कर्नाटक : कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka high court) ने 21 साल से अलग-अलग रह रहे एक जोड़े को तलाक की अनुमति देते हुए कहा कि शादी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है ('The Marriage Is Totally Dead') और अपीलकर्ता और प्रतिवादी को हमेशा के लिए एक ऐसी शादी में बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ भी हासिल नहीं होगा. जस्टिस बी वीरपा और जस्टिस के एस हेमलेखा की खंडपीठ ने कहा कि एक बार जब पार्टियां अलग हो जाती हैं और यह अलगाव 21 साल से अधिक समय तक तक जारी रहता है (Lived Separately For a Period Of 21 Years) और उनमें से एक ने तलाक के लिए याचिका पेश की है, तो यह अच्छी तरह से माना जा सकता है कि शादी टूट चुकी है.
तलाक की डिक्री देने के लिए उपयुक्त मामला
पीठ ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता/ पति ने पहले ही दूसरी बार शादी कर ली है, क्योंकि फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक के लिए एक पक्षीय डिक्री पारित की गई थी और उक्त विवाह से दो बच्चे हैं. प्रतिवादी/पत्नी ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई याचिका दायर नहीं की. अब सुलह की कोई संभावना नहीं है. हमारा विचार है कि पार्टियों के बीच समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है और पार्टियों के एक साथ रहने की कोई संभावना नहीं है और यह शादी पूरी तरह से टूट चुकी है. इसलिए, यह तलाक की डिक्री देने के लिए उपयुक्त मामला है.
अपीलकर्ता के साथ पत्नी का व्यवहार मानसिक क्रूरता वाला
यह देखते हुए कि पत्नी ने पति को दूसरी शादी करने से रोकने के लिए एक दीवानी कार्यवाही दायर की है, अदालत ने कहा कि प्रतिवादी/पत्नी न तो तलाक चाहती है और न ही स्थायी गुजारा भत्ता. वहीं मामले में पेश की गई समस्त सामग्री के विश्लेषण एवं मूल्यांकन से यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी/पत्नी ने न केवल अपने लिए बल्कि अपीलकर्ता के जीवन को दयनीय और नरक बनाने का संकल्प ले लिया है. मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए इस तरह का अड़ियल और कठोर रवैया हमारे दिमाग में इस बात के लिए कोई संदेह नहीं छोड़ रहा है कि प्रतिवादी अपीलकर्ता के साथ मानसिक क्रूरता करने पर आमादा है.
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शादी साल 1999 में हुई थी उसी साल पत्नी माता-पिता के घर चली गई
56 साल के जोड़े की शादी साल 1999 में हुई थी. पति ने दावा किया कि उसी साल पत्नी ने खुद को अलग कर लिया और अपने मायके यानी माता-पिता के घर चली गई. उसके और परिवार के अन्य सदस्यों के कई अनुरोध के बाद भी वह घर नहीं लौटी. इसलिए वर्ष 2003 में उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 13 (1) (1b) के तहत परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करते हुए एक याचिका दायर की. फैमिली कोर्ट ने 2004 में तलाक देने का एक पक्षीय आदेश पारित किया और जिसके बाद पति ने दूसरी बार शादी की और उसके दो बच्चे हैं. पत्नी ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसने तलाक की याचिका को पारिवारिक न्यायालय के समक्ष बहाल करने की अनुमति दी. 2012 में पति द्वारा तलाक की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी. इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.