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कैंसर की दवाओं पर जीएसटी कम हो, स्वदेशी टीके उपलब्ध कराएं : संसदीय समिति का सुझाव

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Published : Jun 28, 2022, 9:36 AM IST

संसदीय समिति ने कैंसर के महंगे इलाज पर चिंता जतायी है. साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय को सुझाव दिया है कि वो कैंसर की दवाओं पर जीएसटी कम करें और सस्ती इलाज के लिए स्वदेशी टीके उपलब्ध कराएं.

संसदीय समिति
संसदीय समिति

नई दिल्ली : संसदीय समिति ने सोमवार को देश में कैंसर का इलाज सस्ता करने के लिए दवाओं पर जीएसटी में कमी और स्वदेशी टीके उपलब्ध कराने का सुझाव दिया है. भारत में कैंसर के किफायती इलाज के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद प्रो रामगोपाल यादव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की बैठक हुई. बैठक में उपस्थित अधिकारियों में स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक अतुल गोयल शामिल थे.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने समिति के समक्ष विस्तृत प्रस्तुति दी और बताया कि देश में कार्यरत 22 एम्स में से सिर्फ छह में ही कैंसर के इलाज की सुविधा है. केंद्र द्वारा संचालित 13 मेडिकल कॉलेजों में ही कैंसर के इलाज की सुविधा है. सूत्रों ने कहा कि पैनल के एक सदस्य ने अवगत कराया कि कैसे पश्चिम बंगाल में चित्तरंजन नेशनल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल व्यावहारिक रूप से निष्क्रिय था. अब मरीजों की आमद बढ़ने के बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ हैै. सदस्यों ने कैंसर से संबंधित दवाओं और दवाओं की बढ़ती कीमतों पर भी गहरी चिंता जताई. हालांकि सरकार का दावा है कि कुछ शर्तों के तहत ये दवाएं रियायती दर पर उपलब्ध हैं. सदस्यों ने स्वास्थ्य मंत्रालय को सुझाया कि ऐसी दवाओं पर जीएसटी को कम करने की तत्काल आवश्यकता है, सदस्यों ने उपलब्ध सुविधाओं पर अपनी चिंता व्यक्त की और पीईटी स्कैन कराने का आग्रह किया जो कैंसर का पता लगाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है.

सदस्यों ने कैंसर को जल्द से जल्द एक अधिसूचित रोग घोषित करने का भी आग्रह किया क्योंकि इसके महंगे इलाज और इससे जुड़े कलंक के साथ यह आम आदमी के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. इसके अलावा इस बात पर भी चर्चा की गई कि कैंसर रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए परामर्श मुहैया कराने पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. अधिकारियों द्वारा सदस्यों को यह भी बताया गया कि कैंसर के इलाज के लिए एचपीवी वैक्सीन अपने तीसरे परीक्षण चरण में पहुंच गई है. सभी सदस्यों ने एकजुट होकर केंद्र सरकार से स्वदेशी टीकों के विकास को प्रोत्साहित करने का अनुरोध किया ताकि इलाज सस्ता हो सके और टीका आसानी से उपलब्ध हो सके.

मंगलवार को राष्ट्रीय कैंसर संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), झज्जर, हरियाणा सहित कुछ संगठन डॉ भुवनेश्वर बोरूआ कैंसर संस्थान (बीबीसीआई), गुवाहाटी, असम; चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (सीएनसीआई), कोलकाता, पश्चिम बंगाल; तथा राष्ट्रीय कैंसर निवारण एवं अनुसंधान संस्थान, गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश समिति के समक्ष अपने सुझाव रखेंगे. समिति पहले से ही डॉ भुवनेश्वर बोरूआ कैंसर संस्थान (बीबीसीआई), गुवाहाटी से अनुसंधान प्राप्त कर रही है और जैसा कि चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (सीएनसीआई), कोलकाता द्वारा प्रस्तुत किया गया है. इसमें 28 अप्रैल, 2022 को मुंबई में समिति के स्टडी टूर के दौरान टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई द्वारा प्रस्तुत इस विषय पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग से प्राप्त पृष्ठभूमि नोट पर भी सदस्यों ने चर्चा किया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में भी कैंसर मृत्यु का प्रमुख कारण है, 2018 में 7.84 लाख मौतें दर्ज की गईं और 2020 में 13.92 लाख मामले दर्ज किए गए. एक विशेषज्ञ के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कैंसर की देखभाल पर औसतन 1,16,218 रुपये खर्च होता है, वहीं निजी अस्पतालों में कैंसर देखभाल की कुल लागत 1,41,774 रुपये थी, जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में यह तुलनात्मक रूप से 72,092 रुपये थी. राज्य-वार पैटर्न से पता चलता है कि भारत में कैंसर देखभाल की कुल लागत ओडिशा में 74,699 रुपये से लेकर झारखंड राज्य में 2,39,974 रुपये तक है. आठ राज्यों- ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और हरियाणा में कैंसर के इलाज की कुल लागत 1 लाख रुपये से कम थी. हालांकि कैंसर रोगियों ने पंजाब, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इलाज पर 1-1.5 लाख रुपये तक खर्च किए. जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में कैंसर के इलाज में 1.5 लाख रुपये से अधिक का खर्च आता है.

चिकित्सा और गैर-चिकित्सा व्यय एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर फोकस किए जाने की आवश्यकता है. कुल कैंसर देखभाल खर्च का लगभग 90 प्रतिशत चिकित्सा देखभाल से संबंधित है, जिसमें डॉक्टरों की परामर्श, दवाएं, नैदानिक ​​परीक्षण, बिस्तर शुल्क और अन्य चिकित्सा सेवाएं जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन और ऑक्सीजन पूरकता पर खर्च शामिल हैं. शेष 10 प्रतिशत गैर-चिकित्सा मदों पर है. जिसमें परिवार के अन्य सदस्यों के लिए परिवहन, भोजन, अनुरक्षण और परिवहन शामिल है. राज्य-वार पैटर्न से पता चलता है कि दो राज्यों, छत्तीसगढ़ और बिहार में गैर-चिकित्सा खर्चों ने सभी कैंसर व्यय में 20 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया, जबकि नौ राज्यों-ओडिशा, आंध्र प्रदेश, झारखंड, केरल, हिमाचल प्रदेश में, राजस्थान, तमिलनाडु, असम और जम्मू-कश्मीर में 10 प्रतिशत से अधिक खर्च गैर-चिकित्सा सेवाओं पर था.

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एएनआई

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