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भारत का 'दिल' क्यों है अशांत, जानें क्यों चर्चा में है मालवा अंचल

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Published : Jan 14, 2021, 3:34 PM IST

मध्य प्रदेश का मालवा अंचल इन दिनों हिंसा के दौर से गुजर रहा है. सिलसिलेवार तरीके से एक के बाद एक कई पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आ रहीं हैं. जिसको लेकर अब प्रदेश सरकार पत्थरबाजी के खिलाफ कानून लाने की तैयारी में है. ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट..

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मंदसौर : भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. मंदसौर गोलीकांड के बाद लगातार ये जिला सुर्खियों में रहा है. कभी किसानों पर गोलियां चलाईं गईं तो कहीं हिंसा की आग में ये जिला जलता रहा है. जब डोरोना और बादाखेड़ी गांव के लोगों से बात की गई, तो उन्होंने अपनी दास्तां ईटीवी भारत को बताई. कहा कि कैसे उन्होंने इस हिंसा की आग को झेला है. आपको पूरी कहानी बताएंगे, पहले ये जान लीजिए की इस हिंसा की वजह क्या है?

मंदसौर में क्यों हुई हिंसा?

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए पूरे देश में संघ और हिन्दू संगठन ने रैली निकाली. लोगों से चंदा देने के लिए अपील करनी शुरू की. इस दौरान मंदसौर में भी बाइक रैली निकाली गई. हिन्दू संगठन के लोग हर गली मोहल्लों में जाकर मंदिर निर्माण के लिए चंदा लिया. लोगों ने राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा भी दिया, लेकिन कुछ इलाकों में इस रैली ने हिंसक रूप ले लिया. हिन्दू संगठनों का आरोप है कि कुछ लोगों ने उनकी बाइक रैली पर पथराव कर दिया. जिससे कई कार्यकर्ता घायल हो गए.

मुस्लिम संगठनों का आरोप

वहीं मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि उन्हें जबरन निशाना बनाया गया. मंदसौर के डोरोना व बादाखेड़ी गांव में रहने वाले मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इन रैलियों के दौरान हिंदूवादी संगठन जान-बूझकर मुस्लिम इलाकों में गए और वहां नारेबाजी की. डीजे बजाया, जिस वजह से यहां हिंसक स्थिति पनपी.

दोनों पक्षों पर पुलिस ने की कार्रवाई

मन्दसौर में 29 दिसंबर 2020 को भी हिंदू संगठन ने बाइक रैली निकाली. ये रैली जैसे ही डोरोना व बादाखेड़ी गांव पहुंची. वहां दोनों पक्षों में विवाद हो गया. विवाद के चलते दोनों गांवों में तनाव की स्थिती बन गई. इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस ने दोनों पक्षों पर कार्रवाई की गई है. नई आबादी पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार मामले में एक पक्ष के 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करते हुए पुलिस ने तत्काल उन्हें गिरफ्तार कर लिया. वहीं 40 से अधिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए चिह्नित किया गया है. दूसरे पक्ष के 3 लोगों पर एफआईआर कर उन्हें गिरफ्तार किया गया वहीं कुछ को चिह्नित कर तलाश शुरू कर दी गई है.

वायरल वीडियो के जरिए कार्रवाई

पुलिस के मुताबिक वायरल वीडियो के को देखकर पुलिस आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर रही है. वहीं दर्ज एफआईआर के बाद कुछ आरोपियों की तलाश भी की जा रही है. पुलिस का कहना है कि जल्द ही सभी आरोपी गिरफ्तार कर लिए जाएंगे.

पत्थरबाजी की घटनाएं

  1. मंदसौर

राम जन्मभूमि जन जागरण को लेकर रैली निकाली जा रही थी. इस दौरान दो पक्षों के बीत तनातनी हो गई. इस मामले में जहां विशेष समुदाय के लोगों का आरोप है कि बाइक सवार युवकों ने तोड़फोड़ की है, तो वहीं घायल युवकों का कहना है कि उनसे पर्स-चेन लूटकर बाइक में आग लगा दी गई.

2. उज्जैन

25 दिसंबर को युवा मोर्चा और हिंदू संगठन ने रैली निकाली थी. जहां ट्रैफिक होने की वजह से रैली में शामिल कार्यकर्ताओं की गाड़ी विशेष समुदाय के व्यक्ति की गाड़ी से टकरा गई. इसी बीच दोनों में विवाद की स्थिति बन गई. देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया कि एक पक्ष के परिजन के घर पर पथराव होने लगा. इसकी सूचना मिलते ही आला अधिकारी भारी पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे. इस घटना के बाद हिंदू संगठन और युवा मोर्चा के कई कार्यकर्ता घायल हुए. जिन्हें इलाज के लिए अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया.

3. इंदौर

29 दिसंबर को इंदौर के देपालपुर तहसील के चंदन खेड़ीगांव में स्थानीय नव युवक चलित भगवा बाईक रैली निकाल रहे थे. इसी दौरान अचानक एक समुदाय के लोगों ने बाइक चालकों पर पथराव कर दिया. पथराव से मौके पर तनाव की स्थिति बन गई. जिसके बाद पत्थर लगने से कुछ कार्यकर्ता घायल हो गए.

