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स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है कीटनाशकों का छिड़काव

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Published : Dec 13, 2020, 1:13 PM IST

फसलों को कीटों से बचाने के लिए किटनाशकों का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह कीटनाशक लोगों के लिए घातक है. त्वचा के जरिए कीटनाशकों के शरीर में प्रवेश करने पर जब इस एंजाइम की कार्यप्रणाली बाधित होती है, तो नर्वस सिस्टम पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मनुष्य संज्ञानात्मक रूप से अक्षम हो सकता है और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है. इस नुकसानदेह कीटनाशकों के अवशेषों को मिटाने के लिए युद्ध स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है.

नुकसानदेह है कीटनाशकों का छिड़काव
नुकसानदेह है कीटनाशकों का छिड़काव

हैदराबाद : कीटनाशक वह दानव है जिसका बचा हुआ हिस्सा अपने जानलेवा विषदंतों से मानवता का शिकार कर रहा है. कीटनाशक, कीटों के लिए कम और इंसानों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं. खेती, सब्जी और फलों को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए कई तरह से कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मिट्टी की जैव विविधता संरक्षण के उपायों की जोरदार वकालत करते हुए संयुक्त राष्ट्र पिछले सात वर्षों से 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मना रहा है. सरकारों की ओर से आए दिन की जाने वाली उपेक्षा व निष्क्रियता मानव जाति के कई स्वास्थ्य संकटों का कारण रही है.

कीटनाशक अवशेषों के कारण स्वास्थ्य संकट की एक ताजा घटना में आंध्र प्रदेश के एलुरु शहर में सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. हालांकि उनके अस्पताल में भर्ती होने की वजह रहस्यमय लक्षण रहे लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा कि पीड़ितों की बीमारी का कारण उनके रक्त के नमूनों में बहुत अधिक मात्रा में सीसा, निकेल और पारा का रहना था. इस सच्चाई से बड़ी त्रासदी नहीं हो सकती है कि अनाज और सब्जियों में जमा रासायनिक अवशेष जनता के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं.

आईसीआरआईएसएटी के वैज्ञानिकों ने बीते अक्टूबर में कहा था कि सब्जी की खेती में रासायनिक कीटनाशकों का अधिक उपयोग उपभोक्ताओं की हत्या से कम नहीं है. हालांकि ऐसा होने पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने शर्मनाक आदेश जारी किए और संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे सब्जी के नमूनों में अवशेषों के स्तर को सार्वजनिक करने से परहेज करें.

27 रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने में सरकार विफल
केंद्र सरकार ने मई में खेती में 27 रसायनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिनियम में संशोधन का मसौदा तैयार करने की घोषणा की थी, लेकिन कीटनाशक निर्माताओं के दबाव के बाद सरकार अपने रुख से पीछे हट गई. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के समक्ष पेश किए गए अपने आवेदन में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा है कि पंजीकरण समिति की ओर से जिस सीमा तक की अनुमति दी गई है उसके अनुसार कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है तो, कोई नुकसान नहीं होगा. पिछले जून माह में न्यायाधिकरण ने मिट्टी की उर्वरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कीटनाशकों के बुरे प्रभावों को रोकने के लिए कार्रवाई करने का आह्वान किया था. इस मोर्चे पर निष्क्रियता बड़े संकट की ओर ले जा रही है.

केरल में 1975 और 2000 के बीच राज्य सरकार की एजेंसी ने कासरगोड जिले की 20 ग्राम पंचायतों में स्थित 12 हजार एकड़ में काजू के खेतों को बचाने के लिए एंडोसल्फान हवाई स्प्रे का सहारा लिया था. कीटनाशक के इस व्यापक छिड़काव से एक हजार लोगों की मौत हुई थी और 5 हजार से अधिक की मनोवैज्ञानिक रूप से विक्षिप्तता के शिकार हो गए थे. 2017 में इस मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों को 500 करोड़ रुपये मुआवजा और आजीवन मुफ्त चिकित्सा सहायता मुहैया कराने का निर्देश दिया है.

देश तब हैरान रह गया जब बिहार में मध्याह्न भोजन के बाद 23 बच्चों की मौत हो गई, जिसमें मोनोक्रोटोफॉस के अवशेष पाए गए थे. करीब तीन साल पहले महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में कीटनाशक का छिड़काव करते समय 50 किसानों की मौत के बाद भी ऐसी ही प्रतिक्रिया हुई.

दूसरे देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का भारत में हो रहा उपयोग
कीटनाशकों का उपयोग इस तरह से नियंत्रित करना सुनिश्चित करने के लिए नियामक तंत्र हैं कि वे आदमी और पशुओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हों. हालांकि, इन तंत्रों की विफलता मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य के विनाश का कारण साबित हो रही है. दूसरे देशों में प्रतिबंधित कई कीटनाशकों का अभी भी भारत में उपयोग किया जा रहा है. भारत में 2001 में ऐसे प्रतिबंधित कीटनाशकों की संख्या 33 थी जिनका उपयोग किया जाता था वर्ष 2011 आते-आते इनकी संख्या बढ़कर 67 हो गई.

डॉ. अनूप वर्मा समिति की ओर से की गई सिफारिश के बाद केंद्र सरकार ने 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सोचा. जब कीटनाशक निर्माताओं ने चेतावनी दी कि प्रतिबंध के बाद दूसरे देशों से आयात किए गए इनके वैकल्पिक कीटनाशक को खरीदने के लिए किसानों पर अलग से आर्थिक बोझ पड़ सकता है तो, सरकार ने कदम पीछे खींच लिए. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि प्रतिबंध से ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जिसमें भारतीय निर्माता उन कीटनाशकों के 12 हजार करोड़ रुपये के घरेलू बाजार को खो देंगे और चीन उस पर कब्जा कर लेगा.

देश में खेती से जुड़े कामों में सुरक्षित तरीके से कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की संस्कृति को बढ़ावा देने में कीटनाशक कानून 1968 ने योगदान नहीं दिया. केंद्र सरकार किसानों पर विद्वेशपूर्ण कृषि सुधार कानूनों को क्यों जबरन थोप रही है जो जनता के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह कीटनाशकों के अवशेषों को मिटाने के लिए युद्ध स्तर पर कदम नहीं उठा रही हैं ? जनता का स्वास्थ्य तब तक सुरक्षित नहीं होगा जब तक एक कृषि क्रांति के जरिए बड़े स्तर पर किसानों को कीट प्रबंधन तकनीकों, जैव कीटनाशकों और कम गाढ़ापन वाले कीटनाशकों जैसे विकल्पों के लिए तैयार नहीं किया जाता.

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