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5500 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी कर देवप्रयाग पहुंची नीलकंठ गंगा परिक्रमा, जानें क्यों है यह खास

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Published : Oct 25, 2021, 3:18 PM IST

16 दिसंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम से 6 लोगों ने पहली नीलकंठ गंगा परिक्रमा पदयात्रा शुरू की थी. 5500 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके परिक्रमा दल उत्तराखंड के देवप्रयाग पहुंचा है. देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी का संगम है. खास बात यह है कि गंगा को जीवित प्राणी मानते हुए इसको किसी भी परिस्थिति में नहीं लांघने का संकल्प लिया गया है.

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श्रीनगर : गंगा नदी को निर्मल और स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से त्रिवेणी संगम प्रयागराज से शुरू हुई विश्व की पहली नीलकंठ गंगा परिक्रमा पदयात्रा 5,500 किलोमीटर की दूरी तय कर गंगा तीर्थ देवप्रयाग पहुंची है. करीब साढ़े 6 हजार किमी की यह पदयात्रा जल्द ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज की जाएगी.

अनोखी है ये पदयात्रा

पदयात्रा की अनोखी बात ये है कि इस दौरान गंगा को पार नहीं करना है. बता दें कि, 16 दिसंबर 2020 को शुरू हुई परिक्रमा पदयात्रा की 6 लोगों द्वारा शुरुआत की गई थी. गंगा को जीवित प्राणी मानते हुए इसको किसी भी परिस्थिति में नहीं लांघने के संकल्प के कारण यात्रा में 2 ही साहसी पदयात्री पाटिया अल्मोड़ा के रिटायर्ड कर्नल आरपी पांडे (65) व अहमदाबाद गुजरात के किसान हिरेन भाई पटेल (64) ही रह गए हैं.

देवप्रयाग पहुंची नीलकंठ गंगा परिक्रमा

ये है यात्रा का उद्देश्य

इस यात्रा का मूलमंत्र है- 'गंगा का सदा रहे साथ'. नीलकंठ गंगा परिक्रमा यात्रा के दो यात्री एक दिन में 40 से अधिक किलोमीटर पैदल चलते हैं. नीलकंठ गंगा परिक्रमा यात्रा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से शुरू हुई. वहां से पदयात्रा पश्चिम बंगाल में गंगा सागर तक गई. वहां यज्ञ का आयोजन किया गया. यज्ञ के माध्यम से उद्घगम से गंगा सागर तक गंगा की निर्मलता और अविरलता की प्रार्थना की गई. गंगा सागर से पदयात्रा झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश होते हुए मां गंगा के मायके उत्तराखंड तक पहुंच गई है.

60 वर्ष से ऊपर के हैं दोनों गंगा भक्त

प्रयागराज से जब यात्रा शुरू हुई थी तो तब पदयात्रा दल में 6 सदस्य थे. दुनिया की सबसे कठिन इस यात्रा में अब सिर्फ दो लोग हैं. बाकी सदस्य बीच-बीच में यात्रा छोड़ते चले गए. अब जो दोनों पदयात्री यात्रा को पूरा कर रहे हैं उनकी उम्र 60 साल से ऊपर है. लेकिन उम्र को धता बताते हुए दोनों गंगाभक्त भागीरथी को पार नहीं करने की शपथ के कारण गंगनानी से हर्षिल तक की करीब 22 किमी दुर्गम घाटी को पार करते हुए 16 मई को गंगोत्री पहुंचे थे.

कोरोना के कारण रोकनी पड़ी थी यात्रा

कोरोना के कारण वहां यात्रा स्थगित करनी पड़ी थी. 18 सितंबर को यात्रा को आगे बढ़ाया गया. नीलकंठ गंगा परिक्रमा यात्रा के दो सदस्यों के देवप्रयाग पहुंचने पर 5500 हजार (साढ़े पांच हजार) किलोमीटर की यात्रा पूरी हो चुकी है.

1100 किलोमीटर यात्रा है शेष

जोश से लबरेज 65 वर्षीय रिटायर्ड कर्नल आरपी पांडे ने बताया कि अब 1100 किलोमीटर की यात्रा शेष है. इसे बदरी-केदार के पुराने पैदल मार्ग से होकर पूरा किया जाएगा. नीलकंठ गंगा परिक्रमा यात्रा ऋषिकेश-हरिद्वार होते हुए प्रयागराज में पूरी होगी.

ऐसी अनोखी यात्रा का कोई इतिहास नहीं

सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि आज तक गंगा को पार किए बिना उसकी परिक्रमा करने का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता है. ऐसे में माना जा रहा है कि नीलकंठ गंगा परिक्रमा पदयात्रा के जरिये एक नये मार्ग की ऐतिहासिक खोज हुई है.

गंगोत्री से गंगासागर है 2500 किमी दूर

गंगोत्री से गंगासागर की दूरी 2500 किलोमीटर है. गंगोत्री गंगा का उद्गम स्थल है. यहां से देवप्रयाग तक इसे भागीरथी कहा जाता है. सतोपंथ ग्लेशियर से निकलकर बदरीनाथ-नंद्रप्रयाग-कर्णप्रयाग-रुद्रप्रयाग-श्रीनगर होकर देवप्रयाग पहुंचने वाली अलकनंदा यहां भागीरथी में मिलती है. देवप्रयाग में भागीरथी और गंगा के मिलने से संगम बनता है और यहीं से इन दो नदियों के मिलने के बाद गंगा बनती है.

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