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National Green Tribunal : एनजीटी ने कहा- बिहार सरकार पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तौर पर 4,000 करोड़ रुपये जमा कराए

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Published : May 5, 2023, 6:54 PM IST

National Green Tribunal
राष्ट्रीय हरित अधिकरण

ठोस और तरल अपशिष्ट का वैज्ञानिक रूपस से प्रबंधन करने में विफल होने पर एनजीटी (NGT) ने बिहार सरकार को पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तौर पर चार हजार करोड़ रुपये देने के लिए कहा है. उक्त आदेश एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस एके गोयल (chairperson Justice A K Goel) की पीठ ने दिया.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने ठोस और तरल अपशिष्ट का वैज्ञानिक रूप से प्रबंधन करने में नाकाम रहने पर बिहार सरकार को पर्यावरण क्षतिपूर्ति के तौर पर 4,000 करोड़ रुपये देने के लिए कहा है. एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल (chairperson Justice A K Goel) की पीठ ने निर्देश दिया कि क्षतिपूर्ति की राशि दो महीने के भीतर 'रिंग-फेंस खाते' में जमा कराई जाए. पीठ ने कहा कि इस खाते का संचालन केवल मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार राज्य में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए किया जाए.

रिंग-फेंस खाते में जमा राशि के एक हिस्से को विशिष्ट उद्देश्य के लिए आरक्षित रखा जाता है. पीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल (Justice Sudhir Agarwal) और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (Justice Arun Kumar Tyagi) के साथ विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद तथा ए सेंथिल वेल भी शामिल थे. पीठ ने कहा,'हम कानून के आदेश, विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय और इस न्यायाधिकरण के फैसलों का उल्लंघन कर, तरल और ठोस कचरे के वैज्ञानिक प्रबंधन में नाकाम रहने के कारण 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' के तहत राज्य पर 4,000 करोड़ रुपये का क्षतिपूर्ति शुल्क लगाते हैं.'

उसने कहा कि इस राशि का इस्तेमाल ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, पुराने कचरे के उपचार और जलमल उपचार संयंत्रों के निर्माण के लिए किया जाएगा, ताकि बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके. एनजीटी ने उल्लेख किया कि बिहार पर 11.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक पुराने कचरे के साथ प्रति दिन उत्पन्न होने वाले 4,072 मीट्रिक टन अशोधित शहरी कचरे के प्रबंधन का बोझ है. उसने कहा कि राज्य में तरल अपशिष्ट उत्पादन और उपचार में 219.3 करोड़ लीटर प्रति दिन का अंतर है.

पीठ ने सुझाव दिया कि उपयुक्त जगहों पर खाद बनाने में गीले कचरे का इस्तेमाल करने के लिए बेहतर विकल्पों का पता लगाया जाना चाहिए. उसने कहा कि विकेंद्रीकृत/पारंपरिक प्रणालियों या अन्य में शामिल वास्तविक खर्चों को देखते हुए जलमल उपचार संयंत्रों के लिए व्यय के पैमाने की समीक्षा की जा सकती है. एनजीटी ने निर्देश दिया, 'जिलाधिकारियों को सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की निगरानी की जिम्मेदारी खुद लेने समेत नियमित रूप से मासिक आधार पर मुख्य सचिव को रिपोर्ट देनी चाहिए और मुख्य सचिव द्वारा समग्र अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए.' इसने राज्य के मुख्य सचिव को वैधानिक समयसीमा के साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के साथ और उपचारात्मक उपाय करने के निर्देश दिए.

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(पीटीआई-भाषा)

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