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जम्मू कश्मीर : वेरिफिकेशन को लेकर जारी सर्कुलर की कई राजनीतिक दलों ने की आलोचना

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Published : Aug 3, 2021, 4:04 PM IST

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जम्मू-कश्मीर में अब पत्थरबाजी और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों को सिक्योरिटी क्लीयरेंस (security clearance) देने से इनकार कर दिया है, जिस पर प्रदेश के कई राजनीतिक दलों ने प्रतिक्रिया देते हुए इसकी आलोचना की है.

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में अब पत्थरबाजी और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों को सिक्योरिटी क्लीयरेंस (security clearance) देने से इनकार कर दिया है. इस नए आदेश की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों (mainstream political parties) ने आलोचना की.

दरअसल, कश्मीर में एसएसपी सीआईडी (एसबी) द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि न तो सरकारी नौकरी मिलेगी और न ही उनके पासपोर्ट का वेरिफिकेशन किया जाएगा. सीआईडी एसबी-कश्मीर की सभी फील्ड इकाइयों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया है की पत्थरबाजी और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल लोगों की पासपोर्ट सेवा, सरकारी सेवाओं या योजनाओं से संबंधित किसी भी अन्य सत्यापन के दौरान कानून व्यवस्था बिगाड़ने और पथराव के मामले में राज्य की सुरक्षा पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए और स्थानीय पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि की जानी चाहिए.

इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा है कि स्थानीय पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड से इसकी पुष्टि की जानी चाहिए. साथ ही अधिकारियों को सभी सबूतों को इकट्ठा करने और उनकी जांच करने का भी निर्देश दिया गया है.

इस संदर्भ के रूप में सुरक्षा बलों और विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के साथ पुलिस रिकॉर्ड में उपलब्ध सीसीटीवी फुटेज, फोटो, वीडियो, ऑडियो क्लिप और क्वाडकॉप्टर छवियों जैसे डिजिटल साक्ष्य (digital evidence l) एकत्र करने के लिए कहा.

आदेश में आगे कहा गया है कि कानून व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले किसी भी मामले में शामिल लोगों को सिक्योरिटी क्लीयरेंस से वंचित कर दिया जाएगा. इतनी ही नहीं उन्हें सरकारी नौकरी से भी वंचित कर दिया जाएगा.

सर्कुलर में नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस और अपनी पार्टी से आलोचना की गई है. नेशनल कांफ्रेंस (National Conference) के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री (former chief minister ) उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah ) ने कहा कि यह कार्यकारी आदेश आदेलत के कानून की जगह नहीं ले सकता.एक नियम के रूप में, किसी को भी साबित होने तक दोषी घोषित नहीं किया जा सकता है, इसलिए जहां तक इस नए आदेश का संबंध है, इसे कर्मचारियों की बर्खास्तगी के संबंध में देखा जाना चाहिए.

उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करते हुए कहा कि यह नया आदेश अपने मौजूदा स्वरूप का घोर दुरुपयोग है. एक कार्यकारी आदेश कोर्ट ऑफ लॉ (court of law) की जगह नहीं ले सकता.

उन्होंने ट्वीट में कहा अपराध या बेगुनाही को अदालत में साबित किया जाना चाहिए और अस्पष्ट अप्रमाणित पुलिस रिपोर्टों पर आधारित नहीं होना चाहिए.

वहीं, अपनी पार्टी के अध्यक्ष (Apni Party president) अल्ताफ बुखारी (Altaf Bukhari ) ने एलजी मनोज सिन्हा से आदेश की समीक्षा करने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि यह कश्मीर में युवाओं को और अलग कर देगा.

बुखारी ने एक बयान में कहा कि इस तरह के मनमाने फैसले युवाओं को अलगाव की ओर धकेलेंगे और यह जम्मू-कश्मीर में शांति और सुलह प्रक्रिया के लिए प्रतिकूल हैं. हम सुलह की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि नया आदेश पूरी तरह से प्रधानमंत्री (prime Minister ) और केंद्रीय गृहमंत्री (Union Home Minister) के वादों और दृष्टि के विपरीत है, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए बेहतर और समृद्ध भविष्य की परिकल्पना करते हैं, विशेष रूप से होनहार युवाओं के लिए.

बुखारी ने कहा कि दो परस्पर विरोधी दिशाओं से वांछित परिणाम नहीं मिल सकते हैं और पुलिस को उन युवाओं के रास्ते को बाधित करने के बजाय परामर्श के माध्यम से एक नरम दृष्टिकोण पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिनमें अपार क्षमता और मुख्यधारा में लाने की इच्छा हो. भारत का संविधान सभी को अपनी गलती सुधारने का पर्याप्त मौका देता है.

उन्होंने आगे कहा कि ऐसे कई मामले हैं, जिनमें लोगों पर पहली बार कानून व्यवस्था के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. क्या वे दूसरे मौके के लायक नहीं हैं? यह निश्चित रूप से राष्ट्रीय हित में नहीं है, बल्कि यह कश्मीर में एक नए विवाद को हवा देने की साजिश प्रतीत होती है.

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पीपुल्स कांफ्रेंस ने कहा कि यह आदेश न केवल स्पेशल ब्रांच के अधिकारियों को मनमाने अधिकार देता है बल्कि उन्हें न्यायाधीश और जूरी के रूप में भी नियुक्त करता है. नया कानून स्पष्ट रूप से कठोर है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्वदलीय बैठक में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण से विपरीत है.

पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रवक्ता ने कहा कि पीएम ने अपने भाषण में दिल्ली और श्रीनगर के बीच दिलों की दूरी को कम करने की जरूरत पर जोर दिया था. इस तरह के आदेश नई दिल्ली और श्रीनगर के बीच की दूरी को हल या कम नहीं करेंगे और निश्चित रूप से सरकारी संस्थानों के प्रति लोगों के अलगाव और दिल्ली के बीच मनोवैज्ञानिक दूरी को बढ़ाएंगे.

उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी अपने आप को व्यापक शक्ति प्रदान कर रही है, देश के बाकी हिस्सों में संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.

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