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बिहार : मुजफ्फरपुर में बुजुर्ग ने जिंदा रहते मनाई अपनी बरसी, एक साल पहले किया था श्राद्ध

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Published : Nov 5, 2022, 8:45 PM IST

मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति ऐसा है, जिसने जिंदा रहते हुए अपने श्राद्ध किया और फिर एक साल बाद बरसी मनायी. इनका नाम हरिचंद्र दास (75) (Harichandra Das of Muzaffarpur Did His Shraddh) है और वे सकरा प्रखंड के भरतीपुर गांव के रहने वाले हैं. उनका कहना है कि मोक्ष पाने के लिए ऐसा किया है. पढ़ें पूरी खबर...

Muzaffarpur
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मुजफ्फरपुर: सामान्य तौर पर व्यक्ति के मरने के बाद उसका श्राद्ध कार्यक्रम किया जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध करने से मरने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के निवासी हरिचंद्र दास ने जिंदा रहते हुए खुद ही अपना श्राद्ध कर (Death Anniversary Of Living Person in Muzaffarpur) लिया. उन्होंने पिछले साल अपना श्राद्ध का कार्यक्रम आयोजित (Harichandra Das Death Anniversary) किया था. जिसमें रिश्ते-नातेदार सहित गांव के सभी लोग शामिल हुए थे.

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हरिचंद्र ने जिंदा रहते मनाई अपनी बरसी : मुजफ्फरपुर जिले के सकरा प्रखंड के भरतीपुर गांव निवासी हरिचंद्र दास (75) ने एक साल पहले जीवित रहते खुद ही अपना श्राद्ध कर लिया. श्राद्ध को एक साल पूरा हो गया हैं. अब वे अपनी बरसी मना रहे हैं. जब पहली बार उन्होंने खुद का श्राद्ध करने का प्रस्ताव रखा तो घर और गांव के लोग दंग रह गए. लोगों ने ऐसा नहीं करने की सलाह दी. लेकिन हरिचंद्र मुश्किल में थे कि मरने के बाद उनका श्राद्ध ठीक से होगा की नहीं, उन्हें लग रहा था कि ऐसे में उन्हें मोक्ष नहीं मिलेगा.

बरसी में पूरा गांव हुआ शामिल: बरसी के कार्यक्रम में पूरा गांव भी शामिल हुआ. बरसी की पूजा, भजन-कीर्तन, सिर मुंडवाने से लेकर भोज तक के सारे नियम किए गए. पिछले साल 15 नवंबर को उन्होंने अपना श्राद्ध किया था. तिथि के अनुसार इस साल 4 नंवबर यानि शुक्रवार को अपनी बरसी मनाई. बरसी के दौरान हरिचंद्र की पत्नी और उनका परिवार भी शामिल हुआ. हरिचंद्र दास ने पूरी विधि-विधान के साथ अपनी बरसी की. पहले सिर मुंडवाया और सफेद धोती पहनी. पंडित ने पूरी विधि के साथ मंत्रों के बीच दान की प्रक्रिया पूरी की. इसके बाद रात में भोज का आयोजन किया गया.

''मेरे मरने के बाद दोनों बेटे श्राद्ध ठीक से करते या नहीं, इसको लेकर संदेह था. ऐसे में मैंने खुद ही अपना श्राद्ध और बरसी करने की सोची. मैं धार्मिक स्वभाव का हूं. इसलिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए जीवित रहते श्राद्ध और बरसी मनायी है. मेरे दो बेटे हैं, जो दूसरे प्रदेश में रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं. अवस्था रहने के कारण अब कोई काम नहीं कर पाता हूं. गांव में खेतीबाड़ी से थोड़ा बहुत अनाज हो जाता है.'' - हरिचंद्र दास, बुजुर्ग

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