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राज्य सभा से वापस हुआ जजों की सेवा और सैलरी से जुड़ा विधेयक

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Published : Dec 13, 2021, 2:59 PM IST

Updated : Dec 13, 2021, 7:01 PM IST

संसद के शीतकालीन सत्र (parliament winter session) का आज 11वां दिन है. राज्य सभा में हंगामे के कारण पहले तीन घंटे की कार्रवाई बाधित हुई. इसके बाद दोपहर दो बजे कार्यवाही शुरू होने के बाद राज्य सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा की गई. चर्चा के बाद कानून मंत्री ने विस्तृत जवाब दिया. जवाब देने के बाद विधेयक को वापस ले लिया गया.

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राज्य सभा में जजों से जुड़े विधेयक पर चर्चा

नई दिल्ली : राज्य सभा में कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju in Rajya Sabha) ने आज हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवा और सैलरी से जुड़ा संशोधन विधेयक पेश किया. 2021 का यह संशोधन विधेयक में लोक सभा से पहले ही पारित हो चुका है. विस्तार से चर्चा के बाद किरेन रिजिजू ने विधेयक पर चर्चा का जवाब दिया. जवाब के बाद विधेयक को वापस ले लिया गया.

राज्य सभा से वापस हुआ जजों की सेवा और सैलरी से जुड़ा विधेयक

किरेन रिजिजू ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए बिल पर सुझाव देने और समर्थन करने के लिए सांसदों का आभार प्रकट किया.

राज्य सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू का जवाब

इससे पहले दोपहर दो बजे सदन की कार्यवाही शुरू होने के बाद उपसभापति हरिवंश ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन बिल, 2021 पर चर्चा शुरू कराई. विधेयक पर चर्चा के दौरान विभिन्न दलों के सदस्यों ने देश की अदालतों विशेषकर निचली अदालतों में लाखों मामलों का अंबार लगे होने पर गहरी चिंता जताते हुए सरकार से कहा कि इनके शीघ्र निस्तारण के लिए समुचित कदम उठाये जाने चाहिए.

सांसदों ने कहा कि लोगों को समय पर न्याय पाने का अधिकार सुनिश्चित होना चाहिए. सदस्यों ने न्यायाधीशों के रिक्त पदों को शीघ्रता के आधार पर भरे जाने की जरूरत पर भी बल दिया.

राज्य सभा में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा

कांग्रेस की अमी याज्ञिक ने उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 पर उच्च सदन में हुयी चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि आज देश में लाखों मुकदमे लंबित पड़े हैं, विशेषकर निचली अदालतों में. देश के कारागारों में हजारों लोग विचाराधीन कैदी के रूप में बंद हैं क्योंकि उनके मामलों की सुनवाई अदालत में काफी समय से लंबित है.

उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस बात की ओर सदन का ध्यान दिलाया जिसमें उन्होंने कहा कि न्याय ही सत्य है और हर व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि वह अदालतों में मामलों के अंबार के बारे में क्या सोचती है? उन्होंने सरकार से सवाल किया कि न्यायपालिका में विभिन्न स्तरों पर न्यायाधीशों की जो कमी है, उसे दूर करने के लिए वह क्या कर रही है.

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवा और सैलरी से जुड़े विधेयक पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद एमी याज्ञिक का बयान

कांग्रेस सदस्य ने कहा कि सदन में जहां न्यायपालिका और न्याय की बात हो रही है, 'वहीं हमारे 12 निलंबित सदस्य धरना दे रहे हैं.' उन्होंने कहा कि ऐसे में न्याय पर चर्चा करना समुचित होगा?

उल्लेखनीय है कि पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित किए जाने के बाद 12 विपक्षी सदस्य संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष धरना दे रहे हैं. इनका धरना प्रतिदिन सदन शुरू होने से सदन की बैठक स्थगित होने तक चलता है.

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की आयु में ढील दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश काफी अनुभवी होते हैं. उनकी सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाया जाना चाहिए. कांग्रेस सदस्य ने आरोप लगाया कि कानून मंत्रालय इन मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं देता.

याज्ञिक ने कहा कि उन्हें मौजूदा संशोधन विधेयक पर कोई आपत्ति नहीं है और इसके प्रावधानों को लागू होना चाहिए. उन्होंने कहा कि न्याय का मतलब गरिमा प्रदान करना होता है. उन्होंने कहा कि जब जिला अदालतों में बुनियादी ढांचा भी नहीं हो, मामलों का अंबार लगा हो, न्यायाधीशों की कमी हो तो ऐसे में न्याय से गरिमा कैसे प्रदान की जा सकती है.

भाजपा के रामकुमार वर्मा ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि देश की विभिन्न अदालतों में साढ़े चार करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. उन्होंने कहा कि देर से न्याय मिलने का अर्थ है, न्याय से वंचित करना. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान को नमन कर समाज के पिछड़े और गरीब वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाने के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता व्यक्त की थी. उन्होंने कहा कि डिजिटल माध्यम पर जोर देकर मोदी सरकार ने समाज के पिछड़े वर्ग को सामाजिक न्याय एवं आर्थिक न्याय प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कहा कि इसमें धर्म का कोई भेदभाव नहीं किया गया.

