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कर्ज लेकर घी पीएंगे तो चीन की तरह होंगे 'एक्सपोज', भारत के लिए बड़ा सबक

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 5, 2023, 3:37 PM IST

china under debt
कर्ज के जाल में चीन

Local Chinese government under debt trap : कर्ज लेकर खर्च करते रहेंगे, तो आपकी अर्थव्यवस्था कभी भी पटरी पर नहीं दौड़ेगी. चुनावी लाभ उठाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें धड़ल्ले से ऐसी घोषणाएं कर रहीं हैं, जो अनप्रोडक्टिव इकोनोमी की कैटेगरी में आती हैं. अगर इस पर लगाम नहीं लगाया गया, तो भारत भी चीन की राह चल पड़ेगा, जहां की स्थानीय सरकारें कर्ज के जाल में उलझती चली जा रहीं हैं. ऐसी आर्थिक नीति अपनाकर चीन पूरी दुनिया के सामने एक्सपोज हो रहा है. पेश है आईसीएफएआई हैदराबाद के पूर्व वीसी एस. महेंद्र देव का एक आलेख.

हैदराबाद : चीन अपनी जिस अर्थव्यवस्था पर नाज करता था, आज वह खतरे में दिख रहा है. उपभोक्ता खर्च और बचत बढ़ाने के बजाए चीन कर्ज की नीति पर अधिक से अधिक विश्वास कर रहा है. पिछले महीने 25 अक्टूबर को चीन ने बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों और शहरी बुनियादी ढांचा को मजबूत करने के लिए 137 बि. डॉलर का बॉन्ड जारी करने का फैसला किया. इस फैसले की वजह से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन का बजटीय घाटा 3.8 फीसदी और अधिक बढ़ जाएगा.

इसका मतलब तय है कि कर्ज पर आधारित अर्थव्यवस्था जल्द ही चीन को अपने जाल में उलझा सकता है. निश्चित तौर पर इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि आखिर चीन किस तरह से कर्ज के जाल में लगातार फंसता चला जा रहा है.

चीन की इस नीति पर पूरी दुनिया की नजर उस समय गई, जब पश्चिम चीन में स्थित गुइझाओ की सरकार ने मई 2023 में साफ तौर पर कर्ज संबंधित खतरों से निपटने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी. इसी साल सितंबर में इनर मंगोलिया ने बढ़ते कर्ज के बोझ का वहन करने के लिए 9 बि. डॉलर का ऋण लिया. इसने 2018 में लोन लिया था. उसे नहीं चुका सका, इसलिए उसे चुकाने के लिए फिर से लोन ले लिया. आसान भाषा में कहें तो स्थानीय सरकारें कर्ज का वहन करने के लिए कर्ज ले रहीं हैं.

स्थानीय सरकारों ने लोकल गवर्मेंट फाइनेंसिंग व्हीकल (एलजीएफवी), एक सरकारी कॉरपोरेट फंड प्लेटफॉर्म, से पैसे लिया था. बदले में बैंक और सामान्य हाउसहोल्ड को बॉन्ड जारी किए गए थे. लेकिन कोविड ने पूरा कैलकुलेशन बिगाड़ दिया. टैक्स संग्रह प्रभावित हुआ. जमीन की बिक्री प्रभावित हुई. रियलिटी सेक्टर उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. लोकल गवर्मेंट के लिए आमदनी के ये बड़े स्रोत थे.

लोकल गवर्मेंट के सामने अब सीमित विकल्प बचा है. कोविड से पहले चीन ने बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के नाम पर एलजीवीएफ को खुलकर काम करने की इजाजत नहीं दी, लिहाजा एजेंसी मार्केट से पैसा नहीं रेज कर सका. दूसरी ओर स्थानीय सरकारों की आमदनी घट गई. लिहाजा घटती आमदनी, नकदी का अभाव, रियल स्टेट सेक्टर का सिकुड़ना, इन सभी स्थितियों ने लोकल गवर्मेंट को कर्ज के जाल में उलझा दिया. इसके साथ चीन का फिस्कल स्ट्रक्चर भी बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार है.

क्या है भारत की स्थिति - वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन और भारत की तुलना अक्सर होती है, खासकर एशिया क्षेत्र में तो यही दोनों ऐसे देश हैं, जिनके बीच आर्थिक प्रतिद्वंद्विता की खबरें सबसे अधिक आती रहती हैं. 27 अक्टूबर 2023 को एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग ने भारत को लेकर कहा है कि अगले दो से तीन सालों तक यहां की पब्लिक फाइनेंस प्री-कोविड लेवल तक नहीं पहुंच सकेगी.

इसके अनुसार भारत के क्रेडिट प्रोफाइल की सबसे बड़ी कमजोरी राज्य और केंद्र की डेफिसिट है. भारत का फिस्कल डेफिसिट जीडीपी का 5.9 फीसदी है. सरकार ने 2025-26 तक इसे 4.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन आने वाले समय में होने वाले चुनावों को देखते हुए लग रहा है कि इसे कम करना मुश्किल होगा. फिस्कल डेफिसिट कम करने का मतलब होता है कि कम खर्च करना. लेकिन चुनावी साल में सरकार वेलफेयर स्कीमों पर पैसे कम खर्च करेगी, ऐसा दिख नहीं रहा है. बल्कि घोषणाओं की झड़ियां लग जाती हैं, और यही उनके फिस्कल डेफिसिट को बढ़ा देता है.

आईएमएफ का सबसे ताजा प्रोजेक्शन बतलाता है कि भारत का कर्ज जीडीपी का 81.9 फीसदी तक जा सकता है. 2024 में यह 82.3 फीसदी तक जा सकता है. हालांकि, 2028 तक घटकर 8.09 फीसदी तक रह सकता है. 2022 में यह 81 फीसदी था.

एफआरबीएम रिव्यू कमेटी के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारों को मिलाकर यह लेवल जीडीपी के 60 फीसदी तक रखना चाहिए, यानी 40 फीसदी केंद्र के लिए और 20 फीसदी स्टेट के लिए. 2022-23 में स्टेट का ऋण लेवल 29.5 तक था. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार ने यदि सख्त कदम नहीं उठाए, तो हम चीन की राह पर चलेंगे या नहीं.

कर्ज का प्रबंधन किस तरह से हो सकता है. इसके दो प्रमुख घटक हैं. प्राइवेट कर्ज और पब्लिक कर्ज. प्राइवेट कर्ज का प्रबंधन करने के लिए ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जिनका उद्देश्य हाउस होल्ड के साथ-साथ गैर-वित्तीय निगरानी करना हो, इसमें कॉरपोरेट ऋण का लेवल भी शामिल है. जहां तक सार्वजनिक ऋण का सवाल है, वहां पर खर्च और कर्ज के बीच बैंलेस बनाना जरूरी है. भारत जैसे देश में अतिरिक्त टैक्स रेवेन्यू जेनरेट करने से ही इसे कम किया जा सकता है. नॉन प्रोडक्टिव खर्च पर नियंत्रण जरूरी है. राज्यों को अतिरिक्त कर्ज से बचना चाहिए. सिर्फ चुनावी लाभ देखकर खर्च करना अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं कहा जा सकता है. यदि ऐसा कर पाएंगे, तभी पर्याप्त राजकोषीय अनुशासन बना रहेगा, नए निवेश को बढ़ावा मिलेगा और और हमारी आर्थिक तीव्र गति से आगे बढ़ेगी.

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