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ईटीवी भारत से बोलीं तस्लीमा नसरीन, इस्लाम में क्रिटिकल स्क्रूटनी की गुंजाइश नहीं, बात की तो हत्या तय

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Published : Aug 16, 2022, 8:24 PM IST

Updated : Aug 16, 2022, 8:41 PM IST

इस्लाम में क्रिटिकल स्क्रूटनी की गुंजाइश नहीं है और जिन लोगों ने इस तरह की सोच को सामने रखा, उनका काम तमाम कर दिया गया. बल्कि आप ये भी कह सकते हैं कि इस्लाम अब इस्लाम नहीं रहा, बल्कि यह पॉलिटिकल इस्लाम बन गया है. राजनीति अधिक हावी है. अन्य धर्मों की भांति यहां पर सुधारवादी सोच को पनपने ही नहीं दिया गया. ये विचार हैं मशूहर लेखिका तस्लीमा नसरीन के. उनसे बात की ईटीवी भारत के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने.

taslima nasreen
तस्लीमा नसरीन

नई दिल्ली : मशहूर साहित्यकार तस्लीमा नसरीन ने कहा कि इस्लाम में सुधार इसलिए नहीं हुए क्योंकि वहां 'क्रिटिकल स्क्रूटनी' की गुंजाइश नहीं है. तस्लीमा ने ये बात सलमान रश्दी पर हुए हमले की प्रतिक्रिया में ईटीवी भारत से कही. एक्सक्लूसिव बातचीत में तस्लीमा ने ये भी कहा कि सलमान रश्दी पर हमले के बाद उन्हें भी ट्विटर पर धमकियां मिल रही हैं कि अगला नंबर अब तुम्हारा है. आप भी पढ़िए-क्या कहा इस मशहूर साहित्यकार ने ईटीवी भारत से.

सवाल- सलमान रश्दी पर जो हमला हुआ है, आपकी उस पर क्या प्रतिक्रिया है, क्या हमारा समाज वक्त के साथ आगे जाने की बजाय पीछे जा रहा है ?

जवाब- दुनिया में सब जगह ये बढ रहा है. इसके लिए लोगों को बहुत केयरफुल रहना पड़ेगा. इसे रोकना होगा. कोई किसी को यूं ही नहीं मार सकता.

सवाल- इसे रोकने के लिए क्या करना होगा ? भारत में भी 'सर तन से जुदा' जैसे नारे लग रहे हैं.

जवाब- दुनिया भर में ये हो रहा है. जब अमेरिका जैसी जगह में जहां सलमान रश्दी को इतनी सुरक्षा मिली हुई है, ये हो सकता है, तो कहीं भी हो सकता है. मुस्लिम कम्युनिटी में फंडामेंटलिज्म को बढ़ने से अगर रोका जाए, तभी इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकती हैं. अगर फंडामेंटलिज़्म नहीं बढ़ेगा तो आतंकवाद भी नहीं बढ़ेगा. हालांकि इसके लिए बहुत काम करना पड़ेगा. क्योंकि फंडामेंटलिज़्म बढ़ाने वालों के निशाने पर 25-26 साल के लड़के होते हैं. उन का ब्रेनवॉश आसानी से हो जाता है. धार्मिक नेता ये काम आसानी से करते हैं।. अगर इसे रोक दिया जाय, तो सब ठीक हो जाएगा. इसमें इंटरनेट पर भी बड़ी खतरनाक जानकारियां दी जाती हैं, उसे पढ़ कर कोई भी युवा आतंकवाद की तरफ बढ़ जाता है.

सवाल- आप मानती हैं कि मदरसों पर भी कट्टरवाद फैलाने की जिम्मेदारी है ?

जवाब- कुछ मदरसे हैं जो शिक्षित करने के बजाय धार्मिक ज़हर फैलाने का काम करते हैं. अब इस चीज़ पर सरकार को नज़र रखनी पड़ेगी. इस पर सरकार का कंट्रोल ज़रूरी है.

सवाल- आप मानती हैं कि इस सरकार (भारत सरकार) ने पहले से कुछ कंट्रोल किया है इस पर ?

जवाब- मैं इस सरकार की बात ही नहीं कर रही हूं. मैं दुनिया भर की सरकारों के लिए ये कह रही हूं. चूंकि दुनिया भर में मदरसों के ज़रिये ब्रेन वॉश किया जाता है, इसलिए हर मुल्क की सरकार को चाहिए कि इन मदरसों पर नज़र रखे, अपने नियंत्रण में रखे. क्योंकि आतंकवाद एक विचार है, वो इसी तरह खत्म किया जा सकता है. आतंकवादी को मारने से आतंकवाद खत्म नहीं होगा. उस विचार को खत्म करना होगा और वो मदरसों पर नियंत्रण कर संभव हो सकता है. आतंकवाद कंटेजियस होता है, वो ऐसा विचार है, जो एक शख्स से दूसरे तक पहुंचता है और इसी तरह आगे बढ़ता जाता है, फैलता जाता है.

