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शिकागो स्पीच से विश्व में छा गये थे स्वामी विवेकानंद, पूरी दुनिया के युवाओं के लिए हैं प्रेरणास्रोत

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 11, 2024, 7:31 AM IST

National Youth Day
राष्ट्रीय युवा दिवस

Birth Anniversary of Swami Vivekanand: स्वामी रामकृष्ण परमहंस का धर्म के प्रति नजरिया पूर्णतः स्पष्ट था. उनका मानना था कि ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा मानवता की सेवा है. इस बात से स्वामी विवेकानंद काफी प्रभावित हुए और उनके शिष्य बन गये. आजीव उनके शिष्य रहे. स्वामी विवेकानंद का जीवन आज के समय में युवाओं के लिए आदर्श है. पढ़ें पूरी खबर..

हैदराबाद: स्वामी विवेकानंद आज के समय में पूरी दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वे एक निर्विवाद संत व आध्यमिक गुरु के जाने जाते हैं. वे धर्म-अध्यात्म, कला-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संगीत सहित कई विषयों के जानकार थे. उनका जन्म पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 12 जनवरी 1963 को हुआ था. यूथ के सबसे बड़े आइकोन स्वामी विवेकानंद की जयंती को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस या नेशनल यूथ डे के रूप में मनाया जाता है.

National Youth Day
राष्ट्रीय युवा दिवस

गये थे रसगुल्ला खाने, बन गये संत
स्वामी विवेकानंद बचपन से रसगुल्ला काफी पसंद करते थे. स्वामी रामकृष्ण परसहंस के शिष्य और रिश्ते में स्वामी विवेकानंद के भाई रामचंद्र दत्ता ने उन्हें कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर में चलने के लिए कहा. इस दौरान रामचंद्र ने कहा कि दक्षिणेश्वर मंदिर चलो, वहां स्वामी रामकृष्ण परसहंस सबों को रसगुल्ला खिलाते हैं. इस दौरान स्वामी विवेकानंद रसगुल्ला के चक्कर में वहां जाने के लिए तैयार हो गये और भाई से कहा कि अगर मुझे वहां रसगुल्ला नहीं मिला तो फिर स्वामी रामकृष्ण परसहंस को पूछेंगे. संयोग से वहां जाने पर रामकृष्ण परसहंस ने उन्हें रसगुल्ला खिलाया. शुरूआती समय में विवेकानंद का स्वामी रामकृष्ण परसहंस के प्रति उतना झुकाव नहीं था. बाद में परसहंस से वे काफी प्रभावित हुए और उनका शिष्य बन गये और आजीवन उनके साथ रहे.

National Youth Day
राष्ट्रीय युवा दिवस

शब्द ज्ञान सिखने की उम्र में किताबें कर जाते थे याद
स्वामी विवेकानंद बचपन में काफी शरारती थे.घर-परिवार के लोग उनकी शरारत को रोकने के लिए उनपर ठंडा पानी डाल देते हैं. बचपन से उनका यादास्त काफी तेज थी. कहा जाता है कि शब्द ज्ञान सिखने की उम्र में वे जिन किताबों को पढ़ते थे, वह उनको कंठस्त हो जाता था.

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राष्ट्रीय युवा दिवस

आजीवन ब्रह्मचारी रहे स्वामी विवेकानंद
बचपन से ही स्वामी विवेकानंद साधु-संतों के पीछे भागते थे. यही नहीं कई बार वे अपने घर से कीमती सामाग्री लेकर साधु-संतों को दान कर देते थे. साधु-संतों की आवाज मोहल्ले से आने पर घर वाले संतों के पीछे उन्हें जाने से रोकने के लिए उन्हें स्वामी विवेकानंद को घर में बंद कर देते हैं. घरवालों ने स्वामी विवेकानंद को संतों के पीछे जाने से रोकने में तो सफल रहे, लेकिन जीवन में उन्हें संत बनने से नहीं रोक पाये. स्वामी विवेकानंद आजीवन ब्रह्मचारी रहे.

National Youth Day
स्वामी रामकृष्ण परसहंस

मां चाहती थीं कि बेटे का घर-परिवार बसे..
स्वामी-विवेकानंद की मां चाहती थीं कि बेटे की शादी हो और उनका घर-परिवार बसे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. घर वालों ने उनकी शादी एक अच्छे परिवार में कर दी गई. लेकिन शादी से कुछ समय पहले ही उनके पिता का निधन हो गया और उनकी शादी सदा के लिए टल गया. बता दें कि उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परसहंस भी स्वामी विवेकानंद की शादी के खिलाफ थे. रामकृष्ण परसहंस का मानना था कि स्वामी विवेकानंद किसी एक व्यक्ति या परिवार के नहीं हैं. पूरी दुनिया का उनपर हक है. अंततः ऐसा ही हुआ.

National Youth Day
स्वामी विवेकानंद की जयंती

मैसूर महाराज की मदद से गये शिकागो
स्वामी विवेकानंद एक बार मैसूर के महाराजा से मिलने गये थे. वहां महराजा ने स्वामी से पूछा की बताएं मैं आपके लिए क्या कर सकते है. तो उन्होंने कहा मैं पश्चिम जाना चाहता हूं. भारत का दर्शन का प्रचार करना चाहता हूं. इस पर महाराज ने टिकट व अन्य सुविधा के लिए आर्थिक मदद करने का प्रस्ताव दिया. स्वामी विवेकानंद ने पहले इसके लिए इनकार किया. बाद में काफी समझाने पर वे इसके लिए तैयार हुए.