द्रमुक के पी विलसन ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि उच्च न्यायालयों में करीब 57 लाख मामले और उच्चतम न्यायालय में करीब 75 हजार मामले लंबित हैं. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन सहित कई देशों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष से अधिक है. उन्होंने कहा कि भारत में भी न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़नी चाहिए.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायापालिका में न्यायाधीशों में अनुसचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्यों तथा महिलाओं की काफी कमी है. उन्होंने कहा कि आज तक भारत में कोई एसटी प्रधान न्यायाधीश नहीं बन पाया है.

विलसन ने कहा कि सरकार को संविधान संशोधन लाकर न्यायापालिका में विविधता के जरिए सामाजिक न्याय सुनिनिश्चत करना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व मिल सके. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ गठित करनी चाहिए तथा संसद की स्थायी समिति ने भी इस सुझाव का समर्थन किया है.

समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव ने कहा 'अदालतों में मामले लंबित होने का कारण यह है कि न्यायाधीशों और वकीलों दोनों का ध्यान शीघ्र सुनवाई के बजाय जनहित याचिकाओं, रिट याचिकाओं पर अधिक रहता है.' उन्होंने कहा कि न्यायाधीश मामले की सुनवाई पूरी कर लेते हैं लेकिन फैसला सुरक्षित रख लेते हैं. उन्होंने कहा,'यह फैसला छह छह माह तक सुरक्षित रखा जाता है. ऐसा क्यों ?'

यादव ने कहा 'उच्च अदालतों में दलित वर्गों और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व और न्यायाधीशों द्वारा दी गई व्यवस्था की समुचित व्याख्या बहुत जरूरी है.' उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार उच्चतम न्यायालय ने अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने कहा 'हम न्यायपालिका के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन इस संबंध में समीक्षा कर न्यायिक जवाबदेही पर एक विधेयक लाना चाहिए. इसे उच्चतम न्यायालय रद्द कर चुका है. यह विधेयक दोबारा लाया जाना चाहिए.'

जदयू के रामनाथ ठाकुर ने कहा 'एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए कि उच्च न्यायालय, जिला अदालत, सत्र अदालतें एक तय समय में फैसला सुना दें. इसी तरह लंबित मामलों के निवारण के लिए भी समय सीमा तय होना चाहिए.'

उन्होंने मांग की कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं की स्थापना होना चाहिए, सभी अदालतों में फैसला हिंदी में सुनाया जाना चाहिए, जेलों में लंबे समय से बंद करीब 39,000 विचाराधीन कैदियों की रिहाई होना चाहिए. उन्होंने कहा 'अदालतों में गोली चलना, बम विस्फोट होना अत्यंत चिंताजनक है, इस पर कोई व्यवस्था तत्काल आनी चाहिए. जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. वहां जगह न होने की वजह से तीन तीन शिफ्ट में सोने की व्यवस्था होती है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों और अधीनस्थ कर्मचारियों की संख्या कम है जिसके लिए नियुक्तियां की जानी चाहिए. ठाकुर ने मांग की कि न्यायपालिका में भी आरक्षण व्यवस्था होनी चाहिए तब ही सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो पाएगा.

राष्ट्रीय जनता दल के प्रो मनोज झा ने कहा 'कहा जाता है कि न्यायपालिका को अपने अधिकार क्षेत्र का ध्यान रखना चाहिए. इसी तरह कार्यपालिका को भी अपने अधिकार क्षेत्र का ध्यान रखना चाहिए. न्याय मिलने में विलंब का संबंध कहीं न कहीं इससे जुड़ता है.' उन्होंने कहा 'दस तारीख को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया गया. यह दिन हमें याद दिलाता है कि मानवाधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. लेकिन हमें सोचना होगा कि क्या वास्तव में ऐसा होता है ?'

प्रो झा ने 'कॉलेजियम प्रणाली' में बदलाव की मांग की. उन्होंने कहा 'विचाराधीन कैदियों में 75 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यकों की और पिछड़े वर्ग के लोगों की है और इन लोगों को जेलों में लंबा समय हो गया है. यह कैसी व्यवस्था है? हमें इस पर ध्यान देना होगा.' उन्होंने बिहार के पूर्णिया जिले में उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित किए जाने की मांग की.

बता दें कि कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने 30 नवंबर, 2021 को लोकसभा में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्त) संशोधन बिल, 2021 को पेश किया था. बाद में 8 दिसंबर को यह विधेयक पारित हो गया.

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उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) संशोधन विधेयक, 2021 (The High Court and Supreme Court Judges (Salaries and Conditions of Service) Amendment Bill, 2021) उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के वेतन अधिनियम में संशोधन करेगा.

Last Updated : Dec 13, 2021, 7:01 PM IST
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