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पंजाब: राजनीतिक सरगर्मी तेज, कैप्टन को लेकर अटकलें

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Published : Nov 7, 2021, 2:19 PM IST

अगले वर्ष पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति अभी से तैयार की जा रही है. भाजपा इस चुनाव में कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहती है जिसके लिए जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने में जुटी है. वहीं, कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर अटकलें तेज हो गईं हैं.

कैप्टन
कैप्टन

लुधियाना : कृषि कानूनों को लेकर किसानों द्वारा भाजपा का विरोध किया जा रहा है. गांवों में किसानों खासकर भाजपा नेताओं द्वारा प्रवेश न करने के पोस्टर लगा दिए गए हैं. भाजपा पहले ही पंजाब की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. बीजेपी शहरों में जिला स्तरीय नियुक्तियां कर रही है जबकि गांवों में भी जमीनी स्तर पर काम हो रहा है. भाजपा भविष्य में कप्तान द्वारा बनाई गई नई पार्टी से समझौता करने से नहीं हिचकेगी. ऐसी भी संभावना है कि आरएसएस, जिसकी गांवों में शाखा है, गांवों में भी बीजेपी को मजबूत करने के लिए लगातार नए रंगरूटों की भर्ती कर रहा है.

42% दलित और ओबीसी वोटरों पर नजर

लुधियाना पहुंचे हरियाणा से भाजपा सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने कहा कि गांवों में किसान ही नहीं बल्कि दलित मजदूर और कई अन्य तबके के लोग रहते हैं और जब वे समझ जाएंगे कि कानून के भीतर कुछ भी गलत नहीं है तो वे किसानों को समझाएंगे. जिसका फायदा बीजेपी को होगा. उन्होंने दो टूक कहा कि पंजाब में 42 फीसदी ओबीसी समुदाय पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में होगा और बीजेपी उनके सिर पर पंजाब में सरकार बनाएगी.

कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी समझौता होने की उम्मीद है

भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसान आंदोलन है, जबकि कांग्रेस से अलग हो चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नई पार्टी की घोषणा कर दी है और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ नियमित बैठकें कर रहे हैं. कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने खुद कहा था कि अगर वे भाजपा से किसानों की समस्या का समाधान करवा सकते हैं तो विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन पर विचार किया जा सकता है. हालांकि, दूसरी ओर भाजपा भी कप्तान की राष्ट्रवादी नीति और सोच से प्रभावित है. लुधियाना पहुंचकर सांसद रामचंद्र जांगड़ा ने भी इस ओर इशारा किया और कहा कि राजनीति में कुछ भी संभव है और भविष्य में जरूरत पड़ने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ समझौता कर सकते हैं.

आरएसएस की भूमिका

शहरों में बीजेपी का वोट बैंक है, लेकिन ग्रामीण चुनावों में बीजेपी की पूर्व सहयोगी अकाली दल अक्सर अपने ही उम्मीदवार उतारती है. अकाली दल का गांवों में पकड़ माना जाता है लेकिन अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद गांवों में वोट बैंक बनाना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है और उनके पास कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी एक बड़ा विकल्प हो सकता है. अगर किसानों की समस्या का समाधान हो जाता है तो किसान भाजपा से अपनी नाराजगी को कुछ हद तक भूल सकते हैं. संघ शहर के साथ-साथ गांवों में भी संगठन को मजबूत करने के लिए जिला स्तर की शाखाओं में लगातार नए रंगरूटों की भर्ती कर रहा है.

सिख चेहरों पर दांव

जब से किसानों ने आंदोलन शुरू किया और भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ विरोध करना शुरू किया, भाजपा सिख चेहरों को पार्टी में जोड़ रही है. सिख चेहरे हरदीप सिंह पुरी को भाजपा ने अपने मंत्रिमंडल में बहाल किया है. इतना ही नहीं जिला स्तर पर भी सिख चेहरों को भाजपा में शामिल किया जा रहा है ताकि गांवों के किसान भाजपा के सिख चेहरों को अपना सकें. लुधियाना के मामले में बीजेपी ने हाल ही में बिक्रम सिद्धू को पार्टी में शामिल किया है जो पेशे से वकील हैं और सिख समुदाय से आते हैं.

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