30 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंचे थे स्वामी विवेकानंद
31 मई 1893 को स्वामी विवेकानंद चेन्नई से पेन्नसुलर नामक पानी वाली जहाज से अमेरका के लिए रवाना हुए. चेन्नई से वे कोलंबो पहुंचे. वहां वे डिक्लाइंड बुद्धा की मूर्ति के पास गये. बुद्धा को देख वे काफी प्रभावित हुए. इसके बाद वे पेनांग, सिंगापुर, हॉकांग होते हुए जापान के नागाशाकी पहुंचे. जापान में कई दिनों के प्रवास के बाद वे फिर से पानी वाले जहाज से अमेरिका के लिए रवाना हुए. 30 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंच गये. अमेरिका प्रवास के दौरान वे मैक्स मुलर, बिपिन चंद्र पाल जैसे कई विद्वानों से मिले. उन्होंने ऑक्सफोर्ड जैसे कई संस्थानों में समय बिताया.

शिकागो स्पीच से दुनियाभर में हुए पॉपुलर
धर्म संसद में भाषण देने के लिए उन्हें 30 वक्ताओं के बाद नंबर था. उन्होंने आयोजकों से अनुरोध किया कि उनको सबसे अंत में अपनी बात रखने का अवसर दिया जाय. इसपर आयोजक मंडल तैयार हो गया. मंच पर जैसे ही स्वामी विवेकानंद पहुंचे तो उन्होंने सिस्टर्स और ब्रदर्स ऑफ अमेरिका से अपना संबोधन शुरू किया तो वहां मौजूद सभी लोग तालियां बजाते हुए खड़े हो गये और 2 मिनट तक लगातार तालियां बजती रहीं. इस दौरान कई घंटों तक धर्म-संस्कृति और अध्यात्म पर अपनी बातों को रखा. इस भाषण को शिकागो स्पीच के नाम से दुनिया जाता है. इस भाषण के बाद अमेरिका में स्वामी विवेकानंद वहां स्टार बन गये. अमेरिका में वे 1.5 साल तक रुके. इस दौरान उनकी ख्याति पूरी दुनिया में हो चुकी थी. भारत लौटने पर उनका जोरदार स्वागत हुआ. भारत आने के उन्होंने देश भर का दौरा किया.

बकरी का दूध पसंद करते थे स्वामी विवेकानंद

  1. स्वामी विवेकानंद खाने-पीने के काफी शौकीन थे.
  2. धर्म-अध्यात्म की किताबें खरीदने से पहले कुकिंग की पुस्तकें खरीदते थे.
  3. वे अमरूद, मुलायम नारियल में चीनी के साथ खाना पसंद करते थे.
  4. आइस्क्रीम उनकी कमजोरी थी, जिसे वे कुल्फी कहते थे.
  5. अमेरिका दौरे के समय में शून्य से कम तापमान पर वे चॉकलेट आइस्क्रीम खाते थे.
  6. महात्मा गांधी की तरह वे बकरी का दूध काफी पसंद करते थे.

नरेंद्रनाथ दत्ता से बने स्वामी विवेकानंद

  1. स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था.
  2. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था.
  3. 1883 में स्वामी विवेकानंद ने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की पढ़ाई पूरी की.
  4. इसके बाद उन्होंने कोलकाता से विद्या सागर कॉलेज से लॉ की डिग्री हासिल की.
  5. वे किताबें पढ़ने के अलावा संगीत में भी काफी रूचि रखते थे.
  6. हारमोनियम, पखावत, सितार, तबला आदि वाद यंत्र वे बेहतरीन तरीके से बजाते थे.
  7. क्लासिकल संगीत, इंस्टुमेंटल और वोकल की अच्छी जानकारी थी.
  8. नौकायान उन्हें काफी पसंद था. इसके अलावा शतरंज पर उनकी अच्छी पकड़ थी.
  9. लाठी भांजने की कला (स्टीक फेंसिंग) में उन्हें महारथी थे.
  10. स्वामी विवेकानंद कुश्ती के काफी शौकीन थे.
  11. 1881 में वे पहली बार स्वामी परमहंस से मिले. कई मुलाकातों के बाद वे काफी प्रभावित हुए और शिष्य बन गये.
  12. 1885 में रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया.
  13. इसके बाद वे लगातार उनकी सेवा करते रहे.
  14. 16 अगस्त 1896 को निधन परहंस का निधन हो गया.
  15. इसके स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परसहंस की याद में रामकृष्ण मिशन स्थापित किया.
  16. 4 जुलाई 1902 में महज 40 साल से कम उम्र में उनका निधन हो गया था.
  17. जीवन का अंतिम समय उन्होंने हावड़ा स्थित बेलूर मठ में गुजारा.
  18. 39 साल 5 माह 21 दिन में उन्होंने प्राण त्याग दिया.
  19. सिस्टर निवेदिता उनकी शिष्या हैं.

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