क्या धर्मांतरण और आरक्षण छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में बनेगा बड़ा मुद्दा ?

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Published : Jan 10, 2023, 10:39 PM IST

conversion reservation impact in 2023 election

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अब तक कुल 4 विधानसभा चुनाव हुए हैं. पहला चुनाव साल 2003 में हुआ है. जब भाजपा ने जोगी सरकार को परास्त करते हुए राज्य की सत्ता हासिल की. इसके बाद साल 2008 विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही.conversion reservation have a big impact in 2023 election साल 2013 विधानसभा चुनाव के पहले झीरम कांड हुआ.chhattisgarh assembly election 2023 उस समय कयास लगाया जा रहा था कि कहीं न कहीं कांग्रेस सत्ता पर काबिज होगी. लेकिन एक बार इन कयासों को झुठलाते हुए तीसरी बार भाजपा छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज होने में सफल रही. आगामी विधानसभा चुनाव भी नजदीक है. ऐसे में धर्मांतरण और आरक्षण के मुद्दे का चुनाव में क्या असर दिख सकत है. आईए जानते हैं.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में धर्मांतरण और आरक्षण का मुद्दा

रायपुर: ऐसे में हम उन मुद्दों पर चर्चा करने जा रहे हैं, जो पिछले विधानसभा चुनाव में खास रहे, और आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.conversion reservation have a big impact in 2023 election छत्तीसगढ़ स्थापना के बाद हुए विधानसभा चुनाव को वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने काफी करीब से देखा है. आइए उनसे जानने की कोशिश करते हैं कि इन चुनावों के दौरान कौन से खास मुद्दे थे.chhattisgarh assembly election 2023 जिसका प्रभाव देखने को मिला और आगामी विधानसभा चुनाव में ऐसे कौन से मुद्दे हैं जो असर डाल सकते हैं.

जोगी के तानाशाह रवैए की वजह से साल 2003 में हुई थी कांग्रेस की हार: चर्चा के दौरान शशांक शर्मा ने बताया कि "साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान अजीत जोगी पर तानाशाह रवैया अपनाने का आरोप लगता रहा. जोगी पर एकतरफा निर्णय लेने के भी आरोप लगते थे.conversion reservation have a big impact in 2023 election उस दौरन किसान का मुद्दा हो या एकतरफा निर्णय लेने की बात हो, जाति का मामला हो, चाहे सामाजिक मुद्दे हो या राजनीतिक विषय रहे हो. विद्या चरण शुक्ल के द्वारा विरोध में चुनाव लड़ने का मामला हो. ये सब मुद्दों ने चुनाव को प्रभावित किया और कांग्रेस की हार हुई"

अच्छा व्यहवार वाला नेता लगातार जीत रहा: शंशाक शर्मा ने कहा कि" छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष की बात की जाए तो यहां जिस नेता का व्यवहार अच्छा है.chhattisgarh assembly election 2023 वह लगातार जीतता चला रहा है. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई ऐसा बड़ा मुद्दा हो जो उस दौरान चुनाव को प्रभावित करता हो. रोजगार विकास सहित अन्य मुद्दे भी चुनाव पर प्रभाव डालते हैं. लेकिन उनका असर महज कुछ हद तक ही सीमित होता है."



चावल वाले बाबा का मुद्दा उछला: शशांक शर्मा का कहना है कि "लाभ और नुकसान पर ही सारा मत पड़ता है.conversion reservation have a big impact in 2023 election अगर साल 2008 की बात की जाए तो उस दौरन तीन रुपये प्रति किलो चावल योजना की शुरुआत की गई थी.chhattisgarh assembly election 2023 बाद में ₹1 किलो चावल योजना शुरू किया गया. उस समय लोगों को लगा कि उन्हें यह एक लाभ मिल रहा है. जो लोग 22-25 और ₹30 किलो चावल खरीददते उन्हें सरकार एक रूपये किलो चावल दे रही है. उस दौरन चावल वाले बाबा वाला मुद्दा राजनीति में बना रहा."

2008 का चुनाव बिना विपक्ष के लड़ा गया: शशांक शर्मा ने कहा कि "साल 2008 वाले चुनाव में बीजेपी इसलिए जीती की तत्कालीन सरकार सब को साथ में लेकर रही थी.conversion reservation have a big impact in 2023 election उस दौरान जो सलवा जुडूम चल रहा था. उसे प्रोटेक्शन मिल रहा था. किसानों के लिए धान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की बात हो रही थी. लास्ट के 2 साल बोनस दिए गए थे. एक रुपए किलो चावल , युवाओं और बेरोजगारों को साधकर यह चुनाव लड़ा गया था.chhattisgarh assembly election 2023 ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि साल 2008 का चुनाव बिना विपक्ष के लड़ा गया. साल 2008 में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है ऐसा देखने को नहीं मिल रहा था. पार्टी के अंदर में चुनाव लड़ा जा रहा है. ऐसा जोश देखने को नहीं मिला था. इसलिए उस दौरान भाजपा बहुत ही आसानी से अपनी सरकार रिपीट करने में सफल रही."



