साइबर क्राइम के खिलाफ लड़ाई में बाधा बन रही है फोरेंसिक ट्रेनिंग लैब की कमी : संसदीय समिति

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Published : Aug 20, 2021, 8:09 PM IST

साइबर फोरेंसिक ट्रेनिंग लैब

गृह मामलों को लेकर गठित किए गए एक संसदीय पैनल ने पाया है कि ऐसी प्रयोगशालाओं की अनुपस्थिति साइबर अपराध के खिलाफ भारत की लड़ाई (India's fight against cyber crime) में बाधा बन रही है. अब तक 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसी प्रयोगशालाएं चालू की गई हैं.

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय (Union Ministry of Home Affairs ) ने भारत भर में साइबर फोरेंसिक सह प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं (cyber forensic cum training laboratories) को चालू करने के लिए कदम उठाए हैं. दरअसल, गृह मामलों को लेकर गठित किए गए एक संसदीय समिति ने पाया है कि ऐसी प्रयोगशालाओं की अनुपस्थिति साइबर अपराध के खिलाफ भारत की लड़ाई (India's fight against cyber crime) में बाधा बन रही है.अब तक 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसी प्रयोगशालाएं चालू की गई हैं.

साइबर फोरेंसिक सह प्रशिक्षण प्रयोगशालाएं अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्थापित की गई हैं.

गृह मंत्रालय ने अब तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को साइबर फोरेंसिक सह प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम (cyber crime prevention against women and children) योजना के तहत 96.13 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया है.

इसके अलावा इसके लिए 15,500 से अधिक पुलिस कर्मियों, न्यायिक अधिकारियों और अभियोजकों को साइबर अपराध जागरूकता, जांच, फोरेंसिक आदि में प्रशिक्षण प्रदान किया गया है.

यह विकास ऐसे समय में महत्वपूर्ण हो गया है जब भारत भर के राज्य बड़ी संख्या में साइबर अपराध के मामले दर्ज कर रहे हैं.

ईटीवी भारत के पास उपलब्ध गृह मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि 2017 से 2019 के बीच देश में साइबर अपराध के 93,590 मामले सामने आए.

इसी अवधि के दौरान देश में साइबर आतंकवाद (cyber terrorism) के 46 मामले सामने आए हैं. राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा ( Rajya Sabha MP Anand Sharma ) की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने प्रौद्योगिकी की प्रगति और विभिन्न प्रकार उभरते साइबर अपराधों के मद्देनजर संयुक्त साइबर अपराध समन्वय टीमों (joint cyber crime coordination teams) को समय-समय पर अपग्रेड करने का सुझाव दिया.

इस तथ्य के बाद कि साइबर अपराध भौगोलिक सीमाओं (geographical boundaries) को पार कर जाते हैं, समिति ने गृह मंत्रालय (ministry of home affairs) से इस मुद्दे को विदेश मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (ministry of electronics and information technology ) के साथ उठाने की सिफारिश करती है, ताकि विभिन्न देशों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एक समझ विकसित हो सके, विशेष रूप से उन लोगों के साथ, ऐसे देश जो साइबर अपराधों के अधिकतम मामलों से जुड़े हैं.

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गौरतलब है कि भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (14सी) योजना के तहत गृह मंत्रालय ब्रिक्स, एससीओ, ईयू जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर विदेश मंत्रालय के माध्यम से और यूएसए, इंटरपोल आदि के साइबर अपराध समन्वय केंद्र जैसी विभिन्न एजेंसियों के साथ लगातार जुड़ा हुआ है.

समिति ने सुझाव दिया कि शिकायतों की आसान और तत्काल रिपोर्टिंग की सुविधा के लिए, वन स्टॉप सेंटर (one stop centres), केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे हेल्पलाइन नंबर 112 (ERSS) और राज्य हेल्पलाइन नंबरों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर से संबंधित अपराधों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

हाल ही में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे गए एक परामर्श में, MHA ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए पर्याप्त रूप से जागरूकता पैदा करने को कहा है.

हालांकि, इस तथ्य से अवगत कि वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (virtual private network) सेवाएं और डार्क वेब (Dark Web ) साइबर सुरक्षा वॉल (cyber security walls) को बायपास कर सकते हैं और अपराधियों को ऑनलाइन गुमनाम रहने की अनुमति दे सकते हैं. समिति ने गृहमंत्रालय को ऐसे वीपीएन इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की मदद से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ समन्वय करने और स्थायी रूप से ब्लॉक करने की सिफारिश की है.

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