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Opposition Unity in Parliament : 'विपक्ष की एकजुटता पर अभी बोलना जल्दबाजी'

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Published : Feb 6, 2023, 9:29 PM IST

हिंडनबर्ग और अडाणी समूह की जांच के मसले पर संसद में लगातार तीसरे दिन विपक्षी दलों का हंगामा जारी रहा. जानकारों का मानना है कि विपक्ष भले ही इस मुद्दे को लेकर एकजुट नजर आ रहा हो, लेकिन ये एकजुटता ज्यादा समय तक नहीं रहेगी. वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

Leaders of opposition parties protesting
प्रदर्शन करते विपक्षी दलों के नेता

नई दिल्ली: अडाणी मुद्दे पर संसद में एकजुट विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है, वहीं राजनीतिक पंडितों की राय है कि ऐसी एकता केवल मौकी की नजाकत है. यहां तक ​​कि प्रमुख विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने भी ईटीवी भारत से बात करते हुए चल रहे हंगामे को संसद में केवल 'विपक्ष के बीच अस्थायी एकता' करार दिया.

दरअसल विपक्षी नेता अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले अपनी एकता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. राजनीतिक विश्लेषक सिकंदर रिजवी (political analyst Sikandar Rizvi) का कहना है कि 'यह निश्चित रूप से मैरिज ऑफ़ कॉन्वेनिएंस है. आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कोई भी विपक्षी दल एकजुट नहीं रहेगा. कई मौकों पर हमने कुछ समय के लिए ऐसी एकता देखी है, लेकिन आखिरकार यह टूट जाती है.'

यह कहते हुए कि विपक्षी दल अपना प्रचार कर रहे हैं, रिजवी ने कहा कि वे चुनाव से पहले जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि विकास के मुद्दे, कनेक्टिविटी के साथ अंतिम मील तक पहुंचना और विकास की पहल प्रमुख कारक हैं जिन्होंने विपक्ष को चिंतित किया है.

हालांकि, विपक्षी नेताओं का एक वर्ग सदन की कार्यवाही में व्यवधान का समर्थन कर रहा है, जब तक कि सरकार अडाणी विवाद पर एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच नहीं करती है. कुछ नेताओं को लगता है कि राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए जहां वे कई मुद्दों पर राय रख सकते हैं.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने इस संवाददाता से कहा, 'फिलहाल चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, नियम के अनुसार राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए. यदि चर्चा होती है तो हम अडाणी सहित कई मुद्दों पर अपनी राय रख सकते हैं इसलिए, जब भी कोई चर्चा होगी, हम भाग लेंगे.'

हालांकि, यह सच है कि विपक्षी पार्टियों की ऐसी एकता ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. पिछले कई लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी दलों को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ एकजुट लड़ाई की बात करते हुए पाया गया था, जो एक चुनाव पूर्व रणनीति थी, जो बाद में उनके मतभेदों के कारण गायब हो गई.

बनर्जी ने कहा कि 'विपक्षी एकता पर अभी बोलना जल्दबाजी होगी. अलग-अलग कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग विचार और मत हो सकते हैं. तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस मिलकर सरकार चला रहे हैं. कांग्रेस बिहार में राजद और जद (यू) के साथ है. पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में कांग्रेस हमारी प्रतिद्वंद्वी पार्टी है.'

पूर्व सांसद और सीपीएम पोलितब्यूरो के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी विपक्षी एकता को अप्रत्याशित बताया. उन्होंने कहा कि 'अगर विपक्षी एकता की बात करें तो पिछले 70 सालों में जो हुआ वो हमने देखा है. हालांकि, वर्तमान एकता केवल मुद्दों पर आधारित है न कि विचारधारा पर.'

जहां तक ​​त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में अंडरस्टैंडिंग का सवाल है, मोल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी के पास सरकार बनाने को लेकर कोई वैचारिक समझ नहीं है.

उन्होंने कहा कि 'यह त्रिपुरा में चुनावी समायोजन नहीं है. दूसरी ओर यह सीट समायोजन है. हमारे पास ज्वाइंट मिनिमम प्रोग्राम भी नहीं है. हमारा मुख्य मकसद बीजेपी को सरकार बनाने से रोकना है क्योंकि जब भी वोटों का बंटवारा होता है तो बीजेपी को फायदा होता है.'

