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'कोरोना के प्राकृतिक उद्भव की संभावना ज्यादा, प्रयोगशाला से लीक नहीं हुआ'

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Published : Jul 9, 2021, 6:40 PM IST

वैज्ञानिकों की एक वैश्विक टीम ने मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर अपनी समीक्षा में कहा है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस के पशुओं से मानव में फैलने की संभावना अधिक है, न कि यह चीन के वुहान में किसी प्रयोगशाला से लीक हुआ.

कोविड-19:अध्ययन
कोविड-19:अध्ययन

मेलबर्न : वैज्ञानिकों की एक वैश्विक टीम ने मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर अपनी समीक्षा में कहा है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस (SARS-CoV-2 virus0 के पशुओं से मानव में फैलने की संभावना अधिक है, न कि यह चीन के वुहान में किसी प्रयोगशाला से लीक हुआ.

यही कोविड-19 महामारी का कारण है
अध्ययन अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, हालांकि इसे सात जुलाई को प्री-प्रिंट सर्वर जेनोडो (pre-print server Zenodo) पर पोस्ट किया गया और अध्ययन में कहा गया है, कि प्रयोगशाला में इस तरह की घटनाओं से सिरे से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन वर्तमान में कोविड-19 वायरस के प्रयोगशाला में उद्भव के संदर्भ में ऐसा होने की शून्य संभावना प्रतीत होती है.

इस खतरनाक वायरस के उद्भव को लेकर वैश्विक बहस के बीच दुनिया भर में विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थानों से 21 प्रख्यात वैज्ञानिकों ने वायरस के स्रोत को स्पष्ट करने में मदद के लिए मौजूदा वैज्ञानिक साक्ष्यों की समीक्षा की.

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ऑस्ट्रेलिया में सिडनी विश्वविद्यालय से प्रोफेसर एडवर्ड होम्स ने एक बयान में कहा, मौजूदा आंकड़ों के सावधानीपूर्वक किए गए गहन विश्लेषण में यह तथ्य सामने आया है, कि सार्स-सीओवी-2 के प्रयोगशाला में उत्पन्न होने के कोई सबूत नहीं हैं.

पत्र के लेखक ने कहा, शुरुआती मामलों में ऐसे कोई सबूत नहीं है, जिसका संबंध बुहान विषाणु संस्थान (डब्ल्यूआईवी) से हो. इसके विपरीत वुहान के पशु बाजार से महामारी का स्पष्ट संबंध पता चला है. उन्होंने कहा कि इस बात के भी कोई सबूत नहीं मिले हैं कि डब्ल्यूआईवी महामारी की शुरुआत से पहले सार्स-सीओवी-2 पर काम कर रहा था. दूसरी ओर अध्ययन के लेखकों को सार्स-सीओवी-2 के पशुओं के जरिए फैलने के समर्थन में वैज्ञानिक साक्ष्य मिले हैं.

टीम में ब्रिटेन में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, कनाडा के सस्केचेवान विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले और अमेरिका में पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी, न्यूजीलैंड में ओटागो विश्वविद्यालय, और चीन में जियाओतोंग-लिवरपूल विश्वविद्यालय तथा कई अन्य शीर्ष वैश्विक संस्थानों के शोधकर्ता शामिल थे.

(पीटीआई-भाषा)

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