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मां की पसंद ही अंतिम..., दिल्ली हाईकोर्ट ने 33 सप्ताह की गर्भवती को गर्भपात की दी अनुमति

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Published : Dec 6, 2022, 5:27 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 33 सप्ताह की गर्भवती महिला को चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दे दी. न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने कहा कि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि मां की पसंद अंतिम है. याचिकाकर्ता को तुरंत उसकी पसंद के किसी अन्य अस्पताल में गर्भपात की अनुमति दी जाती है.

दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 33 सप्ताह की गर्भवती महिला को चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दे दी. ऐसा करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने कहा कि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि मां की पसंद अंतिम है. इस पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए. याचिकाकर्ता को तुरंत एलएनजेपी अस्पताल या उसकी पसंद के किसी अन्य अस्पताल में गर्भपात की अनुमति दी जाती है.

न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह ने आगे कहा कि भारतीय कानून में यह अंततः एक मां की पसंद है कि वह अपनी गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है या नहीं. कोर्ट ने कहा, "इस तरह के मामले गंभीर दुविधा को उजागर करते हैं जिससे एक महिला को गुजरना पड़ता है. आधुनिक तकनीक की आपात स्थिति के साथ गर्भपात और गर्भपात के मुद्दे और अधिक कठिन हो जाते हैं."

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अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट पर कोर्ट नाराजः कोर्ट ने लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट पर भी नाराजगी व्यक्त की. न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता के साथ अपनी बातचीत के माध्यम से यह अनुमान लगाने में सक्षम थी कि वह इसमें शामिल जोखिमों के साथ-साथ बच्चे को जन्म देने या उसकी समाप्ति के साथ आने वाले मानसिक आघात से अवगत थी.

कल कोर्ट ने डॉक्टरों का सुना था पक्षः मंगलवार को न्यायालय एक 26 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो 33 सप्ताह की गर्भवती है. इसने अपनी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग की है. दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने आज न्यायमूर्ति सिंह को सूचित किया कि गर्भावस्था के चरण को देखते हुए गर्भपात के अनुरोध को खारिज कर दिया गया है. सोमवार को जज ने अस्पताल के न्यूरो सर्जन और स्त्री रोग विशेषज्ञ की बातें सुनी थी.

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न्यूरो सर्जन ने कहा कि संभावना है कि बच्चा कुछ विकलांग होगा, लेकिन बच जाएगा. डॉक्टर ने कहा कि वह बच्चे के 'जीवन की गुणवत्ता' का अनुमान नहीं लगा सकते हैं, लेकिन जन्म के लगभग 10 सप्ताह बाद कुछ मुद्दों से निपटने के लिए सर्जरी की जा सकती है. मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अन्वेश मधुकर, प्रांजल शेखर, प्राची निर्वान और यासीन सिद्दीकी पेश हुए.

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