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इधर अफगान घटनाक्रम में व्यस्त भारत, उधर 'हिंद महासागर' तक चीन ने खोला नया रास्ता

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Published : Aug 31, 2021, 3:28 PM IST

'मलक्का दुविधा' चीन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है और वह हमेशा इससे निकलने का प्रयास करता है. इसी कड़ी में चीन ने हिंद महासागर के लिए एक नया 'रुट' खोला है. आइए जानते हैं क्या हैं इसके मायने और संभावनाएं. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

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नई दिल्ली : कुछ दिन पहले जब काबुल हवाई अड्डे पर आतंकवादियों द्वारा आत्मघाती हमले से हुई बड़ी तबाही को दुनिया टीवी स्क्रीन पर देख रही थी, ठीक उसी समय नीले कार्गो वैगन वाली और ईंटों जैसे लाल रंग के इंजन वाली ट्रेन गुपचुप तरीके से चेंगदू में अंतरराष्ट्रीय रेलवे पोर्ट के लिए रास्ता बना रही थी.

हालांकि यह देखने में काफी सामान्य घटनाक्रम था लेकिन इसका महत्व बहुत बड़ा है. क्योंकि चीन ने समुद्र-भूमि-रेल लिंक का उपयोग करके हिंद महासागर के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग खोला है. यह एक ऐसा विकास है जो रणनीतिक प्रभावों से भरा हुआ है और भारत के लिए भी बहुत मायने रखता है.

कुछ दिन पहले ही सिंगापुर में टेस्ट करने के लिए कार्गो लोड किया गया, जो समुद्र के रास्ते म्यांमार के यांगून बंदरगाह के लिए रवाना हुआ था. जहां से सड़क मार्ग से म्यांमार के एक हिस्से को पार करने के बाद चेंगदू के लिए सीधी रेल पर रवाना होने से पहले चीन के युन्नान प्रांत के लिनकांग पहुंचा था.

कुछ दिन पहले यानि 26 अगस्त को चेंगदू से लिनकांग तक रेल लिंक का उद्घाटन किया गया. लिनकांग म्यांमार के शान राज्य में सीमावर्ती शहर चिन श्वे हॉ के पास स्थित है. लिनकांग से चेंगदू तक ट्रेन द्वारा केवल तीन दिन लगेंगे.

चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के हिस्से के रूप में चिन श्वे हॉ पहले से ही म्यांमार और चीन के बीच सहमत सीमा पर तीन आर्थिक सहयोग क्षेत्रों में से एक है. 2013 की शुरुआत में चीन की प्रमुख बीआरआई परियोजना ने व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए मध्य एशिया, पश्चिम एशिया और रूस के माध्यम से चीन से यूरोप तक कम से कम 70 देशों को जोड़ने के लिए सड़कों, रेल और शिपिंग लेन का वैश्विक नेटवर्क स्थापित करने की योजना बनाई है.

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नया लिंक तब शुरू किया गया है जब भारत अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी (एईपी) पर लड़खड़ा गया है. जिसे 1991 में अपने पहले के अवतार यानि लुक ईस्ट को हरी झंडी दिखाने के बाद शुरू होना था. इसका उद्देश्य चीन के बढ़ते रणनीतिक प्रभाव को कमजोर करना है. हालांकि फिर से नामित एईपी दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ व्यापक आर्थिक और रणनीतिक संबंध बनाने का प्रयास करता है, जो दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के तहत समूहीकृत हैं.

नया म्यांमार-चीन मार्ग सिंगापुर से चेंगदू के लिए शिपिंग समय को 20 दिनों तक कम करेगा. इसके अलावा चीनी निर्यात को संकीर्ण मलक्कान जलडमरूमध्य से बचने में सक्षम बनाएगा. इस प्रकार मलक्कान दुविधा पर काबू पाने के लिए व हिंद महासागर से सीधे पश्चिम एशिया, यूरोप और अटलांटिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने के लिए यह महत्वपूर्ण कदम है.

इससे पश्चिमी चीन को पहली बार हिंद महासागर तक पहुंच प्राप्त हुई है. म्यांमार के नकदी संकट वाले टाटमाड (जुंटा) को आय के एक स्थिर स्रोत की गारंटी दी जाएगी. एक अन्य प्रमुख चीनी बुनियादी ढांचा परियोजना और चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे का एक हिस्सा रखाइन में क्याकफ्यु में एक गहरे बंदरगाह का विकास हुआ है.

यह चीन के दक्षिणी-पश्चिमी युन्नान प्रांत को समुद्र तक पहुंचने की अनुमति देगा. पहले से ही 770 किलोमीटर लंबी समानांतर तेल और गैस पाइप लाइन बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के क्यौकफ्यू द्वीप से युन्नान प्रांत के रुइली तक चलती है. बाद में 2800 किलोमीटर लंबी दौड़ के बाद गुआंग्शी तक फैली है.

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यह पाइप लाइन सालाना 22 मिलियन टन कच्चा तेल ले जाती है, वहीं गैस पाइप लाइन 12 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का परिवहन करती है. अत्यधिक आवश्यक ऊर्जा स्रोतों को ले जाने वाली पाइप लाइनों का यह नेटवर्क ऊर्जा की कमी वाले चीन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अशांत मलक्का जलडमरूमध्य को निरर्थक बना देता है.

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