नक्सली घटनाओं में काफी इजाफा हुआ: शशांक शर्मा ने कहा कि "साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर शशांक शर्मा का कहना है कि chhattisgarh assembly election 2023 "हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी मुद्दे वही होते हैं. सरकार से नाराजगी और सरकार से संतुष्टि प्रमुख मुद्दा होता है. सन 2013 की बात की जाए जो परिवर्तन आया. उसमें कह सकते हैं कि सरकार के द्वारा जो सलवा जुडूम को सपोर्ट किया जा रहा था.(chhattisgarh assembly election 2023) नक्सली घटनाओं में काफी इजाफा हुआ और सलवा जुडूम पूरी तरह से असफल रहा. जिसका असर जनजाति सीटों पर देखने को मिला."

भाजपा ज्यादातर जनजाति सीटों पर हार गई: शशांक शर्मा ने कहा कि "भाजपा ज्यादातर जनजाति सीटों पर हार गई. अन्य क्षेत्रों की बात की जाए तो वहां चावल का मुद्दा, किसानों को बोनस का मुद्दा सरकार ने ₹300 प्रति क्विंटल बोनस देने का वादा किया था. यह सारी चीजों का साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव पर असर दिखा और दुसरी प्रमुख वजह कांग्रेस के नेतृत्व का जीरम घाटी नक्सली हमले में खत्म होना था.chhattisgarh assembly election 2023 उस आपाधापी में कोई अच्छा नेतृत्व और विकल्प कांग्रेस के पास नहीं था. इसका लाभ मैदानी और अंदरूनी क्षेत्रों में भाजपा को मिला था."



"2018 में एंटी इनकंबेंसी और कांग्रेस की मजबूती": शशांक शर्मा ने कहा कि "साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी संतोष और असंतोष हावी रहा. ₹300 बोनस देने की बात भाजपा सरकार के द्वारा की गई थी. जो जनप्रतिनिधि दो से तीन बार जीत कर आए थे. उनके खिलाफ भी लोगों की नाराजगी थी. उनके व्यवहार में बड़ा बदलाव आया था. सरकार चलाने का तरीका बदला. क्योंकि साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आ गई. केंद्र और राज्य दोनो जगह भाजपा सरकार थी. इस वजह से बहुत सारे निर्देश केंद्र से आते थे.conversion reservation have a big impact in 2023 election जिस वजह से यहां की सरकार के सामने कई तरह की समस्याएं खड़ी हो गई थी. जिस वजह से सरकार के द्वारा किए गए वादे पूरे नहीं किए जा सके."

जनप्रतिनिधियों से भी नाराजगी थी: शशांक शर्मा ने कहा कि "गजब का असंतोष जनता में देखने को मिला. इसके अलावा 15 साल की एंटी इनकंबेंसी भी इकट्ठी हो गई थी. इस बीच 2013 के बाद जो कांग्रेस में एक नेतृत्व की कमी थी. उसे भूपेश बघेल ने पूरा कर दिया. उन्होंने इसके बाद एक नई टीम बनाकर काम किया. इससे एक कांग्रेस के अंदर जोश आया और उसने 2018 विधानसभा चुनाव मजबूती से लड़ा. सरकार की कमजोरी थी लोगों में नाराजगी थी.conversion reservation have a big impact in 2023 election जनप्रतिनिधियों से भी नाराजगी थी. जिस वजह से 15 साल की कसर जनता ने एक साथ बीजेपी को 15 सीटों में समेटकर उतार दिया."



2023 में आरक्षण और धर्मांतरण होगा प्रमुख मुद्दा: साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि "जहां-जहां जनता का अहित होगा तो सरकार के प्रति उनका असंतोष बढ़ेगा, जिसका असर चुनाव में देखने को मिलेगा. उसमें एक धर्मांतरण मुद्दा भी है.conversion reservation जिस प्रकार बस्तर संभाग धर्मांतरण से प्रभावित है निश्चित तौर पर जनजाति समाज भी प्रभावित हैं. सलवा जुडूम की असफलता और नक्सली घटनाओं के बढ़ने से हिंसा से प्रभावित होकर जनजाति समाज ने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का पक्ष लिया था. ऐसे में सरकार में रहते हुए धर्मांतरण आरक्षण के मुद्दे पर जनता की नाराजगी होगी तो वही मतदाता वापस भाजपा के खेमे में चले जाएंगे. इसकी एक बड़ी संभावनाएं हैं."

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नौकरियां न मिलने से युवा वर्ग नाराज: शशांक शर्मा ने कहा कि "वहीं जो युवा वर्ग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है. 2 साल कोरोना के कारण और अभी आरक्षण की वजह से भर्ती रुकी हैं. नौकरियां न मिलने की वजह से युवा वर्ग भी खासा नाराज हैं. कर्मचारियों का भी बहुत बड़ा मुद्दा है. यही वे मुद्दे है जिस पर सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है.conversion reservation have a big impact in 2023 election वही असंतोष बड़ा मुद्दा बन जाता है, और जनप्रतिनिधियों के प्रति उनकी सक्रियता नहीं होने के कारण नाराजगी है. मेरा अनुभव है कि चुनाव के दौरान सड़क, बिजली, पुल, पुलिया यह बड़ा मुद्दा नहीं होता. यह हर आदमी को लगता है सरकार का यह काम है. वह मतदान को ज्यादा प्रभावित नहीं करती. इसके अलावा स्थानीय विधायक जनप्रतिनिधियों का रवैया चुनाव में अहम महत्व रखता है. जनता मौन रहती है और चुनाव के समय जो परिस्थिति निर्मित होगी उस दौरान ही पता चल सकेगा कि रुझान किस ओर है."

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