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केदारनाथ आपदा की 10वीं बरसी: 2013 का वो खौफनाक मंजर, 10 सालों में कितना बदले और संभले हम

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Published : Jun 16, 2023, 10:08 AM IST

Updated : Jun 16, 2023, 6:12 PM IST

Kedarnath disaster
केदारनाथ पुनर्निर्माण

16 जून 2013 उत्तराखंड के इतिहास में एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हो चुकी है जो कि आगे कई सौ सालों तक अलग अलग परिपेक्ष में याद की जाएगी. 2013 की केदारनाथ आपदा को 16 जून 2023 को 10 साल पूरे हो गए हैं. इन 10 सालों में हमने खुद को मजबूत किया है या फिर समय के साथ साथ हम इसे एक पुराने जख्म की तरह भूलने लगे हैं. आइए कुछ पन्ने पलट के देखते हैं.

2013 से 2023 तक बदला केदारपुरी का स्वरूप.

देहरादून (उत्तराखंड): वर्ष 2013 में समय से कुछ पहले मानसून ने उत्तराखंड में दस्तक दे दी थी. जून पहले सप्ताह से ही प्रदेश में बारिश का माहौल बनने लगा था. जून महीने का दूसरा सप्ताह आते आते मानसून ने पूरी रफ्तार पकड़ ली थी. मंजर यह था कि पूरे प्रदेश भर में लगातार बारिश हो रही थी. वहीं 15 जून से लगातार हो रही बारिश 17 जून की सुबह तक रही. इस दौरान सामान्यतः छोटे-मोटे नुकसान की उम्मीद की जा रही थी. लेकिन केदारनाथ से एक अधिकारी द्वारा भेजी गई एक तस्वीर ने सब की चिंताएं बढ़ा दीं.

Kedarnath disaster
केदारनाथ आपदा का मंजर सिहराने वाला था

उस दिन खचाखच भरा था केदारनाथ धाम: दरअसल सूचना आई थी कि केदारनाथ में भारी बारिश हुई है. जिसके चलते वहां पर कुछ नुकसान हुआ है. लेकिन जब 17 की सुबह मौसम छटा तो जो मंजर सामने था वह सच में दिल को झकझोरने वाला था. दरअसल एक भरे पूरे केदारनाथ धाम में जहां पर पूरा केदारनाथ धाम यात्रा सीजन की पीक की वजह से यात्रियों से खचाखच भरा हुआ था वह केदारनाथ तकरीबन 90 फ़ीसदी मलबे में तब्दील हो गया था.

Kedarnath disaster
2013 की आपदा में बहुत नुकसान हुआ था

आपदा ने लील ली हजारों जिंदगियां: आधिकारिक आंकड़े चाहे कुछ भी कहें, लेकिन प्रत्क्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन केदारनाथ धाम में 10,000 से ज्यादा लोग मौजूद थे. इनमें से कई हजार लोगों का आज तक अता पता नहीं है. ना ही उनके कहीं रिकॉर्ड हैं. 2013 की आपदा के बाद कई सालों तक उस 16 जून को केदारनाथ यात्रा पर आए यात्रियों के परिजनों द्वारा अपने परिजनों को ढूंढने के लिए उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में देखा गया जो कि बताता है कि 16 जून 2013 का वह दिन किस तरह से हजारों जिंदगियों को अपने साथ काल के गाल में ले गया.

Kedarnath disaster
मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य हुए

क्यों आई थी 16 जून 2013 की आपदा: 16 जून 2013 कि आपदा के बारे में बताया जाता है कि लगातार हो रही बरसात की वजह से सभी नदी नाले उफान पर थे. उत्तराखंड के लिए ये सामान्य सी बात थी. लेकिन 15 जून की रात से लगातार हो रही बारिश के चलते केदारनाथ धाम के दोनों तरफ बहने वाली मंदाकिनी और सरस्वती नदी में पानी पहले से ही बढ़ा हुआ था. लेकिन 16 जून 2013 की सुबह 4:00 बजे अचानक इन दोनों नदियों में बहुत ज्यादा पानी बढ़ गया और कुछ ही सेकंड बाद केदारनाथ धाम के पीछे से पूरा मलवा केदारनाथ धाम को चपेट में लेते हुए आगे बढ़ा.

Kedarnath disaster
2013 की आपदा के दौरान उस समय का केदारनाथ का दृश्य

दिव्य शिला ने बचाई हजारों जान: वहीं दौरान एक बड़ी चट्टान केदारनाथ मुख्य मंदिर के पीछे आकर रुक गई. जिसकी वजह से मंदिर को बहुत कम नुकसान हुआ. लेकिन मंदिर के आसपास मौजूद सभी बसावट वाली जगह बुरी तरह से तहस-नहस हो गईं. इस तरह से यह जलजला आगे बढ़ता गया और रामबाड़ा तक रास्ते में पड़ने वाले हर एक कस्बे को उजाड़ता चला गया. आपदा के कई दिनों बाद जांच दलों द्वारा यह पाया गया कि 14 जून से लगातार हो रही बरसात की वजह से केदारनाथ धाम के ऊपर चोराबाड़ी झील में एक ग्लेशियर टूट कर आ गया था. जिसकी वजह से चोराबाड़ी झील का एक हिस्सा टूट गया और पूरी झील का पानी केदारनाथ वैली में अचानक से एक साथ बाढ़ के रूप में आ गया.