सवाल- जब हम आतंकवाद की बात करते हैं, तो घूम फिर कर बात इस्लाम पर ही क्यों आ कर रुक जाती है ?

जवाब- दरअसल इस्लाम में सुधार नहीं हुए, उस धर्म का विकास नहीं हुआ, इसमें कोई क्रिटिकल स्क्रूटिनी संभव नहीं है. हम किसी भी तरह के सुधार की बात करते हैं तो हमको मार डाला जाता है. तो अगर किसी सुधार के लिए आलोचना संभव ही नहीं है, तो कैसे मर्द और औरत के बीच बराबरी की बात की जा सकती है. धार्मिक कानून तो ह्यूमन राइट्स और जस्टिस के आधार पर होने चाहिए. अगर कोई इन सुधारों की बात करता है, तो उसे सांप्रदायिक ताकतें मारने के लिए आ जाती हैं. सरकार तो इन पर अंकुश कभी नहीं लगाएगी. मुस्लिम देशों की सरकारें धर्म को अपने राजनैतिक हितों के लिए इस्तेमाल करती है. इसीलिए मुस्लिम देशों ने कभी भी राज्य और धर्म को अलग करने की कोशिश ही नहीं की. इन देशों में कभी भी मॉडर्न लॉ लाने की कोशिश नहीं की जाती. वो सातवीं सदी के कानून के हिसाब से चलते हैं और सरकारें कभी उसे बदलने की कोशिश भी नहीं करतीं क्योंकि उन्हें उन धार्मिक कानूनों का राजनैतिक इस्तेमाल करना होता है. इसलिए इस्लाम अब सिर्फ इस्लाम नहीं रह गया है, ये अब पोलिटिकल इस्लाम हो चुका है और ये बदलाव बहुत खतरनाक है. उन्हें अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए खून की ज़रूरत होती है. ये बहुत खतरनाक है.

सवाल- सलमान रश्दी के ऊपर हुए हमले को क्या लेखक बिरादरी पर हुआ हमला मानती हैं आप ?

जवाब- सभी राइटर्स पर तो हमला होता नहीं. जो राइटर्स इस्लाम में सुधार करना चाहते हैं, इस्लाम को इवॉल्व करना चाहते है, उनके ऊपर हमले होते हैं. मुझे भी मारने के लिए फतवा जारी हुआ, मेरे सिर पर भी इनाम रखा गया था तो सभी राइटर्स को नहीं, बल्कि कुछ को खतरा है. सलमान रश्दी के ऊपर जो हमला हाल ही में हुआ है उसे लेकर मुस्लिम देशों में जश्न मनाया जा रहा है. अभी पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक का जो संस्थापक है खादिम रिज़वी, उसने एक मीटिंग में मेरे बारे में कहा- सलमान का काम हमने कर दिया, अब तस्लीमा को कत्ल करना पड़ेगा. उसकी इस तकरीर को पाकिस्तान के करीब 20 लाख लोगों ने सुना. उसके बाद से मुझे ट्विटर पर मारने की झमकियां फिर से दी जाने लगी हैं. मेरे लिए कहा जा रहा है कि अगला नंबर मेरा है. सलमान रश्दी तो ज़्यादातर पश्चिमी देशों में रहते हैं और पूरी पुलिस सुरक्षा में रहते हैं, इसलिए बच गए. ज़्यादातर ऐसे लेखक जो इस्लाम में सुधार लाना चाहते हैं या उसे एक आधुनिक सोच का मॉडर्न इस्लाम बनाना चाहते हैं, उऩको बहुत खतरा है क्योंकि उन्हें कोई पुलिस सुरक्षा नहीं मिली है और वे बड़ी आसानी से कट्टरपंथियों का निशाना बन सकते हैं. इसलिए ज़रूरी है ऐसे लोगों की सुरक्षा करना जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन रखते हैं और इस्लाम के प्रति अपनी विचारधारा के लिए निशाने पर रहते हैं.

सवाल- सलमान रश्दी साहब के लिए कोई संदेश देना चाहेंगी आप ?

जवाब- इस घटना के बाद से मैं इस हिंसा का विरोध करती हूं. मैं हिंसा का हमेशा विरोध करती रही हूं, जब से ये सब शुरू हुआ.

सवाल- ऐसी घटनाएं भारत में भी नुपुर शर्मा को लेकर हुईं. उस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ?

जवाब- देखो मेरे ऊपर तो बहुत हमले हुए, मारने की धमकियां खूब मिलीं. जो भी इस्लाम को सुधारने की बात करता है, उन को ज्यादा टारगेट किया जाता है. ऐसे ही नूपुर शर्मा के मामले में भी यही हो रहा है. उदयपुर में कन्हैया को जिस तरह इन लोगों ने मारा, वो बहुत खतरनाक है. क्या इनका धर्म इतना कमज़ोर है, इतना नाज़ुक है कि उसे बचाने के लिए दूसरों को मारना पड़ेगा. इससे ये साबित होता है कि उनका धर्म मजबूत नहीं है. ये बात इस्लाम धर्म के लिए अच्छी नहीं है.

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Last Updated : Aug 16, 2022, 8:41 PM IST
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