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'एक रुपये मुहिम' से हजारों बच्चों का भविष्य संवार रही छत्तीसगढ़ की बिटिया

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Published : Oct 5, 2021, 11:36 PM IST

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कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा. और गरीब बच्चों के लिए ये सहारा बनी हैं बिलासपुर की बेटी सीमा वर्मा. सीमा ने एक अनोखी एक रुपया मुहिम चलाकर पिछले पांच साल से पैसे इकट्ठे किए और गरीब बच्चों को अक्षर ज्ञान दे रही हैं. पांच सालों में सीमा ने करीब 13 हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों के पढ़ाई के लिए सामग्री उपलब्ध कराई है.

बिलासपुर : 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...' दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar) की लिखी यह पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं बिलासपुर की बेटी सीमा वर्मा पर. सीमा ने बिलासपुर में एक अनोखी मुहिम की शुरुआत की है.

यह मुहिम न केवल घुमंतू बच्चों को शिक्षा से जोड़ रही है, बल्कि उन्हें समाज में एक पहचान देने में भी मदद कर रही है. इतना ही नहीं उनकी इस मुहिम के साथ अब समाज के बड़े दानदाता भी जुड़ गए हैं. सीमा इस मुहिम से समाज के बड़े और दानदाताओं को प्रोत्साहित कर गरीब बच्चों की स्कूल फी के साथ उनकी शिक्षा-दीक्षा (Education Graduation) की भी व्यवस्था कर रही हैं.

एक रुपया मुहिम से बच्चों का भविष्य संवार रही सीमा वर्मा

सीमा की इस अनोखी मुहिम का नाम है "एक रुपया मुहिम". इसके तहत सीमा लोगों से एक रुपये चंदा लेती हैं और इस चंदे के पैसे को वह स्कूल फी के साथ बच्चे के लिए कॉपी-किताब और ड्रेस-जूता के साथ अन्य सहायता के रूप में प्रदान करती हैं.

5 साल में 13 हजार से अधिक बच्चे लाभान्वित

बिलासपुर के कौशलेंद्र राव विधि कॉलेज (Kaushalendra Rao Law College) में एलएलबी अंतिम वर्ष की छात्रा सीमा वर्मा पिछले 5 सालों में 13 हजार से अधिक स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी सामग्री उपलब्ध करा चुकी है. साथ ही 34 स्कूली बच्चों की पढ़ाई का लगातार खर्च उठा रही हैं. जब तक बच्चे 12वीं तक की शिक्षा नहीं पूरी कर लेते तब तक उनकी मदद करती है. इस समय वह 50 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रही हैं.

साथ ही ट्यूशन भी निःशुल्क प्रदान कर रही हैं. मूलतः छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की रहने वाली सीमा अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक रुपये मुहिम भी चलाती हैं. सीमा आईपीएस डांगी और अपनी मां को अपने जीवन की प्रेरणा मानती हैं. सीमा कहती हैं कि यह कार्य वह युवाओं को मोटिवेट करने के लिए भी करती हैं. बच्चों को गुड टच-बैड टच (Good Touch Bad Touch) , पोक्सो एक्ट, मौलिक अधिकारों, बाल विवाह, राइट टू एजुकेशन और बाल मजदूरी आदि की जानकारी भी देती हैं.

दिव्यांग दोस्त की मदद से मिली प्रेरणा

"एक रुपया मुहिम" की शुरुआत को लेकर सीमा बताती हैं कि उनके साथ पढ़ने वाली उनकी एक दोस्त सुनीता यादव दिव्यांग है. वह ट्राइसिकल की मदद से कॉलेज जाती थी. सीमा की इच्छा थी कि वह उसे इलेक्ट्रॉनिक ट्राइसिकल दिलवाए. इसको लेकर अपने कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की.

इसके बाद बाजार में भी पता किया. सीमा बताती हैं कि उनके दिमाग में पहले से ही यह बात चल रही थी कि अपनी सहेली को कैसे भी इलेक्ट्रॉनिक ट्राइसाइकिल दिलाना ही है, फिर चाहे इसके लिए छात्रों के बीच चंदा क्यों न करना पड़ जाए. तभी सीमा ने "एक रुपया मुहिम" की शुरुआत की.

काफी मुश्किलों भरा रहा शुरुआती वक्त

सीमा कॉलेज से ट्राइसाइकिल के बारे में पता करने निकली. वह शहर के साइकिल दुकान गई तो मालूम चला ट्राइसाइकिल मेडिकल कंप्लेक्स में मिलेगी. मेडिकल कंपलेक्स में पता चला ट्राइसाइकिल यहां भी नहीं है. फिर मेडिकल शॉप वाले से ही पूछकर उनके बताए पते पर पहुंची.

जब ट्राइसाइकिल का दाम पूछा तो पता चला कि इसकी कीमत 35000 है. इससे दिल्ली से ऑर्डर पर मंगवाना पड़ता है. सीमा उस वक्त को याद करते हुए कहती हैं कि वह क्षण काफी मुश्किलों भरा था, लेकिन किसी भी हाल में वह अपनी सहेली सुनीता के लिए ट्राइसाइकिल लेने ही वाली थी.