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साल 2023 में केदारनाथ धाम.

मुख्यमंत्री को देना पड़ा था इस्तीफा: केदारनाथ आपदा का मंजर बेहद भयावह था. आपदा का स्वरूप इतना वृहद था कि इस आपदा के सामने शासन प्रशासन ने घुटने टेक दिए. आपदा में राहत और बचाव कार्यों के लिए सेना को आगे आना पड़ा. सेना ने देश में पहली दफा इतना बड़ा राहत अभियान चलाया. आपदा के दौरान कई सवाल सरकार पर खड़े किए गए. उत्तराखंड पूरी तरह से टूट चुका था. क्योंकि हजारों की संख्या में लोगों की जानें गई थी. यह पूरे देश भर से आए हुए श्रद्धालुओं को प्रभावित करने वाली घटना थी. लिहाजा इस घटना पर सरकारी सिस्टम भी पूरी तरह से कॉलेप्स हो गया.

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केदारधाम का बदला स्वरूप, उमड़ रही भक्तों की भीड़.

विधानसभा में सरकार से सवाल पूछे जाने लगे. तमाम चरमराई हुई व्यवस्थाओं को लेकर के सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाने लगा. आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में मौजूद विजय बहुगुणा को इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना के बाद हरीश रावत को उस समय की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई.

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इस बार केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है

केदारनाथ पुनर्निर्माण में पीएम मोदी की अहम भूमिका: 2013 की आपदा के बाद उत्तराखंड पूरी तरह से टूट चुका था. प्रदेश की रीढ़ पर्यटन व्यवसाय अब एक तरह से खत्म हो चुका था. देश और दुनिया में केवल उत्तराखंड त्रासदी की खबरें छाई हुई थी. ऐसे में पूरी तरह से नेस्तनाबूद हो चुकी उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और यहां के पर्यटन व्यवसाय को एक बार पटरी पर लाने के लिए उस समय की कांग्रेस सरकार द्वारा भी काफी प्रयास किए गए. लेकिन इन प्रयासों में रफ्तार तब आई जब 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ से विशेष लगाव केदारनाथ में पुनर्निर्माण और टूट चुके उत्तराखंड को वापस पटरी पर लाने के लिए बेहद कारगर साबित हुआ.

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पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ने बदली केदारनाथ की तस्वीर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपने सुपरविजन में केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य शुरू करवाए. खुद समय-समय पर केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों का जायजा लिया. कार्य तेज गति से हो, इसके लिए अधिकारियों, कार्यदाई संस्था और उत्तराखंड सरकार को लगातार पीएमओ द्वारा समय-समय पर समीक्षा करवाई गई. यही वजह है कि 2013 में पूरी तरह से टूट चुके उत्तराखंड के पर्यटन व्यवसाय में एक बार फिर से इजाफा हुआ और वर्ष 2019 आते-आते एक बार फिर से केदारनाथ धाम वापस उसी रंगत में आने लगा जिसके लिए वह जाना जाता था. आलम यह है कि आज केदारनाथ धाम में पहले से कहीं ज्यादा व्यवस्थाएं विकसित की गई हैं. केदारनाथ धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है.

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पुनिर्निर्माण कार्यों के बाद केदारनाथ धाम

कहीं फिर प्रकृति को नजरअंदाज करना ना पड़ जाए भारी: भले ही आज उत्तराखंड के चारों धामों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें बेहद गंभीर हैं. केदारनाथ पुनर्निर्माण के बाद बदरीनाथ धाम में भी पुनर्निर्माण के कार्य करवाए जा रहे हैं. उत्तराखंड के सभी तीर्थ स्थलों पर केयरिंग कैपेसिटी पुनर्निर्माण इत्यादि को लेकर के सरकार गंभीर है. लेकिन समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो कि सरकारों द्वारा लगातार किए जा रहे उच्च हिमालय क्षेत्र में निर्माण कार्यों को लेकर के आगाह कर रहा है. प्रकृति के साथ लगातार होने वाली छेड़छाड़ और उच्च हिमालई क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों को लेकर आगाह करने वाला समाज का यह वर्ग केदारनाथ में आई 2013 की आपदा को इसी अनियंत्रित विकास की एक बड़ी वजह बताता है.
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पर्यावरणविद क्यों हैं चिंतित: कई पर्यावरण विदों का आज भी कहना है कि पहाड़ पर लगातार हो रहे विकास कार्य जिसमें कि पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगल को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे 2013 की आपदा के अलावा और कुछ उम्मीद भी नहीं की जा सकती है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली इंसानी गतिविधियों से निश्चित तौर से दैवीय आपदाओं का संबंध है ऐसा कई शोधकर्ताओं द्वारा भी कहा गया है. लिहाजा सरकारों को भी शोध एजेंसियों द्वारा रिपोर्ट समय-समय पर भी जाती है. ऐसे में सरकार के सामने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच में संतुलन बनाना हमेशा ही एक बड़ी चुनौती रहा है.

Last Updated :Jun 16, 2023, 6:12 PM IST
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