ईंधन समेत अन्य उत्पादों की महंगाई का कारण नीतियों में ढिलाई : ऑक्सफोर्ड अर्थशास्त्री

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Published : Oct 28, 2021, 2:33 PM IST

Updated : Oct 28, 2021, 3:14 PM IST

महंगाई का कारण नीतियों में ढिलाई

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में महंगाई बढ़ रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कोविड -19 महामारी के दौरान अपनाई गई नीतियों में ढिलाई बरती गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में रिजर्व बैंक और अमेरिका में फेडरल रिजर्व सहित कई केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनाई गई ढीली मौद्रिक नीति के कारण महंगाई बढ़ी है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानन्द त्रिपाठी की रिपोर्ट

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के बीच प्रभावित हो रही विकास दर और बढ़ती महंगाई को लेकर कई अहम बातें सामने आई हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मांग-आपूर्ति के बेमेल होने (demand-supply mismatch) के कारण वैश्विक सप्लाई चेन पर असर पड़ा है.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री एडम स्लेटर का कहना है कि हाल के महीनों में दुनिया की कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति व्यापक रूप से बढ़ी है.

स्लेटर ने रिपोर्ट में लिखा है कि जी 7 देशों में मुद्रास्फीति 3.5% तक पहुंच गई है, अमेरिका में कोर मुद्रास्फीति 4 % है. उन्होंने लिखा है कि 1990 के दशक की शुरुआत से ऐसा नहीं देखा गया है. स्लेटर के मुताबिक एशिया के बाहर, उभरते बाजारों में मुद्रास्फीति दोगुनी होकर लगभग 8% हो गई है.

भारत में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index ) के रूप में मापी गई थोक मुद्रास्फीति इस साल सितंबर में दोहरे अंकों में थी.

क्यों बढ़ रही है वैश्विक मुद्रास्फीति ?

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स (Oxford Economics) के शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया भर में मुद्रास्फीति में वृद्धि के पीछे मांग और आपूर्ति दोनों हैं. हालांकि, भारत, रूस, चीन, ब्राजील और कुछ अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मामले में बढ़ती मांग का प्रभाव अधिक दिखाई दे रहा था, क्योंकि वैश्विक महामारी में भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) सहित कई केंद्रीय बैंकों ने मांग आधारित विकास को आगे बढ़ाने के लिए एक लूज मनी पॉलिसी (loose money policy) अपनाई थी.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 2020 की शुरुआत से तेज मुद्रा आपूर्ति वृद्धि मुद्रास्फीति में उछाल का एक स्पष्ट संभावित कारण है. हमारा विश्लेषण उभरते बाजारों की मुद्रास्फीति के लिए एक स्पष्ट लिंक का सुझाव देता है, लेकिन उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए कमजोर है.

इसके अलावा बढ़ोतरी का एक अन्य कारक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि (rise in commodity prices) है, जिसमें कच्चे तेल की कीमतें भी शामिल हैं.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में, कच्चे तेल की कीमतें अप्रैल 2020 में 20 अमेरिकी डॉलर के निचले स्तर से बढ़कर अक्टूबर में 40 डॉलर हो गई हैं और इस साल अक्टूबर में कच्चे तेल की कीमत एक साल पहले की तुलना में दोगुनी से अधिक हो गई है.

सरकारी उधारी का दबाव

कमोडिटी की कीमतों और लूज मनी पॉलिसी के अलावा, जिसने वैश्विक वित्तीय प्रणाली (global financial system) में अतिरिक्त लिक्विडिटी पैदा की, उसमें कई मैक्रो-इकोनॉमिक कारक हैं जो लगातार उच्च वैश्विक मुद्रास्फीति का कारण बने.

संभावित कारणों में से अधिकांश देशों में राजकोषीय घाटे में भारी वृद्धि हो सकती है क्योंकि सरकारों ने राहत प्रदान करने और महामारी के दौरान विकास को बनाए रखने के लिए पूंजीगत व्यय और अन्य विकास कार्यक्रमों को जारी रखने के लिए भारी उधार लिया था.

स्लेटर ने कहा कि हमारा क्रॉस-कंट्री विश्लेषण (cross-country analysis), उन्नत या उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सांख्यिकीय लिंक खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है.

साल्टर ने कहा कि यह संभव है क्योंकि भारत, रूस और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति से लड़ने की विश्वसनीयता अधिक है.

पढ़ें - उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय स्थिति में सुधार

वैश्विक मुद्रास्फीति कब तक बनी रहेगी?

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं के अनुसार मूल्य वृद्धि के पीछे का कारण और यह कितना लंबे समय तक चलने वाला होगा, यह बहस का विषय होगा, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आपूर्ति के झटके और लूज राजकोषीय और मौद्रिक नीति के कारण मांग में तेजी से वृद्धि जिम्मेदार थी.

उन्होंने कहा, 'हाल के महीनों में हेडलाइन मुद्रास्फीति को चलाने वाला एक प्रमुख कारक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि है, तेल और गैर-ऊर्जा वस्तुओं के साथ उनके पूर्व-महामारी के स्तर से 40% -50% ऊपर है.'

स्लेटर ने कहा कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों ने भारत जैसे ऊर्जा खपत करने वाले देशों को ओपेक जैसे तेल उत्पादकों से ऐसी कीमत पर समझौता करने के लिए मजबूर किया जो उपभोग करने वाले देशों की भुगतान क्षमता से अधिक नहीं है.

ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के शोधकर्ताओं के अनुसार बड़ी चिंता यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में अपनाई गई लूज मनी पॉलिसी का वास्तविक प्रभाव दर में कटौती के दो साल बाद दिखाई देता है. हालांकि, एक उल्लेखनीय बिंदु यह है कि अधिकांश विश्लेषणों से पता चलता है कि मौद्रिक उछाल से चरम मुद्रास्फीति प्रभाव उनके होने के लगभग दो साल बाद ही आता है.

Last Updated :Oct 28, 2021, 3:14 PM IST
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