ETV Bharat / bharat

बिहार की राजनीति के केन्द्र में लौटे सुशील मोदी, सवाल- दिखा पाएंगे 2017 जैसा कमाल!

author img

By

Published : Aug 12, 2022, 11:43 AM IST

BJP Game Changer Sushil Kumar Modi
BJP Game Changer Sushil Kumar Modi

साल 2017 में भाजपा के लिए गेम चेंजर साबित होने वाले सुशील कुमार मोदी (Sushil kumar Modi ) एक बार फिर एक्शन में हैं. बिहार की सियासत को दिशा देने के लिए सुशील मोदी ड्राइविंग सीट पर आ गए हैं. केंद्रीय नेतृत्व की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद सुशील मोदी नीतीश और लालू से एक साथ मुकाबले के लिए तैयार हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

पटना: सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) अब एनडीए गठबंधन के बजाय महागठबंधन ( Nitish Kumar Mahagathbandhan Government ) का हिस्सा बन चुके हैं. 9 और 10 अगस्त को बिहार की राजनीति (Bihar politics) में गहमागहमी बनी रही. पुराने रिश्ते टूटे और टूटे रिश्तों को एक बार फिर से जोड़ा गया. सियासत में मचे भूचाल के बीच सभी ने सुशील कुमार मोदी की कमी को महसूस किया. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सुशील मोदी बिहार में सक्रिय राजनीति में होते तो एनडीए गठबंधन टूटता? शायद बीजेपी को भी ऐसा ही लगता है कि मोदी सब संभाल सकते थे, तभी तो उन्हें एक बार फिर से बिहार की सियासत में पार्टी को दिशा देने के लिए ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया है.

पढ़ें- 'उपराष्ट्रपति बनने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी, सुशील मोदी का बयान बोगस'

साबित हुए बीजेपी के 'गेम चेंजर': साल 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी हार हुई थी. तब नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ने कमाल दिखाते हुए बड़े बहुमत के साथ महागठबंधन की सरकार बनाई थी. मगर 2 साल बीतते-बीतते ये सरकार गिर गई और नीतीश कुमार एनडीए में लौट गए. माना जाता है कि इस मुश्किल को आसान करने वाले सुशील मोदी ही थे. भ्रष्टाचार और घोटाले को लेकर तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर आरोपों और उनसे जुड़े दस्तावेजों के जरिए उन्होंने नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ आने को मजबूर कर दिया.

2017 में महागठबंधन को किया था धराशायी: सुशील मोदी बिहार भाजपा के चाणक्य कहे जाते हैं. 2020 विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक सुशील मोदी की बादशाहत भाजपा के अंदर कायम थी लेकिन सरकार बनने के समय सत्ता सुशील मोदी के हाथों से फिसल गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इच्छा के बावजूद वह उपमुख्यमंत्री नहीं बन सके. धीरे धीरे बिहार प्रदेश की सियासत से उन्हें अलग कर दिया गया और संकट की स्थिति में एक बार फिर सुशील मोदी की वापसी हुई है. बीजेपी बिहार में सुशील कुमार मोदी को ही गेम चेंजर (BJP Game Changer Sushil Kumar Modi) मानती है.

सुशील मोदी पर बीजेपी ने जताया फिर से भरोसा: बीजेपी को सुशील मोदी से एक बार फिर से काफी उम्मीदें हैं. नीतीश कुमार और सुशील मोदी के अच्छे संबंधों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजतक जदयू के किसी नेता ने भी सुशील मोदी के खिलाफ बयान नहीं दिया. खुद ललन सिंह दोनों के अच्छे संबंध होने की बात कई बार कह चुके हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए सुशील मोदी बिहार में तारणहार की भूमिका निभा सकते हैं.

साइड लाइन हुए सुशील मोदी : 2020 विधानसभा चुनाव तक सुशील मोदी नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार की बिहार प्रदेश भाजपा में बोलबाला था. इनकी इच्छा के बगैर पार्टी में कुछ नहीं होता था. सुशील मोदी का कद और पद सबसे ऊपर था. नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार सहयोगी की भूमिका में थे. 2020 चुनाव के नतीजों के बाद भूपेंद्र यादव, नित्यानंद राय और संजय जायसवाल ताकतवर हो गए. चुनाव के नतीजों के बाद सरकार के गठन में सुशील मोदी को सरकार में शामिल होने से रोक दिया गया. साथ ही नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार को भी मंत्री नहीं बनाया गया. बात यहीं नहीं रूकी सुशील मोदी को बिहार के साथ सबसे अलग-थलग करने के लिए राज्यसभा भेज दिया गया लेकिन सुशील मोदी की सियासत बिहार के इर्द-गिर्द घूमती रही. राज्यसभा में भी सुशील मोदी बिहार से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे और वह बिहार में सुर्खियां बनी.

कई मुद्दों पर मुखर रहे सुशील मोदी: बिहार से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर सुशील मोदी मुखर रहे और कई बार नीतीश कुमार के खिलाफ भी आवाज उठाते दिखे. धारा 370, तीन तलाक, राम मंदिर और अग्निपथ योजना को सुशील मोदी ने प्रमुखता से उठाया था. जदयू की ओर से जब स्पेशल स्टेटस का मुद्दा उठाया जा रहा था तब सुशील मोदी ने जदयू को दो टूक जवाब दिया था. जातिगत जनगणना के मसले पर भी सुशील मोदी मुखर रहे.

