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अमावस्या पर 134 साल बाद बना गज छाया योग, तर्पण करने दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचे पुष्कर सरोवर

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Published : Oct 6, 2021, 8:10 PM IST

तीर्थ गुरु पुष्कर में श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त की गई पूजा अर्चना से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. अमावस्या पर बने विशेष गज छाया योग में हजारों श्रद्धालुओं ने पुष्कर में पिंडदान और तर्पण किया.

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अजमेर : सभी तीर्थों के गुरु कहलाने वाले पुष्कर तीर्थ का महत्व सदियों से चला आ रहा है. इसे सतयुग का तीर्थ भी कहते हैं. विश्व में ब्रह्माजी का मंदिर भी सिर्फ पुष्कर में ही है. ऐसे में मान्यता है कि इस तीर्थ पर पितरों का श्राद्ध करने से आत्मा को मोक्ष मिल जाता है.

अमावस्या पर आज 134 साल बाद गज छाया योग बना. श्राद्ध पक्ष में इस विशेष योग के दिन पितरों का तर्पण करने दूर-दूर से श्रद्धालु पुष्कर सरोवर पहुंचे. पवित्र सरोवर के जल को साक्षात भगवान नारायण का रूप माना जाता है. सदियों से पुष्कर के पवित्र 52 घाटों पर पितृ शांति के लिए पिंडदान और तर्पण होता आया है.

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पुष्कर के पवित्र 52 घाटों पर पितृ शांति के लिए पिंडदान और तर्पण होता आया है.

सालभर आते हैं तीर्थयात्री

वर्ष भर भारी संख्या में तीर्थयात्री पुष्कर आते हैं और पितृ शांति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. श्राद्ध पक्ष में पुष्कर तीर्थ का महत्व और भी बढ़ जाता है. श्राद्ध पक्ष में अमावस्या का दिन विशेष होता है. इस बार श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के दिन गज छाया का विशेष योग बना है. माना जाता है कि आज के दिन पुष्कर तीर्थ में पूजा अर्चना करने से पितृदोष का निवारण होता है, बल्कि जिन पूर्वजों के निमित्त पूजा अर्चना की गई है. उन दिवंगत आत्माओं को ब्रह्मलोक में स्थान मिलता है.

सतयुग का तीर्थ है पुष्कर

तीर्थराज पुष्कर को सतयुग का तीर्थ माना जाता है. पुष्कर में पवित्र सरोवर की पूजा नारायण रूप में होती है. सदियों से तीर्थयात्री पुष्कर यात्रा के लिए आते रहे हैं. पुष्कर में भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था. वहीं महाभारत काल में भीष्म और पांडवों ने भी यहां अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया था. यूं तो वर्षभर पुष्कर में पितृ शांति के लिए पूजा अर्चना होती रहती है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. वहीं तीर्थ यात्रियों की तादाद भी इन दिनों बढ़ने लगती है. देश के कोने कोने से तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने के बाद अपने सामर्थ्य अनुसार दान पुण्य करते हैं. श्राद्ध पक्ष का बुधवार को अंतिम दिन है. ऐसे में यहां पूर्वजों के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करने के लिए आज सभी घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ रही.

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16 दिन के लिए धरती पर आते हैं पूर्वज

माना जाता है कि 16 दिन श्राद्ध पक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं. अमावस्या तक रहकर पुनः परलोक लौट जाते हैं. तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि अमावस्य के दिन गज छाया योग बन रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गज छाया योग में पुष्कर या अन्य तीर्थ में जाकर पिंड दान या तर्पण करता है उसके पूर्वज 12 वर्ष तक तृप्त रहते हैं. इस पूजा अर्चना के बाद 12 वर्ष तक यदि कोई व्यक्ति पूजा नहीं करता है तो भी उसके पूर्वजों को 12 वर्ष तक पूजा का फल मिलता रहता है.

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हजारों श्रद्धालुओं ने पुष्कर में पिंडदान और तर्पण किया.

भगवान राम ने पुष्कर में किया था पिंडदान

उन्होंने बताया पिंडदान, श्राद्ध तर्पण करने से पूर्वजों को ब्रह्मलोक में स्थान मिलता है. उन्होंने बताया कि विशेषकर गज छाया योग 134 वर्ष बाद आया है. भगवान श्री राम और सीता पिता दशरथ का श्राद्ध करने के लिए गया गए थे. लेकिन श्रीराम की जगह माता सीता ने अपने ससुर का वहां पिंडदान किया था. जिससे राजा दशरथ को शांति नहीं मिली थी. इसके बाद राम और सीता ने पुष्कर आकर अपने पिता का श्राद्ध किया था. उन्होंने पूरी कथा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस कथा का उल्लेख पदम पुराण के शक्ति खंड में है.

गज छाया का विशेष योग

तीर्थ पुरोहित पंडित दिलीप शास्त्री ने बताया कि तीर्थ नगरी पुष्कर सतयुग का तीर्थ है. यहां पूर्वजों की शांति के लिए पूजा अर्चना और अनुष्ठान किए जाते हैं. श्राद्ध पक्ष में पित्तरों के निमित्त की गई पूजा अर्चना का यहां विशेष फल मिलता है. उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष का आज अंतिम दिन है, आज अमावस के दिन गज छाया का विशेष योग बना है, यह पित्तरों के लिए की जानी पूजा अर्चना के फल को बढ़ाता है. बल्कि पित्तरों को ब्रह्मलोक में स्थान दिलाता है.

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माना जाता है कि पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध पक्ष में पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण करने से पूर्वज आशीर्वाद देकर लौटते हैं. जिससे परिवार में समृद्धि और खुशहाली आती है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग अमावस्या के दिन तीर्थराज पुष्कर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचे.

पुष्कर में आस्था की डुबकी लगाकर लोग अपने पूर्वजों के निमित्त सदियों से श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने के बाद अपनी श्रद्धा के अनुसार दान पुण्य भी करते हैं. यह लोगों का अटूट विश्वास है कि ऐसा करने से उन्हें पितृदोष से मुक्ति और पित्तरों को शांति मिलती है, जिससे उनके घर में भी सुख और शांति बनी रहे.

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