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Fake Call to Gujarat High Court Judge: जमानत के लिए जज को करवाया फर्जी फोन, कोर्ट ने जुर्माने के साथ पूरे दिन खड़े रहने की सुनाई सजा

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Published : Feb 25, 2023, 6:46 AM IST

अग्रिम जमानत के लिए एक शख्स ने जज को विधायक के नाम से फर्जी फोन करवाया. अब गुजरात हाईकोर्ट ने जुर्माना लगाते हुए कोर्ट में पूरे दिन खड़े रहने की सजा सुनाई है. जानिए क्या है मामला

Gujarat High Court
Gujarat High Court

गांधीनगर: गुजरात हाई कोर्ट ने दो लोगों को अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया है और उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. 24 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने दोनों दोषियों को शाम 5 बजे तक कोर्ट में ही खड़े रहने का आदेश दिया था.

बता दें, मामला साल 2020 का है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दो दोषियों में से एक ने गिरफ्तारी से बचने के लिए कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की थी. फिर उसने एक अन्य व्यक्ति को काम पर रखा, जिसने कांग्रेस विधायक निरंजन पटेल के नाम से जस्टिस बेला त्रिवेदी (अब सुप्रीम कोर्ट की जज) को फर्जी कॉल किया और अग्रिम जमानत के लिए उन पर दबाव डाला.

न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया और बताया कि उसे अग्रिम जमानत के लिए कांग्रेस विधायक निरंजन पटेल के नाम से एक अन्य व्यक्ति का फोन आया था. कुछ देर बाद पता चला कि जिस व्यक्ति ने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, उसने किसी अन्य व्यक्ति को फर्जी कॉल किया था, जिसके बाद दोनों पर अदालत की आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज किया गया था.

गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायपालिका पर लोगों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अदालत केवल बिना शर्त क्षमा के आधार पर आरोपी को रिहा नहीं कर सकती है. अदालत ने दोनों आरोपियों विजय शाह और अल्पेश पटेल को जुर्माने के साथ अदालत में खड़े रहने की सजा सुनाई.

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कौन हैं न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी: न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी गुजरात सरकार की विधि सचिव रह चुकी हैं. साल 2011 में उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. कुछ महीनों के बाद, उन्हें राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया. 2013 में, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थायी न्यायाधीश बनीं. साल 2016 में उन्हें वापस गुजरात हाई कोर्ट भेज दिया गया, जहां वे अगले 5 साल यानी 2021 तक कार्यरत रहीं. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जज बनीं.

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