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जबरन धर्मांतरण का मामला: न्यायालय ने व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही निरस्त की

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Published : Sep 18, 2021, 9:29 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण कराने के आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही यह कहते हुए निरस्त कर दी कि जिस व्यक्ति को ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरित कराने की बात कही गई थी.

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने जबरन धर्मांतरण कराने के आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही यह कहते हुए निरस्त कर दी कि जिस व्यक्ति को ईसाई धर्म में जबरन धर्मांतरित कराने की बात कही गई थी.

न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें आरोपी जॉर्ज मंगलापिल्ली को कोई राहत देने से इनकार कर दिया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि गवाहों की गवाही के अतिरिक्त रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिस पर विश्वास किया जा सके. अभियोजन के अनुसार आरोपी ने धर्मेंदर दोहार का जबरन धर्मांतरण कराया था, लेकिन दोहार ने मुकदमे के दौरान अपनी गवाही में आरोपी द्वारा अपना धर्मांतरण कराए जाने की बात से इनकार किया.

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दोहार ने अपनी गवाही के दौरान कहा कि कुछ लोगों ने एक कागज पर उससे हस्ताक्षर करा लिए थे, जिसके आधार पर आरोपी के खिलाफ मुकदमे की शुरुआत हुई. पीठ ने कहा कि व्यक्ति ने अपनी गवाही में कहा है कि न तो उसका जबरन धर्मांतरण कराया गया और न ही अपीलकर्ता ने कभी उससे संपर्क किया.

इन तथ्यों को देखते हुए अपीलकर्ता राहत पाने का हकदार है इसलिए, हम अपील को स्वीकार करते हैं और उच्च न्यायालय के आदेश तथा अपीलकर्ता के खिलाफ मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता कानून 1968 की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय आपराधिक कार्यवाही को निरस्त करते हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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