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मोबाइल फोन में पहले से ऐप क्यों चिपके रहते हैं, इसकी जांच के दायरे में गूगल क्यों आ गया ?

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Published : Sep 24, 2021, 4:58 PM IST

जब ग्राहक एंड्रॉयड फोन खरीदता है और उसमें पहले से मौजूद ऐप (ब्लोटवेयर) फोन की मेमरी पर कब्जा किए बैठे रहते है तो वह ठगा सा महसूस करता है. आप उसे डिलीट भी नहीं कर पाते और कोफ्त होती है. आखिर यह फिक्स ऐप फोन में कंपनियां डालती क्यों हैं. क्या है यह खेल, जिसकी जांच के दायरे में गूगल आ गया है. क्या है विवाद, पढ़ें यह रिपोर्ट

Google abused Android dominance
Google abused Android dominance

हैदराबाद : गूगल ने कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका में कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया पर गूगल के खिलाफ की गई जांच रिपोर्ट को लीक करने का आरोप लगाया गया है. यह जांच रिपोर्ट गूगल के एंड्रॉयड स्मार्टफोन एग्रीमेंट के दुरुपयोग की शिकायत पर जांच के बाद बनाई गई थी.

Google abused Android dominance
जांच रिपोर्ट लीक होने के आरोप में गूगल ने दिल्ली हाई कोर्ट में सीसीआई के खिलाफ याचिका दायर की है

गूगल पर आरोप है कि उसने अपने प्रभाव और वित्तीय ताकत के जरिये एंड्रायड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम और संबंधित बाजारों में अनुचित कारोबारी हथकंडे अपनाए थे. उसने डिवाइस कंपनियों को Google ऐप्स को प्री-इंस्टॉल करने के लिए मजबूर किया. इस कारण एंड्रॉयड के विकल्प को विकसित करने और बेचने की क्षमता कम हुई. हालांकि गूगल ने अपने बयान में दावा किया कि एंड्रॉयड ने कॉम्पिटिशन और इनोवेशन को बढ़ावा दिया है, इसे कम नहीं किया.

याचिका में गूगल ने पक्ष रखा है कि सीसीआई की तरफ से उसे अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं मिली है. 18 सितंबर, 2021 को सीसीआई के महानिदेशक कार्यालय ने कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया को गूगल के एंड्रॉयड स्मार्टफोन समझौतों की चल रही जांच से संबंधित एक गोपनीय अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे लीक कर दिया गया है.

दो रिसर्च एसोसिएट्स और एक लॉ स्टूडेंट की शिकायत के बाद गूगल के खिलाफ जांच 2019 में शुरू की गई थी. इस दौरान माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, ऐप्पल और स्मार्टफोन बनाने वाले सैमसंग ( Samsung) और शियोमी ( Xiaomi) समेत 62 कंपनियों के बयान लिए गए थे. माना जा रहा है कि सीसीआई की जांच रिपोर्ट में गूगल पर लगाए गए आरोप सही साबित हुए तो उस पर आर्थिक दंड लगाया जा सकता है. हालांकि अंतिम फैसले से पहले सीसीआई के सीनियर अधिकारी रिपोर्ट की समीक्षा करेंगे और गूगल को अपना बचाव करने का एक और मौका देंगे.

गूगल सीसीआई के आदेश के खिलाफ भारत की अदालतों में अपील कर सकता है. बता दें कि गूगल की जांच यूरोप और अमेरिका में भी हुई है. हाल ही में दक्षिण कोरिया के एंटी ट्रस्ट रेगुलेटर ने एंड्रॉयड के कस्टमाइज वर्जन को ब्लॉक करने के लिए गूगल पर 180 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया है.