अगर सुशील मोदी होते तो एनडीए गठबंधन नहीं टूटता: पार्टी ने कई नए चेहरों को आगे किया लेकिन गठबंधन लंबी नहीं चल सकी. ढाई साल पूरे होने से पहले एनडीए में दरार आ गई. आखिरकार नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया. जदयू नेता मानते हैं कि अपरिपक्व नेताओं की टीम की वजह से गठबंधन टूटा. नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा कि अगर सुशील मोदी सरकार में होते तो गठबंधन नहीं टूटता.

पहले भी सुशील मोदी बन चुके हैं गेम चेंजर: आपको बता दें कि 2017 में सुशील मोदी के प्रयासों से नीतीश कुमार एनडीए में वापस आए थे. सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को महागठबंधन के जबड़े से बाहर निकाला था. सुशील मोदी की रणनीतिक कौशल का लोग लोहा मानते हैं. उनकी रणनीतिक कौशल को देखते हुए संकट की स्थिति में केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें आगे किया और गठबंधन टूटने के बाद सुशील मोदी हमलावर हो गए हैं. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर सुशील मोदी ने चौतरफा हमला बोलना शुरू कर दिया है. संवाददाता सम्मेलन के मौके पर सुशील मोदी का दर्द भी छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि मैं 17 महीने बाद संवाददाता सम्मेलन करने आया हूं.

जब लालू परिवार पर लगाया था आरोपों की झड़ी: सुशील मोदी जब नीतीश कुमार के करीबी हुआ करते थे तब उन्हें नीतीश का भामाशाह कहा जाता था. नीतीश कुमार जब सत्ता में आए थे तो खजाना खाली मिला था लेकिन सुशील मोदी ने वित्त मंत्री बनने के बाद खजाने को भरने का काम किया. भामाशाह महाराणा प्रताप के लिए जिस भूमिका में थे उसी भूमिका में सुशील मोदी नीतीश कुमार के लिए रहे. नीतीश कुमार और सुशील मोदी की जोड़ी के चर्चे पटना से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारे में आज भी होती है. 2015 में जब नीतीश और लालू साथ आए तो सुशील कुमार मोदी ने लालू पर हमले और तेज कर दिए थे. साल 2015-17 के दौरान लालू परिवार पर अकूत संपत्ति दर्ज करने के आरोप को उन्होंने खूब उछाला. वे तब तक शांत नहीं बैठे जब तक उन्होंने नीतीश को लालू से अलग नहीं करवा दिया. नीतीश ने उस समय भ्रष्टाचार को ही मुद्दा बनाया था.

सुशील मोदी दिखा पाएंगे कमाल!: सुशील मोदी और नीतीश कुमार की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है. सुशील मोदी को राज्यसभा भेजने से भी नीतीश नाराज थे. अब सुशील मोदी की बिहार की राजनीति पर वापसी पर तमाम पार्टियों के बीच बयानबाजी शुरू हो गई है. राजद का मानना है कि अब सुशील मोदी का जादू नहीं चलने वाला जबकि बीजेपी को पूरी उम्मीद है कि वो कमाल कर दिखाएंगे. वहीं राजनीतिक विशलेषक भी सुशील मोदी को बिहार की राजनीति में बीजेपी के लिए काफी अहम मानते हैं.

"सुशील मोदी अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए बयानबाजी कर रहे हैं. पार्टी के अंदर वह प्रसांगिक हो गए थे. अब वह इसी बहाने भाजपा में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं लेकिन इस बार वह कामयाब होने वाले नहीं हैं."- तनवीर हसन,राजद उपाध्यक्ष

"सुशील मोदी पर हम बहुत कुछ नहीं बोलना चाहते हैं क्योंकि वह नीतीश कुमार के मित्र हैं. सुशील मोदी सफेद झूठ बोल रहे हैं. अगर जदयू के बहाने भाजपा में उनका पुनर्वास हो जाता है तो हमें कोई परेशानी नहीं है."- ललन सिंह , राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू

"सुशील मोदी पार्टी के बड़े नेता हैं. वह कभी हाशिए पर नहीं गए थे. राजद और जदयू के लोग सुशील मोदी को लेकर अनर्गल टिप्पणी कर रहे हैं."- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता

"सुशील मोदी के कद और राजनीतिक समाज का व्यक्ति फिलहाल बिहार भाजपा में कोई नहीं दिखता. उनकी गैर मौजूदगी के चलते ही जदयू और भाजपा में सामंजस्य स्थापित नहीं हो सका. जिसका नतीजा हुआ कि गठबंधन टूट गया. सुशील मोदी की क्षमता को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर एक बार फिर भरोसा जताया है."- डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक

लालू के खिलाफ दायर की याचिका: सुशील मोदी को बिहार में लालू यादव का सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी माना जाता है. कभी छात्र राजनीति में लालू के साथ काम करने वाले सुशील मोदी ने अपोजिशन के लीडर के तौर पर पटना हाईकोर्ट में उनके खिलाफ पब्लिक इंटरस्ट लिटिगेशन दायर की. जिसे बाद में चारा घोटाले के नाम से जाना गया. हाल के वर्षों में भी उन्होंने लालू और उनके परिवार के खिलाफ घोटालों को लेकर मोर्चा खोल रखा था.

सुशील मोदी का व्यक्तिगत जीवन: सुशील मोदी का जन्म पटना में 5 जनवरी 1952 को हुआ था. उनके पिता का नाम मोती लाल मोदी और माता का नाम रत्ना देवी था. उन्होंने साल 1987 में जेसी जॉर्ज से शादी की. तब इनकी शादी में अटल बिहारी वाजपेयी भी शरीक हुए थे. उत्कर्ष और अक्षय अमृतांशु उनके दो बेटे हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.