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गन्ने पर सरकार का घोषित FRP नाकाफी : वीएम सिंह

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Published : Aug 5, 2022, 8:26 PM IST

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सरकार ने अक्टूबर से शुरू होने वाले विपणन वर्ष 2022-23 के लिए गन्ना उत्पादकों को चीनी मिलों द्वारा दिये जाने वाले न्यूनतम मूल्य को 15 रुपये बढ़ाकर 305 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है. इस पर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) को नाकाफी बताते हुए इसे और बढ़ाने की मांग की है.

नई दिल्ली : केंद्र सरकार के द्वारा गन्ना पेराई सत्र 2022-23 के लिए घोषित गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) नाकाफी है, इसे और बढ़ाया जाना चाहिए. उक्त बातें राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह (VM Singh) ने मीडिया से बातचीत में कहीं. उन्होंने आंकड़ों को दिखाते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि मौजूदा सत्र के लिए गन्ने की घोषित एफआरपी 305 रुपये क्विंटल तय की गई है, उससे किसानों का फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा. बता दें कि पिछले सत्र गन्ना की एफ़आरपी 290 रुपये प्रति क्विंटल थी जिसे बढ़ा कर केंद्र सरकार ने 305 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है लेकिन किसान संगठन इससे संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि एक ओर गन्ने की खेती में लागत मूल्य लगातार बढ़ा है वहीं महंगाई दर भी बढ़ रही है. ऐसे में 15 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़त ऊंट के मुंह में जीरा समान ही है.

किसान नेता वीएम सिंह ने कहा है कि जहां एक तरफ पंद्रह रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोतरी का खूब प्रचार किया जा रहा है वहीं ये भी ध्यान रखना चाहिए कि देश में महंगाई दर इस समय 7 प्रतिशत है. वहीं गन्ने की खेती पर खर्च 25-30 प्रतिशत तक बढ़ा है. वास्तविकता में यह बढ़ोतरी मात्र 2.5 प्रतिशत है जो 7.75 रुपये प्रति क्विंटल होता है. आंकड़ों को विस्तार से समझाते हुए किसान नेता ने बताया कि जब एफआरपी ₹290 प्रति क्विंटल थी तब किसान को एफआरपी के हिसाब से 290 के बाद 0.1 प्रतिशत अधिक रिकवरी पर 2.90 रुपए अधिक मिलते थे यानी कि 10.25 प्रतिशत रिकवरी पर ₹297 25 पैसे मिलते थे. अब इस बार अगर 305 रुपये के दाम के बाद 10 प्रतिशत रिकवरी होती तो आज किसान को 312.62 रुपए मिलते. यही नहीं जब रिकवरी 9.5 प्रतिशत से ऊपर होगी और 10.25 प्रतिशत में से कम होगी तो इसी आधार पर कटौती होगी. अगर 9.6 प्रतिशत की रिकवरी भी हुई तो किसान को ₹285 मिलेगा जो पिछले वर्ष के ₹290 से भी कम है, इसलिए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन केंद्र सरकार से मांग करती है कि सिर्फ पूरे विषय पर फिर से विचार करे और किसान के उत्पादन की बढ़ोतरी के हिसाब से एफआरपी तय करें.

सरकार के मुताबिक गन्ना उत्पादन के खर्चे का दर ₹162 प्रति क्विंटल का आंकलन किया गया है और इस से 88 प्रतिशत ऊपर देते हुए ₹305 प्रति क्विंटल का मूल्य किसानों के लिए तय किया गया है. किसान नेता का कहना है कि वास्तविकता में यदि देखें तो उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में तत्कालीन गन्ना मंत्री ने सदन में एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि गन्ना अनुसंधान केंद्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में उत्पादन की लागत ₹294 प्रति क्विंटल होती है. साल 2021-22 में सरकारी आंकड़ों की मानें तो यह लागत ₹304 प्रति क्विंटल होती है इसके आधार पर सरकार के 50 प्रतिशत अधिक देने के वायदे के अनुसार कम से कम किसानों को ₹450 प्रति क्विंटल मिलना चाहिए. वीएम सिंह ने कहा चीनी मिलों को यह दान देने की गुंजाइश भी है क्योंकि पिछले कुछ सालों से चीनी की मिनिमम सेलिंग प्राइस लागू कर दी गई है जिसके कारण चौक बाजार में चीनी 34 से ₹36 प्रति किलो बिक रही है इतना ही नहीं यदि पूरा हिसाब लगाएं तो 1 क्विंटल करने में लगभग 10.50 से 11 फ़ीसदी चीनी का औसत आता है इसके अलावा 33 किलो बगास जिससे बिजली, कागज गत्ता इत्यादि बनता है और इसके साथ ही 5 किलो मुलाशी जिससे इथेनॉल और इंडस्ट्रियल अल्कोहल भी बनती है.

इस संबंध में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने घोषणा की है कि 16 अगस्त को उत्तर प्रदेश के हर तहसील में वह मुख्यमंत्री को आगामी गन्ना सत्र में गन्ने का मूल्य ₹450 प्रति क्विंटल तय करने की मांग करेंगे. बता दें कि देश में सबसे ज्यादा गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश में ही होता है इसके अलावा उत्तराखंड, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, मध्य प्रदेश और बिहार में भी गन्ने की खेती होती है.

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