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Geo-Politics: अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने पर नई दिल्ली सतर्क

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Published : Jan 12, 2022, 7:05 PM IST

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प्रतीकात्मक फोटो

यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस (USIP) की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल वित्तीय सहायता से ही अफगानिस्तान में आर्थिक पतन को नहीं रोका जा सकता है. इस्लामाबाद के साथ सकारात्मक संबंध (Positive relations with Islamabad) से स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने में मदद (Help promote sustainability and growth) मिलेगी. ईटीवी भारत के संवाददाता सौरभ शर्मा की रिपोर्ट.

नई दिल्ली : अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच तनाव (Tension escalates between Afghanistan and Pakistan) बढ़ने पर नई दिल्ली भी सतर्क (New Delhi also alert) है. नई दिल्ली के लिए पाकिस्तान व अफगानिस्तान के बीच संबंधों को सुगम (Facilitate relations between Pakistan and Afghanistan) बनाना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा (India's national security) के लिए प्रमुख मानदंड है.

जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, ऑर्गनाइजेशन एंड डिस्सआर्मामेंट में डिप्लोमेसी व डिस्सआर्मामेंट के प्रोफेसर डॉ स्वर्ण सिंह ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान की कठिनाई इस बात की सराहना करना है कि तालिबान अब एक आतंकवादी संगठन नहीं है. यह अब एक राज्य है. इसलिए उनकी प्राथमिकताएं, उनकी आवश्यकताएं हैं बहुत अलग होने जा रही हैं. वे उस धुन को नहीं गाने जा रहे हैं जो पाकिस्तान चाहता है कि वे गाएं.

डॉ सिंह ने कहा कि उनकी मुख्य चुनौती पाकिस्तान के माध्यम से तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना और मानवीय सहायता की सुविधा प्रदान करना है. दरअसल पाकिस्तान अकेले मान्यता प्रदान करने में सक्षम नहीं है. यह तनाव वास्तव में अब जमीन पर प्रतिबिंबित हो रहा है. यह तालिबान के केंद्रीय नेतृत्व की नहीं बल्कि भारत के लिए भी अच्छी खबर नहीं है.

अफगानिस्तान में निरंतर अस्थिरता वहां मानवीय सहायता प्रदान करने की सीमाएं निरंतर भारतीय सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं. क्योंकि अफगानिस्तान को सभी अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता को पाकिस्तान से होकर गुजरना होगा और पाकिस्तान इसमें बड़ा सहायक होगा. तालिबान शासन को अंतरराष्ट्रीय वैधता प्राप्त करने में पाकिस्तान की कठिनाई यह है कि तालिबान अब एक राज्य के रूप में कार्य कर रहा है. न कि एक आतंकवादी संगठन के रूप में. यही मुद्दा है जो तालिबान-पाकिस्तान के बीच गहरी उथल-पुथल पैदा कर रहा है.

प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि एक महत्वपूर्ण पहलू जो नई दिल्ली के लिए अत्यंत चिंता का विषय बन गया है. वह है लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन, जो भारत पर विभिन्न घातक हमलों के लिए जिम्मेदार हैं, अफगानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में पिछली सरकार के खिलाफ तालिबान के साथ लड़ रहे हैं. अब जब तालिबान वापस सत्ता में आ गया है तो यह ध्यान रखना होगा कि इन इस्लामी उग्रवादी संगठनों की कश्मीर में गहरी जड़ें हैं, जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक खतरा हैं.

प्रो स्वर्ण सिंह ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान की विदेश नीति के हथियार रहे हैं. चाहे वह अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थन में हो या भारत के लिए लगातार परेशानी पैदा करने में शामिल हों. लेकिन इन संगठनों को यह भी एहसास है कि पाकिस्तान अधिक जांच के दायरे में है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का तनाव तालिबान पर बना रहता है. इसलिए वे संभावित रूप से अधिक प्रभावी होने के लिए अपने आधार को अफगानिस्तान में स्थानांतरित करना चाहेंगे.

अगर अफगानिस्तान में अराजकता जारी रहती है तो ISIS, LET, JEM आदि संभावित रूप से अफगानिस्तान में उन जगहों को खोज सकते हैं जो उनके लिए अधिक बेहतर हैं. इस मायने में अधिक अराजकता, अधिक हिंसा निश्चित रूप से भारत की सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाली है. यहां यह ध्यान देने योग्य है कि ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो यह बताती हैं कि कजाकिस्तान की राजधानी अल्माटी में हिंसा को पाकिस्तान के तब्लीगी जमात जेम्मा द्वारा अफगानिस्तान-प्रशिक्षित कट्टरपंथियों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया था.

इसलिए तालिबान 2.0 द्वारा उत्पन्न आसन्न खतरे को देखते हुए नई दिल्ली की चिंताएं व्यावहारिक लगती हैं. इसके अलावा कई आतंकवादी संगठन हैं जो तालिबान के अधिग्रहण के ठीक बाद मध्य एशियाई देशों में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. इस पर डॉ स्वर्ण सिंह ने कहा कि इन मध्य एशियाई गणराज्यों में कई संगठन मौजूद हैं. हालांकि उन्हें काफ समय से हाशिए पर रखा गया और शासन के साथ लगभग निष्प्रभावी कर दिया गया.

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हालांकि अब अफगानिस्तान में बढ़ी अराजकता उन्हें दो तरह से मदद करेगी. एक, सत्ता पर कब्जा करने के लिए तालिबान की सफलता एक ऐसा उदाहरण है जो इन संगठनों में से कुछ को प्रेरित करेगा. दूसरा, अपने संघर्ष को जारी रखने के लिए वे सक्रिय हो सकते हैं. अफगानिस्तान में अधिक अराजकता का मतलब मध्य एशिया से लेकर कश्मीर तक, पाकिस्तान में इन संगठनों में से कुछ के लिए अधिक संभावना हो जाएगी.

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