ETV Bharat / bharat

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट से रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति पहले से भी बदतर होगी

author img

By

Published : Feb 18, 2021, 8:59 PM IST

myanmar
myanmar

'ओआरएफ नेबरहुड रीजनल स्टडीज इनिशिएटिव रिसर्च प्रोजेक्ट' के तहत बंगाल क्षेत्र की खाड़ी के भीतर रोहिंग्या मुद्दे पर काम कर रहे ओआरएफ कोलकाता की जूनियर फेलो श्रीपर्णा बनर्जी ने ईटीवी भारत से कहा कि रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति खराब होने जा रही है. मुझे नहीं लगता कि चल रहे सैन्य तख्तापलट से कोई बदलाव होने वाला है, बल्कि डर है कि उनकी जान कहीं खतरे में न पड़ जाए. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट...

नई दिल्ली : नेता आंग सान सू की की नजरबंदी और सैन्य शक्ति द्वारा जब्ती करने के बाद म्यांमार में स्थिति अस्थिर हो रही है. हर गुजरते दिन के साथ यह और भयावह हो रही है. यह देखा जा सकता है कि म्यांमार के लोकतंत्र का भविष्य दांव पर है. देश में सभी अराजकता के बीच एक सवाल जो उठ खड़ा हुआ है, वह यह है कि रोहिंग्या शरणार्थियों का भाग्य सैन्य शासन के तहत सबसे उपेक्षित और भेदभाव वालों में से एक होगा.

वर्तमान में म्यांमार में एक लाख से अधिक लोगों को हिरासत में रखा गया है. जो पहले से ही म्यांमार की सेना द्वारा संरक्षित हैं. रोहिंग्याओं को स्वतंत्र रूप से बाहर जाने या उचित भोजन परोसने और उचित देखभाल करने की अनुमति नहीं है. यह पूछे जाने पर कि प्रत्यावर्तन प्रक्रिया कैसे होगी? श्रीपर्णा ने कहा कि सैन्य प्रत्यावर्तन प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने वाला है. उन्होंने कहा कि म्यांमार की सेना के सत्ता में होने के बाद जो प्रत्यावर्तन प्रक्रिया पहले व्यवस्थित तरीके से हुई थी, वह वास्तव में में सत्ता के कारण थी. क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में आने के बाद अंतिम प्रत्यावर्तन का प्रयास विफल हो गया था.

श्रीपर्णा बनर्जी से खास बातचीत.

सेना से नहीं कोई उम्मीद

श्रीपर्णा बताती हैं कि हाल ही में इस बात पर चर्चा हुई थी कि प्रत्यावर्तन के मामले सामने आ सकते हैं. लेकिन समस्या यह है कि प्रत्यावर्तन प्रक्रिया होने के बाद क्या होगा. यहां तक ​​कि बांग्लादेश क्षेत्र के भीतर रहने वाले रोहिंग्या भी इस बात को लेकर बेहद आशंकित हैं कि अगर वे म्यांमार वापस जाते हैं, तो परिणाम क्या होंगे. क्योंकि उनकी नागरिकता, सुरक्षा आदि सहित कुछ मांगें हैं और इन सभी मांगों को म्यांमार की सेना ने नकार दिया था. लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में रहने के दौरान उम्मीद की कुछ झलक दिख रही थी, लेकिन अब म्यांमार की सेना के साथ ऐसा होने की उम्मीद नहीं है.

शिविरों की स्थिति बेहद खराब

शिविर क्षेत्रों की स्थिति बेहद अशुभ है. श्रीपर्णा ने कहा कि 2019 के बाद से रखाइन राज्य में इंटरनेट कनेक्शन की अनुपस्थिति ने स्थिति को और बदतर बना दिया है. अगर क्षेत्र में कोई हिंसा होती है, तो लोग व्यवधान का कारण नहीं जान पाएंगे. उन्होंने कहा कि उन इलाकों में पूरी तरह से ब्लैकआउट हो गया है. श्रीपर्णा बताती हैं कि अराकन और म्यांमार की सेना के बीच आंतरिक संघर्ष के कारण खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करते समय विश्व खाद्य कार्यक्रम को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. यह विस्थापित लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है. वे कहती हैं कि तख्तापलट के बाद यह चुनौतियां बढ़ेंगी, क्योंकि म्यांमार की सेना को रोहिंग्याओं के जीवन की परवाह नहीं.

बढ़ा रोहिंग्याओं का जोखिम

सैन्य कब्जे के साथ ही रोहिंग्या के लिए जोखिम बढ़ गया है. जैसा कि एक बार संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा वर्णित किया गया है वे म्यांमार के कई जातीय अल्पसंख्यकों में से वे एक हैं. खबरों के मुताबिक 2017 की शुरुआत में म्यांमार में रोहिंग्या की संख्या लगभग एक मिलियन थी. लेकिन बाद में उसी साल जब 25 अगस्त को सामूहिक पलायन शुरू हुआ तो 700000 से अधिक रोहिंग्या परिणाम स्वरूप सीमा पार बांग्लादेश भाग गए. रोहिंग्याओं के खिलाफ म्यांमार सेना द्वारा अभियान शुरू किया गया. इसके बाद सेना ने कहा कि यह रोहिंग्या चरमपंथियों द्वारा म्यांमार के सुरक्षा बलों पर समन्वित हमलों का जवाब दे रहा है. बाद में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक मामले में नरसंहार के आरोपों का सामना करना पड़ा.

लोकतंत्र का भाग्य विचाराधीन

ईटीवी भारत ने सूत्रों से जानकारी ली है कि राखीन राज्य में अनुमानित 600000 रोहिंग्या हैं, जिनमें से लगभग 126000 आंतरिक रूप से विस्थापित हैं. 2012 के सांप्रदायिक हिंसा के बाद राज्य के मध्य भाग में स्थापित शिविरों में हैं. वे उचित भोजन, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा के उपयोग के साथ सैन्य शासन की नजर में सबसे दुखी राज्य में रहते हैं. म्यांमार में चल रहे सैन्य तख्तापलट ने पहले ही देश के लोकतंत्र के भाग्य को विचाराधीन कर दिया है. रोहिंग्याओं की पहले से ही कमजोर और व्यथित स्थिति के बारे में बात की जाए, तो उनके लिए उम्मीद धूमिल हो रही है.

यह भी पढ़ें-टाइम इमर्जिंग लीडर्स : दुनिया के 100 लोगों में चंद्रशेखर समेत पांच भारतवंशी हस्तियां शामिल

म्यांमार से हजारों लोगों के लौटने की संभावनाएं अधिक हैं, क्योंकि तख्तापलट ने उनके बीच आपत्ति और भय पैदा कर दिया है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.