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बनारस से सटीं पूर्वांचल की ये सीटें बदल देती हैं सियासत का समीकरण

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Published : Jan 19, 2022, 10:18 PM IST

पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बनारस माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से सटी ये सीटें चुनावी समीकरण बदलने का माद्दा रखती हैं. चलिए जानते हैं इनके बारे में.

purvanchal election
पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बनारस माना जाता है.

वाराणसी : यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक की हर विधानसभा सीट पर पार्टियों की पैनी नजर हैं. यूपी चुनाव में पूर्वांचल की कई सीटें समीकरण बदलने का माद्दा रखतीं हैं.पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से जुड़े दस जिलों की सीटें चुनाव परिणाम आखिरी समय में बदल सकतीं हैं. 2012 के चुनाव में जिस तरह से चुनावी गणित पहले सपा और भाजपा के पक्ष में आया वह साफ करता है कि आने वाले चुनावों में बनारस से सटे कई जिलों की विधानसभा सीटें किसी भी पार्टी को यूपी की सत्ता तक पहुंचा सकती हैं.

दरअसल 2017 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने यूपी की अधिकांश विधानसभा सीटों पर अपना कब्जा जमाया. उसने समाजवादी पार्टी की साइकिल को ना सिर्फ पीछे छोड़ दिया बल्कि बाकी दलों को काफी पीछे छोड़ दिया. यह हाल तब था जब 2012 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने यूपी समेत पूर्वांचल के कई जिलों में शानदार प्रदर्शन किया था. अकेले बनारस की जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, चंदौली, सोनभद्र, आजमगढ़, मऊ और भदोही समेत बनारस से सटे कुल 10 जिलों की लगभग 61 विधानसभा सीटों में से 41 विधानसभा सीटें अकेले जीतकर सरकार बना ली, लेकिन 2017 में हालात ऐसे बदले की समाजवादी पार्टी पिछड़ गई.

पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बनारस माना जाता है.

2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 41 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी यूपी में बनकर सामने आई थी. उस वक्त देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने साख बचाने का काम किया. 2017 के चुनावों में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी. वहीं, 2017 के चुनावों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल को साथ लेकर भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने पूर्वांचल की इन लगभग 10 जिलों की 61 सीटों में से 41 सीटों पर जीत हासिल कर ली.

हालात ये थे कि 2012 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इन जिलों से महज तीन सीटें ही जीत पाने में सफलता पाई थी. जिसकी वजह से हालात बिगड़ गए थे, लेकिन 2017 में गठबंधन के साथ छोटे दलों को साथ लेकर बीजेपी ने बड़ी सफलता हासिल की थी, लेकिन इस बार ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से दूरी बनाकर अखिलेश का दामन थामा है और अपना दल की नाराजगी भी बीजेपी को कहीं ना कहीं से चिंता में डाले हुई है.

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इस बार के हालात क्या होंगे यह तो आने वाला वक्त बताएगा, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनावों में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अपने दम पर सिर्फ तीन सीट हासिल कर पाई थी और इस बार हालात क्या होते हैं और फायदा किसको पहुंचता है तो पहले चरण के चुनाव के बाद धीरे-धीरे साफ भी होने लगेगा.

61 सीटों का तुलनात्मक अध्ययन
भारतीय जनता पार्टी 2012 में 4 सीटें और 2017 में 34 सीटें आईं. समाजवादी पार्टी ने 2012 में 41 और 2017 में 12 सीटें हासिल की. बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में 9 और 2017 में 06 सीट हासिल की. कांग्रेस ने 2012 में 3 और 2017 में 0 सीट पाई. अपना दल ने 2012 में 01 और 2017 में 04 सीटें जीतीं. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 2017 में 3 सीटें जीतीं. निर्दलीय 2012 में 2 व 2017 में एक भी नहीं जीते. कौमी एकता दल ने 2012 में एक 2017 में भी एक सीट जीती. निषाद पार्टी को 2012 में जहां एक भी सीट नहीं मिली तो वही 2017 में एक सीट मिली.

