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भारतीय सेना को मिलने वाली रसद का भार बढ़ाने के लिए 'चीन की चाल'

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Published : Oct 14, 2021, 7:49 PM IST

भारतीय सेना
भारतीय सेना

माल्दो में बातचीत के दौरान चीन का अड़ियल रवैया रहा. वहीं बाड़ाहोती और तवांग में उसके सैनिकों ने भारत को भड़काने की जो कोशिश की, वह चीन की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. वह लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक एलएसी पर मौजूद भारतीय सेना को फैलाने चाहता है ताकि सेना को मिलने वाली रसद का भार और बढ़ जाए. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

नई दिल्ली : सर्दियों की शुरुआत के साथ पूर्वी लद्दाख (eastern Ladakh) के मोल्दो में रविवार को वार्ता के दौरान भारतीयों के साथ अपनाया गया चीन के अड़ियल रुख एक निश्चित पैटर्न हो सकता है. चीन की योजना वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control) पर भारतीय बलों को पूरी सीमा पर फैलाने की हो सकती है, ताकि सीमा पर आने वाली रसद की लागत बढ़ सके.

आमतौर पर यह समझा जाता है कि एलएसी पर चीनी बुनियादी ढांचा (Chinese infrastructure ) भारतीय पक्ष की तुलना में काफी बेहतर है, जहां पिछली सर्दियों में पहले से ही चीन ने अपने बलों को तैनात कर दिया था, ऐसे में वहां बेहतर बुनियादी ढांचा मौजूद हो सकता है.

भौगोलिक आधार की बात की जाए, तो चीन के लिए लद्दाख में परिस्थितियां आसान हैं, जबकि भारत के लिए भारत के लिए मुश्किल हैं. क्योंकि भारतीय सेना हिमालय के पठारीय इलाके में डटी हुई है.

पिछले हफ्ते भारत के उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू (vice-president Venkaiah Naidu ) की अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की यात्रा को लेकर चीन का जोरदार विरोध, व्यापक सीमा विवाद का हिस्सा हो सकता है, जिसे जानबूझकर दोनों देशों के बीच चल रहे सीमा गतिरोध से जुड़ा गया था.

सीमावर्ती राज्य में उपराष्ट्रपति की यात्रा का विरोध करते हुए, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता (Chinese Foreign Ministry spokesperson) झाओ लिजियन (spokesperson Zhao Lijian ) ने बुधवार को कहा था कि चीनी सरकार कभी भी भारतीय पक्ष द्वारा एकतरफा और अवैध रूप से स्थापित तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देती है, और भारत के खिलाफ दृढ़ता से विरोध करती है.

उन्होंने कहा कि हम भारतीय पक्ष से चीन की प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने का आग्रह करते हैं, भारत ऐसी किसी भी कार्रवाई को करना बंद करे, जो सीमा मुद्दे को जटिल और विस्तारित करे. इसके बजाय इसे शांति और स्थिरता बनाए (maintain peace and stability ) रखने के लिए वास्तविक ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. इस पर भारत कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि अरूणाचल प्रदेश भारत का ‘अटूट और अभिन्न’ हिस्सा है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारतीय नेताओं द्वारा भारत के किसी राज्य की यात्रा पर आपत्ति करने का कोई कारण नहीं है.

वहीं, मोल्दो वार्ता से ठीक पहले उत्तराखंड के चमोली स्थित बाड़ाहोती (Barahoti in Uttarakhand) और अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांगस्टे (Yangste in the Tawang sector) में दो बार भड़काऊ गतिविधियां होने की भी खबर मिली.

केंद्रीय क्षेत्र में बाड़ाहोती की घटना 30 अगस्त 2021 को हुई, जब लगभग 55 घोड़ों के साथ लगभग 100 सैनिकों की एक पीएलए पार्टी टुन जून (Tun Jun pass) दर्रे को पार करने के बाद भारतीय क्षेत्र में लगभग 5 किमी अंदर घुस गई.

पढ़ें - भारत की चीन को दो टूक- अरुणाचल भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा

दूसरी घटना 28 सितंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में मैकमोहन लाइन (McMahon Line in Arunachal Pradesh) पर यांग्त्से के पास हुई, जब दोनों पक्षों के गश्ती दलों के बीच आमना-सामना हुआ.

बता दें कि पश्चिम से पूर्व तक और लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में फैली, 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा हिमालय पर दुनिया के सबसे कठिन और चरम इलाकों में से एक है जहां पहुंच मुश्किल है. यहां ऑक्सीजन दुर्लभ है और सर्दियों के तापमान शून्य से माइनस 30-40 डिग्री सेंटीग्रेड तक गिर जाता है.

अधिकांश भाग पर एलएसी-पश्चिमी, मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में विभाजित-स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है, जिससे सीमा के बारे में धारणात्मक अंतर होता है.

जब से अप्रैल-मई 2020 में वर्तमान सीमा संघर्ष शुरू हुआ है, भारतीय सेना और पीएलए दोनों ने एलएसी पर और गहराई वाले क्षेत्रों में युद्ध जैसे उपकरणों के साथ 1,00,000 से अधिक सैनिकों को जुटाया और तैनात किया है, जबकि मौजूदा तनाव पूर्वी लद्दाख में पश्चिमी क्षेत्र में सबसे अधिक है. सबसे गंभीर खतरा पूर्वी क्षेत्र में है जहां चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है, इसे 'दक्षिणी तिब्बत' कहता है.

गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा का औपचारिक रूप से सीमांकन नहीं किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच की सीमा के बारे में धारणात्मक मतभेद हैं.

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