4. नीमच

उपनगर नीमच सिटी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में 27 दिसंबर को अचानक पत्थरबाजी होने लगी. दोपहर 12 बजे के करीब भोजन सत्र में विद्यार्थी खाना खाने के लिए अपनी थालियां लेने गए थे तभी अज्ञात व्यक्तियों ने शिविर पर भवन के पीछे से पथराव कर दिया. हालांकि, इस घटना में किसी को चोट नहीं आई.

पत्थरबाजों के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी

मध्य प्रदेश में लगातार पथराव के बाद शिवराज सरकार ने कानून बनाने की बात कही है. इसका मसौदा भी तैयार कर लिया गया है. इस नए कानून को लेकर विशेष समुदाय के लोगों का कहना है कि इस नए कानून को लाने का मकसद विशेष लोगों को निशाना बनाना है. वहीं विपक्ष कह रहा है कि शब्दों के आडंबर से सरकार राजनीतिक रोटियां सेंक रही है. संविधान में इस तरह की घटनाओं को लेकर पहले से कई प्रावधान हैं. मध्य प्रदेश में पिछले महीने कुछ घटनाएं ऐसी जरूर हुई हैं, जिसमें सामूहिक पत्थरबाजी देखने को मिली है. लेकिन कानून के जानकार मानते हैं कि प्रदेश के हालात ऐसे नहीं है कि इस तरह के कानून की जरूरत हो.

क्या होंगे कानून के प्रावधान?

  1. सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दोषियों से वसूली का प्रावधान किया जा सकता है.
  2. सामूहिक और दलीय आधार पर होने वाली पत्थरबाजी की घटनाओं में कड़ी सजा का प्रावधान किया जा सकता है.
  3. धर्म की आड़ लेकर और धार्मिक स्थलों पर खड़े होकर इस तरह की घटना को अंजाम देने में संबंधित जगह को भी राजसात करने का प्रावधान किया जा सकता है.
  4. पत्थरबाजी की घटनाओं को लेकर अलग से ट्रिब्यूनल गठित किया जा सकता है, जो तय समय सीमा में ऐसे मामलों का निराकरण करेगा.
  5. आईपीसी की धारा 322 : किसी व्यक्ति को जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने की स्थिति में धारा 322 के तहत अपराध पंजीबद्ध हो सकता है.
  6. आईपीसी की धारा 326 : कोई भी व्यक्ति घातक हथियार या किसी वस्तु से किसी को गंभीर रूप से जख्मी कर दे. जैसे किसी को चाकू मारना, किसी का कोई अंग काट देना या ऐसा जख्म देना जिससे जान को खतरा हो, तो गैर जमानती अपराध पंजीबद्ध होता है.
    कानून व्यवस्था को लेकर मजिस्ट्रेट की शक्तियां

कानून के जानकार मानते हैं कि सामूहिक पत्थरबाजी या इस तरह के विरोध प्रदर्शन में कार्रवाई करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास काफी शक्तियां हैं. कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट ऐसे कई अधिकारों का उपयोग कर सकता है, जो इस तरह की घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक हैं.

पत्थरबाजों के खिलाफ अलग से कानून लाने की जरूरत नहीं : वकील

वकील साक्षी पवार का कहना है कि मध्य प्रदेश में जो अभी पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आई हैं, वह निंदनीय हैं. जहां तक इन घटनाओं पर अलग से कोई कानून बनाने की जरूरत है, तो मुझे लगता है कि ऐसी कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि हमारे कानून में पहले से इतनी धाराएं हैं, जो इस तरह की घटनाओं में उपयोगी हैं. जैसे आईपीसी की धारा 322 और धारा 326 इन घटनाओं में उपयोग में आ सकती हैं. संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए, तो ऐसे मामले में लोक व्यवस्था के लिहाज से राज्य सरकार कानून बना सकती है. लेकिन जब कोई पत्थरबाजी सामूहिक तरीके से करता है, तो यह एक तरह की अभिव्यक्ति होती है कि वह अपना विरोध जता रहा है. इस तरह के विरोध प्रदर्शन पर कानून की दृष्टि से कई तरह के उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. हमारे संविधान और आईपीसी और सीआरपीसी की दृष्टि से देखा जाए, तो कानून व्यवस्था के मामले में मजिस्ट्रेट के पास इतनी शक्तियां होती हैं कि वह कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में अपनी शक्तियों का उपयोग कर नियंत्रण कर सकता है. मुझे नहीं लगता है कि अलग से कानून बनाने की जरूरत है. यदि हमारे मध्य प्रदेश में पत्थरबाजी की घटनाएं आम हो जाएं, तब ऐसे कानून की जरूरत होती है.

सिर्फ नाम का 'शांति का टापू'

मध्य प्रदेश भले ही शांति का टापू कहा जाता हो, लेकिन इस तरह की घटनाओं ने मध्य प्रदेश की शांति को छीन लिया है, एक के बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिससे हिंसा भड़क रही है. अब देखना होगा कि मध्य प्रदेश सरकार ऐसी हिंसक घटनाओं को लेकर आगे क्या करती है, ताकि ऐसी हिंसक घटनाएं दोबारा न हों. ऐसा न हो कि मध्य प्रदेश सिर्फ नाम के लिए शांति का टापू बनकर रह जाए.

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