पढ़ें- Parliament Budget Session 2023: हंगामे के चलते दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित

नई दिल्ली: अडाणी मुद्दे पर संसद में एकजुट विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है, वहीं राजनीतिक पंडितों की राय है कि ऐसी एकता केवल मौकी की नजाकत है. यहां तक ​​कि प्रमुख विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने भी ईटीवी भारत से बात करते हुए चल रहे हंगामे को संसद में केवल 'विपक्ष के बीच अस्थायी एकता' करार दिया.

दरअसल विपक्षी नेता अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले अपनी एकता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. राजनीतिक विश्लेषक सिकंदर रिजवी (political analyst Sikandar Rizvi) का कहना है कि 'यह निश्चित रूप से मैरिज ऑफ़ कॉन्वेनिएंस है. आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कोई भी विपक्षी दल एकजुट नहीं रहेगा. कई मौकों पर हमने कुछ समय के लिए ऐसी एकता देखी है, लेकिन आखिरकार यह टूट जाती है.'

यह कहते हुए कि विपक्षी दल अपना प्रचार कर रहे हैं, रिजवी ने कहा कि वे चुनाव से पहले जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि विकास के मुद्दे, कनेक्टिविटी के साथ अंतिम मील तक पहुंचना और विकास की पहल प्रमुख कारक हैं जिन्होंने विपक्ष को चिंतित किया है.

हालांकि, विपक्षी नेताओं का एक वर्ग सदन की कार्यवाही में व्यवधान का समर्थन कर रहा है, जब तक कि सरकार अडाणी विवाद पर एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच नहीं करती है. कुछ नेताओं को लगता है कि राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए जहां वे कई मुद्दों पर राय रख सकते हैं.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने इस संवाददाता से कहा, 'फिलहाल चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं है. हालांकि, नियम के अनुसार राष्ट्रपति के भाषण और बजट पर चर्चा होनी चाहिए. यदि चर्चा होती है तो हम अडाणी सहित कई मुद्दों पर अपनी राय रख सकते हैं इसलिए, जब भी कोई चर्चा होगी, हम भाग लेंगे.'

हालांकि, यह सच है कि विपक्षी पार्टियों की ऐसी एकता ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. पिछले कई लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी दलों को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ एकजुट लड़ाई की बात करते हुए पाया गया था, जो एक चुनाव पूर्व रणनीति थी, जो बाद में उनके मतभेदों के कारण गायब हो गई.

बनर्जी ने कहा कि 'विपक्षी एकता पर अभी बोलना जल्दबाजी होगी. अलग-अलग कांग्रेस नेताओं के अलग-अलग विचार और मत हो सकते हैं. तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस मिलकर सरकार चला रहे हैं. कांग्रेस बिहार में राजद और जद (यू) के साथ है. पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में कांग्रेस हमारी प्रतिद्वंद्वी पार्टी है.'

पूर्व सांसद और सीपीएम पोलितब्यूरो के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी विपक्षी एकता को अप्रत्याशित बताया. उन्होंने कहा कि 'अगर विपक्षी एकता की बात करें तो पिछले 70 सालों में जो हुआ वो हमने देखा है. हालांकि, वर्तमान एकता केवल मुद्दों पर आधारित है न कि विचारधारा पर.'

जहां तक ​​त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में अंडरस्टैंडिंग का सवाल है, मोल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी के पास सरकार बनाने को लेकर कोई वैचारिक समझ नहीं है.

उन्होंने कहा कि 'यह त्रिपुरा में चुनावी समायोजन नहीं है. दूसरी ओर यह सीट समायोजन है. हमारे पास ज्वाइंट मिनिमम प्रोग्राम भी नहीं है. हमारा मुख्य मकसद बीजेपी को सरकार बनाने से रोकना है क्योंकि जब भी वोटों का बंटवारा होता है तो बीजेपी को फायदा होता है.'

पढ़ें- Parliament Budget Session 2023: हंगामे के चलते दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित

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