमान फिलहाल 14 डिग्री के आसपास माना गया है. जबकि सैकड़ों साल पहले पृथ्वी का तापमान 22 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंचा है. इसलिए मौजूदा समय को कूलिंग पीरियड के रूप में देखा जाता है. लेकिन यदि इस समय भी तापमान के बढ़ते हुए आंकड़े को रिकॉर्ड किया जा रहा है तो वह एक बड़ी चिंता का विषय है. वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड किया है कि किसी साल बर्फबारी की मात्रा काफी ज्यादा हो रही है तो कुछ ऊंचे स्थान पर बर्फबारी बेहद कम रिकॉर्ड की जा रही है.

झील बनने का खतरा भी: ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान से ग्लेशियर में एक नया खतरा झील बनने का भी है. तापमान बढ़ने के कारण कई ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और कई जगहों पर इसे झील बनने की भी जानकारी मिल रही है. हालांकि साल 2013 में केदारनाथ आपदा के बाद से ही हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर पर बनने वाली झीलों की निगरानी का प्रावधान रखा गया है. इसके लिए बकाया आपदा विभाग से लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट की टीम समय-समय पर हिमालय क्षेत्र में मौजूद ग्लेशियर पर बनने वाली झीलों का अध्ययन भी करते हैं.
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यानी साफ है, हिमालय में ग्लेशियर की सेहत बिगड़ी तो एक तरफ झील बनने से बड़ी तबाही का खतरा होने के साथ ही पानी का संकट और मौसम चक्र बदलने की चिंता भी बढ़ रही है. इस सबके बीच वैज्ञानिक तमाम आंकड़ों को पेश करते हुए आने वाले खतरों को लेकर आगाह भी कर रहे हैं.

Last Updated :Dec 20, 2023, 1:19 PM IST
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