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असम में शांति के लिए केंद्र और उग्रवादी संगठनों के बीच एक और समझौता

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Published : Sep 3, 2021, 7:48 PM IST

केंद्रीय गृह मंत्रालय शनिवार को असम के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ एक और शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेगा. हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार और इन उग्रवादी संगठनों के बीच शांति समझौता किया गया हो. इससे पहले भी कई शांति समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे. लेकिन शांति अभी दूर का सपना है. पढ़िए ईटीवी भारत के संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट

असम में शांति के लिए केंद्र और उग्रवादी संगठनों के बीच एक और समझौता
असम में शांति के लिए केंद्र और उग्रवादी संगठनों के बीच एक और समझौता

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय शनिवार को असम के विभिन्न उग्रवादी संगठनों के साथ एक और शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है, लेकिन यह सवाल अभी भी जिंदा है कि क्या यह समझौता क्षेत्र में शांति ला सकता है?

असम के कार्बी आंगलोंग जिले के पांच अलग-अलग आतंकवादी संगठन जिनमें पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी आंगलोंग (People's Democratic Council of Karbi Anglong), कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (Karbi Longri NC Hills Liberation Front ), कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर (Karbi People's Liberation Tiger ), कुकी लिबरेशन फ्रंट (Kuki Liberation Front) और यूनाइटेड पीपल्स लिबरेशन आर्मी (United Peoples Liberation Army ) शामिल हैं. अशांत सेंट्रल असम में दशकों से चल रहे उग्रवाद को समाप्त करने के लिए शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.

बता दें कि 2011 में केंद्र, असम सरकार और यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी (United People's Democratic Solidarity) के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सॉलिडेरिटी 1999 में दो विद्रोही समूहों कार्बी नेशनल वालंटियर्स (Karbi National Volunteers) और कार्बी पीपुल्स फ्रंट (Karbi Peoples Front ) के विलय के साथ बनाया गया था.

समझौते को कार्बी आंगलोंग के विकास के लिए एक विशाल वित्तीय पैकेज (financial package ) जारी करने के साथ चिह्नित किया गया था.

यूपीडीएस ने 2002 में भारत सरकार के साथ युद्धविराम समझौते (ceasefire agreement) पर हस्ताक्षर किए. समझौते ने गुट को दो समूहों, यूपीडीएस (प्रो-टॉक) और यूपीडीएस (एंटी टॉक) में बांट दिया.

2004 में बात विरोधी गुट ने नाम बदलकर कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (Karbi Longri NC Hills Liberation Front ) कर दिया गया. KLNLF ने कुछ वर्षों तक भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ने के बाद तीन सदस्यीय टीम बनाकर 2012 में वार्ता को फिर से शुरू करने का आह्वान किया.

ईटीवी भारत को दिए एक विशेष साक्षात्कार में KLNLF के प्रचार सचिव राजेक डेरा ने कहा कि हम अलग कार्बी राज्य के लिए लड़ रहे हैं. हालांकि, हमें समझ में आया कि एक अलग राज्य व्यवहार्य नहीं है, इसलिए हमने पहले से मौजूद कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (Karbi Anglong Autonomous Council) के स्वीकार करने का फैसला किया.

कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) का गठन 1952 में कार्बी आंगलोंग जिला परिषद (KADC) के नाम से किया गया था. बाद में इसे KAAC नाम दिया गया.

KAAC का उद्देश्य असम सरकार में निहित प्रशासनिक शक्ति के साथ भारत के संविधान की छठी अनुसूची के तहत कार्बी आंगलोंग क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों का समग्र विकास और संरक्षण (development and protection of tribals) करना है.

कार्बी आंगलोंग के पांच सक्रिय विद्रोही संगठन केंद्र सरकार और राज्य सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.

KLNLF के नेता डेरा ने कहा कि हमें उम्मीद है कि शांति समझौते पर हस्ताक्षर से कार्बी आंगलोंग में अशांति का अंत निश्चित रूप से होगा.

1500 करोड़ रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता और केएएसी को सशक्त बनाने के अलावा, समझौते से स्वायत्त परिषद को और अधिक वित्तीय ताकत मिलने की भी संभावना है.

डेरा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत सरकार के समेकित खोज से सीधे स्वायत्त परिषद को धन जारी करने का प्रावधान किया गया है.

उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र का विकास मंत्रालय (Development of North Eastern Region), या नीति आयोग या उत्तर पूर्वी परिषद (North Eastern Council) सीएजी की निगरानी में जारी करेगा.

डेरा ने कहा कि हर साल जारी होने वाले इस वार्षिक केंद्रीय कोष में राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.

गौरतलब है कि अब तक असम सरकार केएएसी के लिए वार्षिक वित्तीय सहायता आवंटित करती थी.

असम के इन विभिन्न संगठनों के 152 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पहले से ही नई दिल्ली में शांति समझौते पर हस्ताक्षर के लिए प्रचार कर रहे हैं.

समझौते में सैनिक स्कूल, पशु चिकित्सा और कृषि विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ-साथ कार्बी आंगलोंग में हवाई अड्डे की स्थापना का भी प्रावधान होगा.

डेरा ने कहा कि अनुबंध अनुसूचित जनजाति (council reserved for Scheduled Tribe) के लोगों के लिए आरक्षित परिषद में सीटों को रखकर स्वायत्त परिषद में कारबियों को और अधिक राजनीतिक शक्ति देगा.

हालांकि, इतिहास बताता है कि इस तरह के शांति समझौते से न केवल असम में बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में उग्रवाद की समस्या का समाधान होने की संभावना नहीं है.

इसी तरह की स्थिति पड़ोसी दीमा हसाओ जिले में देखी गई है, जहां केंद्र और असम सरकार ने 2012 में दीमा हलीम दाओगा (Dima Halim Daoga) के दोनों गुटों के साथ संघर्ष के सही वर्षों को समाप्त करने के लिए एक समझौता किया था.

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हालांकि, डिमा हसाओ नेशनल लिबरेशन आर्मी (Dima Hasao National Liberation Army) नामक एक अन्य समूह विध्वंसक गतिविधियों को जारी रखने के लिए उभरा औक 1993 से असम के बोडोलैंड में उग्रवाद को समाप्त करने के लिए तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

हालांकि, राज्य सरकार ने आधिकारिक तौर पर बोडो स्टेट लिबरेशन टाइगर फोर्स (Bodo State Liberation Tiger Force ) नामक एक नए संगठन के गठन की पुष्टि की है.

यह संगठन कुछ असंतुष्ट नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के कार्यकर्ताओं के साथ बनाया गया था.

2011 में, शीर्ष यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Asom ) के एक वर्ग ने भारत सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू की, जिसमें संगठन के प्रमुख कमांडर परेश बरुआ (Paresh Barua) को छोड़ दिया गया, जिन्होंने विध्वंसक गतिविधियों को जारी रखने का विकल्प चुना.

1997 के बाद से, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-IM) के साथ शांति वार्ता शुरू की गई थी, लेकिन समझौते को अभी तक सील नहीं किया गया है.

KLNLF नेता डेरा ने कहा कि NSCN के साथ समझौते पर जल्द से जल्द हस्ताक्षर करना जरूरी है, क्योंकि नगा उग्रवादी संगठन (Naga militant organization ) के सदस्य कार्बी आंगलोंग और नागालैंड के सीमावर्ती इलाकों में विध्वंसक गतिविधियों में शामिल हैं.

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