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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, किसी भी महिला कर्मी को मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि किसी भी हाल में महिला कर्मी को मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता है. याचिकाकर्ता सरकारी कर्मी है. विभाग ने उसे छुट्टी इसलिए नहीं दी, क्योंकि वह मातृत्व अवकाश को प्राप्त कर चुकी थी. हालांकि, तब उसने अपने पति के बच्चों के लिए छुट्टी ली थी. अब वह खुद अपने (जैविक) बच्चे की मां बनना चाहती है, तो विभाग ने छुट्टी नहीं दी. खास बात ये भी रही कि कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई देर शाम तक की.

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सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 16, 2022, 10:43 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल से जोड़ने और उन्हें वहां पर बरकरार रखने का रहा है. कोर्ट ने कहा कि रोजगार के दौरान किसी भी महिला के लिए चाइल्ड बर्थ को उसे उसके अभिन्न हिस्सा के रूप में रखकर देखा जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की एक बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मी हैं. उन्हें मातृत्व अवकाश नहीं दिया गया था. सरकारी विभाग ने बताया कि उस महिला ने अपने बच्चों की देखभाल के लिए अवकाश ग्रहण कर लिया था. यानी जब उसकी शादी हुई थी, तो पति के बच्चों की देखभाल के लिए उसने समय लिया था. अब वह खुद अपने बच्चों की मां बनने के लिए अवकाश चाहती है.

अदालत ने कहा कि यदि चाइल्ड केयर लीव का इस्तेमाल केंद्रीय सिविल सेवा नियम (सीसीएस) के तहत उसके अधिकारों को खत्म करने के लिए किया जाता है तो मातृत्व अवकाश का इरादा विफल हो जाएगा.

सरकारी वकील ने कहा कि दो बच्चों के लिए मातृत्व अवकाश के नियम छोटे परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए हैं, इसलिए उस नजरिए से देखा जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट उनकी दलील से सहमत नहीं हुआ. अदालत ने कहा कि इनके मामले में यह तर्क लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जहां पति के पहले से बच्चे थे. कोर्ट ने कहा कि यह एक कठोर वास्तविकता है कि अगर इस तरह की सुविधाओं का अभाव रहा, तो महिलाएं काम छोड़ देंगी. अदालत ने उस महिला को अवकाश देने का निर्देश दिया.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल से जोड़ने और उन्हें वहां पर बरकरार रखने का रहा है. कोर्ट ने कहा कि रोजगार के दौरान किसी भी महिला के लिए चाइल्ड बर्थ को उसे उसके अभिन्न हिस्सा के रूप में रखकर देखा जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की एक बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मी हैं. उन्हें मातृत्व अवकाश नहीं दिया गया था. सरकारी विभाग ने बताया कि उस महिला ने अपने बच्चों की देखभाल के लिए अवकाश ग्रहण कर लिया था. यानी जब उसकी शादी हुई थी, तो पति के बच्चों की देखभाल के लिए उसने समय लिया था. अब वह खुद अपने बच्चों की मां बनने के लिए अवकाश चाहती है.

अदालत ने कहा कि यदि चाइल्ड केयर लीव का इस्तेमाल केंद्रीय सिविल सेवा नियम (सीसीएस) के तहत उसके अधिकारों को खत्म करने के लिए किया जाता है तो मातृत्व अवकाश का इरादा विफल हो जाएगा.

सरकारी वकील ने कहा कि दो बच्चों के लिए मातृत्व अवकाश के नियम छोटे परिवारों को प्रोत्साहित करने के लिए हैं, इसलिए उस नजरिए से देखा जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट उनकी दलील से सहमत नहीं हुआ. अदालत ने कहा कि इनके मामले में यह तर्क लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जहां पति के पहले से बच्चे थे. कोर्ट ने कहा कि यह एक कठोर वास्तविकता है कि अगर इस तरह की सुविधाओं का अभाव रहा, तो महिलाएं काम छोड़ देंगी. अदालत ने उस महिला को अवकाश देने का निर्देश दिया.

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