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Sedition law 124 A : विधि आयोग ने कहा- देश में अभी भी आंतरिक सुरक्षा के खतरे, देशद्रोह कानून निरस्त नहीं किया जा सकता

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Published : Jun 2, 2023, 11:27 AM IST

आयोग ने अपनी सिफारिशों में कहा कि देशद्रोह कानून की व्याख्या, समझ और उपयोग में अधिक स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट केदार नाथ के फैसले को लागू करना चाहिए. राजद्रोह और अन्य प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक पुलिस अधिकारी द्वारा साक्ष्य का पता लगाने के लिए एक अनिवार्य प्रारंभिक जांच का आदेश दिया जाना चाहिए.

Sedition law 124 A
प्रतिकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली : भारत के विधि आयोग ने सिस्टम में देशद्रोह कानून का समर्थन किया है. विधि आयोग ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है. आयोग के मुताबिक आंतरिक सुरक्षा खतरों और राज्य के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए यह जरूरी है. हालांकि आयोग ने माना कि प्रावधानों में कुछ संशोधन पेश किए जा सकते हैं. आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट दे दी है. जिसमें देशद्रोह कानून धारा 124 A के बारे में कहा गया है कि अभी भी देश में आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे मौजूद हैं. ऐसे में नागरिकों की सुरक्षा सभी तय कि जा सकती है जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित होगी.

'उचित प्रतिबंध' का रिपोर्ट में दिया हवाला
रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि सोशल मीडिया पर देश के खिलाफ कट्टरता का प्रचार करने और सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने में 'विदेशी शक्तियों' शक्तियों का हाथ रहता है. इसे रोकने के लिए भी जरूरी है कि धारा 124 A लागू हो. अनुच्छेद 19 (2) के तहत देशद्रोह को 'उचित प्रतिबंध' बताते हुए विधि आयोग ने कहा कि धारा 124ए की संवैधानिकता के बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून 'संवैधानिक' है क्योंकि इसके तहत जो प्रतिबंध लगाये गये हैं वह 'उचित प्रतिबंध' हैं.

आयोग ने कहा- कानून निरस्त करने के वैध आधार नहीं
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि यूएपीए और एनएसए जैसे कानून विशेष कानून हैं जो राज्य के प्रति लक्षित अपराधों को रोकने की कोशिश करते हैं. देश द्रोह का कानून कानून द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को हिंसक, अवैध और असंवैधानिक तरीके से उखाड़ फेंकने को रोकने की कोशिश करता है. आयोग ने यह भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि कानून 'औपनिवेशिक' समय से है, इसलिए इसको निरस्त कर देना 'वैध आधार' नहीं है.

(एएनआई)

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