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भारत में बिके 98 फीसदी स्मार्टफोन एंड्रॉयड से संचालित होते हैं

लीक रिपोर्ट के तथ्य, जिससे गूगल को गुस्सा आया

  • मीडिया रिपोर्टस के अनुसार बताया जा रहा है कि गूगल के खिलाफ कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) की जांच रिपोर्ट 750 पन्नों की है.
  • रिपोर्ट में यह पाया गया है कि गूगल ने भारत के प्रतिस्पर्धा कानून के उल्लंघन किया और डिवाइस निर्माताओं पर अनुचित दबाव बनाया.
  • अपने प्रभुत्व और प्ले स्टोर ऐप स्टोर की स्थिति का लाभ उठाकर मोबाइल और अन्य डिवाइस में अपने ऐप्स का पूर्व-इंस्टॉलेशन अनिवार्य कराया.
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि प्ले स्टोर (Play Store) की नीतियां एकतरफा, अस्पष्ट और मनमानी थीं, 2011 से ही गूगल एंड्रॉयड स्मार्टफोन और टैबलेट के लिए प्री इस्टॉलेशन का लाभ ले रहा है.

जानिए गूगल ने कैसे किया बाजार पर कब्जा

भारत के 520 मिलियन स्मार्टफोन्स हैं, जिनमें से 98 प्रतिशत गूगल के एंड्रॉयड सॉफ्टवेयर पैकेज से संचालित होते हैं. जबकि ऐप्पल के फोन को iOS ऑपरेटिंग सिस्टम चलाता है. ऐप्पल के यूजर भारत में कम हैं. काउंटर पॉइंट रिसर्च के अनुसार, भारत में स्मार्टफोन बेचने वाली टॉप कंपनियों में शियोमी (Xiaomi) पहले नंबर पर है. इसके बाद क्रमश: सैमसंग (Samsung), वीवो (Vivo), रियल मी (Realme) और ओप्पो (Oppo) का नंबर है. इन कंपनियों के स्मार्टफोन एंड्रॉयड आधारित हैं. शियोमी (Xiaomi), सैमसंग, हुआवे (Huawei) जैसी कई कंपनियों के अपने मोबाइल ऐप स्टोर हैं.

फायदा गूगल को कैसे मिला : ज्यादातर कंपनियों ने अपने मोबाइल फोन या टैबलेट में गूगल के ऐप्स फिक्स कर दिए. यानी ग्राहक की पसंद हो या न हो ऐप्स आपके फोन में रहेंगे ही. फोन में रखे ऐसे ऐप, जिसे आप डिलीट नहीं कर सकते ब्लोटवेयर कहलाते हैं. जब ऐसे ऐप को डिलीट करने का प्रयास करते हैं तो गूगल अपने एंड्रायड सिस्टम को और अपडेट करता है.

ग्राहकों को इसका नुकसान यह हुआ कि अगर उनके फोन का स्पेस पहले से ही गूगल ऐप्स ने ले लिया, जबकि आप फीचर के हिसाब से कुल मेमरी स्पेस के हिसाब से फोन खरीदते हैं.

इसके अलावा कोई भी ऐप डाउनलोड करने के लिए गूगल के प्ले स्टोर में ही जाना पड़ता है. ऐप डेवलपर्स के पास अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए गूगल की शरण लेनी होती है. उनके पास दूसरा ऑप्शन सीमित है.

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मोबाइल फोन में पहले से जो ऐप होते हैं, वे ब्लोटवेयर कहे जाते हैं

ब्लोटवेयर ऐप से क्या है चिंता: अक्टूबर 2020 में ब्लोटवेयर ऐप को लेकर एडवोकेट जतिन राणा की तरफ से एक याचिका डाली गई थी. याचिका में दावा किया गया था कि प्री इन्स्टॉल्ड ऐप यूजर्स की प्राइवेसी के खिलाफ है. याचिका में अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) और यूके स्थित प्राइवेसी इंटरनेशनल सहित 50 गोपनीयता सुरक्षा समूहों का हवाला दिया गया. इसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और उपभोक्ता अधिकारों के के विरुद्ध भी बताया गया. अभी इस मामले में कोर्ट का फैसला नहीं आया है.

क्या होना चाहिए : यूजर्स को ऐप चुनने और फोन की मेमरी के उपयोग की आजादी होनी चाहिए. यह ग्राहक तय करे कि उसे किस ऐप की जरूरत है. फिलहाल गूगल की याचिका पर सीसीआई को जवाब देना है. इसके बाद कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया को तय करना है कि बाजार में उपभोक्ता हित बना रहे.

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