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इतिहासकार और पद्मश्री योगेश प्रवीण का निधन, कहा जाता था अवध का एनसाइक्लोपीडिया

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Published : Apr 13, 2021, 10:24 AM IST

राजधानी लखनऊ में सोमवार को इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीण की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि उन्हें तेज बुखार था, जिसके बाद परिजन उन्हें बलरामपुर अस्पताल अपने वाहन से लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

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इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीण का निधन

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और अवध-लखनऊ के इतिहास के विशेष जानकार पद्मश्री डॉ. योगेश प्रवीण (82) का सोमवार को तेज बुखार आने के बाद निधन हो गया. बताया जा रहा है कि सूचना देने के बाद भी 2 घंटे तक जब सरकारी एंबुलेंस नहीं आई तो घर वाले उन्‍हें प्राइवेट गाड़ी से बलरामपुर अस्‍पताल लेकर जा रहे थे. इस बीच रास्‍ते में ही डॉ. प्रवीण की सांसें थम गईं. अस्‍पताल में डॉक्‍टर ने उन्‍हें मृत घोषित कर दिया. परिजनों का कहना है कि डॉ. प्रवीण को सुबह से ही बुखार था.

अवध का एनसाइक्लोपीडिया

डॉ. योगेश प्रवीण को लखनऊ और अवध का एनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता था. यहां के इतिहास से जुड़े हर सवाल का जवाब डॉ. प्रवीण के पास था. वह सिर्फ ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में ही नहीं बल्कि उसके पीछे के किस्से और कहानियों के बारे में भी खूब जानकारी रखते थे. यही कारण है जब लखनऊ के इतिहास की बात होती तो पहले योगेश प्रवीण का नाम लिया जाता रहा है.

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ऐसे चढ़े थे सफलता की सीढ़ियां

  • डॉ. योगेश प्रवीण का जन्म 28 अक्तूबर 1938 में हुआ.
  • मेरठ विश्वविद्यालय से साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि ली.
  • हिंदी और संस्कृत में परास्नातक किया था.
  • किताबों के साथ कविताएं भी लिखीं.
  • उनकी पुस्तक 'लखनऊ नाम' के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.
  • वर्ष 2000 में यूपी रत्न पुरस्कार, 1999 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार, 2006 में यश भारती पुरस्कार और 1998 में यूपी संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया.
  • फिल्म जूनून में गीतकार होने के अलावा, उनका सह-संचालन दोनों फिल्मों में उमराव जान (1982) और (2007) के नाम से लिया गया.
  • 2020 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार मिला.
  • दास्तान अवध, ताजदार अवध, बहारे अवध, गुलिस्तां अवध, दोबता अवध, दास्ताने लुकवने, आप का लखनऊ, लखनऊ के स्मारक जैसी कई किताबों पर काम किया.
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