जिलेवार सीटों की स्थिति

  • चंदौली की 4 सीटों में से 2012 में भारतीय जनता पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती, जबकि 2017 में 3 सीटें हासिल की. समाजवादी पार्टी ने चंदौली में 2012 के विधानसभा चुनावों में 1 सीट जीती जबकि 2017 में भी एक सीट हासिल की. 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीटें जीती जबकि 2017 में एक भी सीट नहीं मिली.
  • गाजीपुर में कुल विधानसभा की 7 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 2012 में एक भी सीट नहीं जीती थी, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में 3 सीटें हासिल की. समाजवादी पार्टी ने 2012 में गाजीपुर से 6 सीटें जीती थी जबकि 2017 में 2 सीटें हासिल हुई. सुभासपा ने गाजीपुर से 2 सीटें 2017 में जीती थी.
  • जौनपुर की 9 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 2012 में 1 सीट जीती थी जबकि 2017 में 4 सीटें हासिल की, समाजवादी पार्टी ने 2012 में जौनपुर से 7 सीटें जीती थी जबकि 2017 में यह घटकर 3 पर आ गई, कांग्रेस ने यहां से 1 सीट 2012 में जीते जबकि 2017 में एक भी सीट नहीं मिली. बहुजन समाज पार्टी को 2017 में यहां से 1 सीट मिली थी 2012 में खाता भी नहीं खुला था. अपना दल ने 2017 में यहां से 1 सीट जीती थी, 2012 में खाता नहीं खोल पाई थी.
  • मिर्जापुर की पांच विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 2012 में एक भी सीट नहीं जीती जबकि 4 सीटें 2017 में हासिल की. सपा ने मिर्जापुर से 2012 में तीन सीटें जीती थी. 2017 में खाता नहीं खोल पाई. कांग्रेस ने मिर्जापुर से एक सीट जीती. 2012 में 2017 में खाता नहीं खोल पाई. अपना दल ने 2017 में 1 सीट जीती थी
  • सोनभद्र की 4 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में 3 सीट जीती थी. 2012 में खाता नहीं खुला था. समाजवादी पार्टी ने 2012 में 2 सीट जीती थी. 2017 में एक भी नहीं जीती, बहुजन समाज पार्टी ने 1 सीटें जीती थी 2012 में जबकि 2017 में खाता नहीं खुला. अपना दल ने सोनभद्र से 2012 में एक भी सीट नहीं जीती थी 2017 में 1 सीट मिली थी.
  • भदोही से समाजवादी पार्टी ने 2012 में 3 सीट जीती थी, जबकि 2017 में एक भी नहीं जीत सकी. भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में यहां से 2 सीट जीती थीं जबकि 2012 में खाता भी नहीं खोल पाई. निषाद पार्टी ने 2017 में यहां से एक सीट जीती थी.
  • आजमगढ़ से भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में एक सीट जीती है, 2012 में एक भी नहीं. सपा ने आजमगढ़ की 10 विधानसभा सीटों में से 9 पर कब्जा हासिल किया था, जबकि 2017 में 5 सीटों पर ही जीत मिली थी. बहुजन समाज पार्टी ने 2017 में आजमगढ़ से 4 सीटें जीती थी, जबकि 2012 में यह आंकड़ा महज एक था.
  • मऊ की 2012 में भारतीय जनता पार्टी की सीटें जीरो थी, जबकि 2017 में 3 सीटों पर जीत मिली थी, सपा ने 2012 में यहां से 2 सीट जीती थी, जबकि 2017 में एक भी सीट नहीं मिली, बसपा ने 2012 में यहां से 2 सीट जीती थी, 2017 में एक भी नहीं मिली थी.
  • बलिया में भी भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में 5 सीटें जीतकर 2012 में 0 के आंकड़े को आगे बढ़ाया था, जबकि सपा ने यहां से 2012 में 6 सीट जीती थी और 2017 में 5 सीटों का नुकसान हुआ यानी 1 सीट हासिल हुई, बसपा ने दोनों एक एक सीट हासिल की.

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