पंचर वाले ने दिखाया रास्ता

सीमा बताती हैं कि इसके बाद वह वहां से निकल कर एक पंचर वाले की दुकान पर जा पहुंची. पंचर वाले ने बताया कि यह सरकार फ्री ऑफ कॉस्ट देती है. सीमा ने इसके प्रोसेस के बारे में पूछा तो पता चला कि जिला पुनर्वास केंद्र जाना पड़ेगा, जहां डॉक्यूमेंट सबमिट करने होंगे.

इसमें 6 महीने या साल भर का वक्त भी लग सकता है. तब सीमा ने इसे जल्दी पाने का कोई और रास्ता पूछा. उसने कलेक्टर या कमिश्नर के पास जाने का सुझाव दिया. यह भी बताया कि कमिश्नर साहब काफी नरम दिल के और भावुक हैं, वह आपकी जल्दी मदद करेंगे.

प्रशासन से मिली मदद

सीमा ने बताया कि वह अपने एक दोस्त के साथ कमिश्नर ऑफिस गई, जहां उसने कमिश्नर समेत अन्य अधिकारियों को सुनीता के बारे में बताया. उसने कमिश्नर से कहा कि सुनीता उसकी क्लासमेट थी और उसके दिव्यांग होना उसके लिए अभिशाप बना हुआ है.

इसके चलते उसे 1 साल बैक भी लगा है. सीमा ने बताया कि कमिश्नर ऑफिस में बात सुनने के बाद वहां के अधिकारियों ने डॉक्यूमेंट जमा करने के लिए कहा. इसके बाद उसने सभी डॉक्यूमेंट जमा कर दिये. दस्तावेज जमा करने के बाद दूसरे दिन एडिशनल कमिश्नर ने सीमा को कॉल कर कहा कि अपनी फ्रेंड को डाक्यूमेंट्स पर साइन करने के लिए ऑफिस ले आओ. दस्तावेज में हस्ताक्षर कराने के बाद तत्कालीन कमिश्नर सोनमणी बोरा के हाथों से इलेक्ट्रॉनिक ट्राइसिकल सुनीता को मिल गई.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना से मिला एक रुपये मुहिम का आइडिया

सीमा ने बताया कि जिस प्रकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय लोगों से एक-एक पैसा इकट्ठा कर बनवाया गया था, इसी कांसेप्ट के साथ मैं लोगों से एक-एक रुपये मांग कर इकट्ठा करती थी. जब उसने पैसा इकट्ठा करने की शुरुआत की तो करीब 2,34,000 रुपये इकट्ठे किये.

इन रुपयों से बच्चों की फी भरनी होती थी. सीमा ने कहा कि स्टार्टिंग में तो मैंने लोगों से बच्चों के लिए मिले पैसों से उनकी फी भरी, धीरे-धीरे लोग खुद बच्चों से जुड़ने लगे. बिलासपुर के तत्कालीन एसपी मयंक श्रीवास्तव ने 6 बच्चों को गोद लिया था. इसके बाद स्पेशल डीजीपी छत्तीसगढ़ आरके विज ने इस वर्ष 12वीं की छात्रा की साल भर की फी सीमा के माध्यम से जमा कराई. आईपीएस और बिलासपुर रेंज के आईजी रतनलाल डांगी ने भी सीमा को आर्थिक सहायता दी.

लॉकडाउन में बच्चों को अवसादमुक्त रखने के लिए कर रहीं सराहनीय कार्य

आज कोरोना जैसी घातक बीमारी की वजह से देश में करीब 2 वर्षों से स्कूल-कॉलेज बंद हैं. बड़े बच्चों की परीक्षाएं भी ऑनलाइन ली जा रही हैं. छोटे बच्चों को प्रमोट कर दिया जा रहा है. जो बच्चे स्कूल जाते थे. पढ़ाई करते थे. खेलकूद या अन्य एक्टिविटी में भाग लेते थे.

अपने दोस्तों के साथ ही स्कूल में समय व्यतीत करते थे, आज कहीं न कहीं बच्चों पर लॉक डाउन का बुरा असर पड़ रहा है. बच्चे अवसादग्रस्त हो रहे हैं. इससे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. लॉक डाउन की वजह से बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं. इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक रुपया मुहिम की संचालिका सीमा वर्मा बच्चों के लिए लगातार कार्यरत हैं.

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बच्चों को फ्री ट्यूशन के साथ-साथ पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की क्लास भी दे रहीं

बच्चों को फ्री ट्यूशन क्लास के साथ अलग-अलग एक्टिविटी भी सीमा कराती रही हैं. जैसे फ्री योगा क्लास, एनुअल फंक्शन की तर्ज पर सपोर्ट एक्टिविटी, डांस प्रतियोगिता और ड्राइंग प्रतियोगिता के साथ अलग-अलग एक्टिविटी. बच्चे भी उत्साहपूर्वक इसमें भाग लेते रहे.

इस बार पुनः लॉक डाउन की स्थिति में बच्चों के मानसिक तनाव को कम करने के लिए सीमा ने बच्चों को लगातार उत्साहित करने के लिए ड्राइंग प्रतियोगिता और आर्ट एंड क्राफ्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया था. अब तक सीमा को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के दो दर्जन से ज्यादा पुरस्कार मिले हैं.

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