भोपाल। गायों को गौमाता कहने वाली भाजपा सरकार गायों को लेकर सुर्खियों में रहती है. गायों की मौतों पर किरकिरी झेलने वाली शिवराज सरकार अब गायों के शवों को खुले में डालने के बजाए उनकी समाधि बनाकर उनको सम्मान देगी. अब गोवंश की मौत होने पर उन्हें खुले स्थानों पर फेंकने के बजाए सम्मानपूर्वक समाधि दी जाएगी. इसके आदेश भी सरकार ने पंचायतों तक को दे दिए हैं.
गांवों में बनेगी मृत गायों की समाधि: गायों की समाधि के लिए बाकायदा सरकार ने नियम जारी किए हैं. जिसमें लिखा गया है कि एक गाय की समाधि के लिए कितना गहरा गड्ढा खोदना है, इसकी फंडिंग मनरेगा स्कीम के तहत होगी. समाधि के बाद माना जाता है कि 90 दिन में गाय का शव खाद बन जाएगा, जिसके बाद वो खाद सरकार किसानों के साथ-साथ अन्य लोगों को देगी. यह फैसला सरकार ने लिया है, गौ संवर्धन बोर्ड इस स्कीम का क्रियान्वयन कराएगा.
कलेक्टरों और अन्य अधिकारियों को निर्देश: गौ संवर्धन बोर्ड ने गाय के शवों के निष्पादन की योजना बना ली है. गो संवर्धन बोर्ड और विभागीय अधिकारियों ने चिंतन मंथन के बाद मृत मवेशियों से समाधि खाद बनाने की योजना तैयार की है. पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग ने हाल ही में प्रदेश के सभी कलेक्टरों और अन्य अधिकारियों को गोवंश के शवों के सम्मानपूर्वक निष्पादन संबंधी निर्देश जारी कर दिए हैं. वैज्ञानिक तौर-तरीके के साथ समाधि कम्पोस्ट पिट निर्माण की विधि भी समझाई गई है.
गोवंश की मृत्युदर 18 फीसदी: प्रदेश में समाजसेवी संस्थाओं और मनरेगा के तहत जिलों में 1762 गोशालाएं संचालित हो रही हैं. इनमें 2 लाख 77 हजार गोवंश हैं. ज्यादातर गोवंश वृद्ध, बीमार, अशक्त और निराश्रित हैं. इस कारण उनमें मृत्यु दर भी ज्यादा है. प्रदेश में अभी गोवंश की औसत मृत्यु दर 18 प्रतिशत बताई जा रही है. इस हिसाब से हर साल करीब 45 हजार से ज्यादा गोवंश की मौतें होती है.
कैसा होगा गोवंश समाधि का साइज: संचालक पशुपालन विभाग ने समाधि कम्पोस्ट पिट की डिजाइन तैयार की है. जिसमें 1.8 मीटर लंबे, 1.2 मीटर चौड़े और इतने ही गहरे गड्ढे बनाए जाएंगे. हर गड्ढे के तल में आधा फीट ताजे गोबर की तह बिछाने के बाद गोवंश के शव को उसमें उतारकर 20 किलोग्राम चूना और इतना ही नमक डालने को कहा गया है. गड्ढा मिट्टी से भरने के 6 माह बाद समाधि खाद तैयार हो जाएगी. गौ संवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष अखिलेश्वरानंद का कहना है कि, मध्य प्रदेश में हम देखते हैं कि गाय की मौत हो जाती है लेकिन उसे उठाने वाला कोई नहीं होता. पहले के जमाने में मोची हुआ करते थे, अब समस्या यह है की गायों के शव खुले में पड़े रहते हैं, जिससे सरकार की भी किरकिरी होती है. इन्हीं समस्याओं को देखते हुए हमने फैसला लिया है कि गांव के स्तर पर गायों के शवों की समाधि बनाई जाएगी और 6 महीने बाद कुछ समाधि से बनी खाद को बेचा जाएगा.
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कैसे होगा बजट का मैनेजमेंट: गो संवर्धन बोर्ड का मानना है कि अमूमन 100 गायों की गौशाला में औसतन हर साल करीब 20 गायों की मौत हो जाती है. हर 6 माह में 8 गड्ढों की जरूरत पड़ेगी. मनरेगा से गड्ढा और गोशाला की आय व बजट से चूना-नमक जुटाया जाएगा. गांवों में मनरेगा योजना के अंतर्गत 100 से अधिक गायों के लिए संचालित सभी गोशालाओं को इस योजना में शामिल करने के निर्देश दिए गए हैं.