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वैवाहिक रेप मामले में सुनवाई जारी, केंद्र ने कहा- सभी पक्षों से मशविरा जरूरी

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Published : Jan 13, 2022, 10:10 PM IST

वैवाहिक रेप के मामले पर (Marriage rape case in Delhi High Court) केंद्र सरकार सभी पक्षों से मशविरा कर रही है. दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से यह जानकारी दी गयी. अब आगे क्या हाेगा इस मामले में पढ़िये. शुक्रवार को भी इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी.

delhi high court
दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली: वैवाहिक रेप के मामले पर केंद्र सरकार सभी पक्षों से मशविरा कर (Marriage rape case in Delhi High Court) रही है. दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मसले पर केंद्र ने रचनात्मक रुख अपनाया है. जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर 14 जनवरी को भी सुनवाई (marital rape case hearing today) करेगी.

सुनवाई के दौरान जस्टिस राजीव शकधर ने बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस सी हरिशंकर से कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने इस मामले को सुबह मेंशन कर कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में रचनात्मक रुख अख्तियार (Central government's side on matrimonial rape case) किया है. कोर्ट ने केंद्र की इस दलील का स्वागत किया. सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश वकील मोनिका अरोड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी पक्षों की राय मांगी है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, चीफ जस्टिस और संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं ताकि वैवाहिक रेप के संबंध में जरूरी संशोधन किए जा सके. इस पर जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि आम तौर पर ऐसे मामलों में लंबा समय लग जाता है.

बता दें कि इसके पहले केंद्र सरकार ने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने का विरोध किया था. 29 अगस्त 2018 को केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से शादी जैसी संस्था अस्थिर हो जाएगी और ये पतियों को प्रताड़ित करने का एक जरिया बन जाएगा. केंद्र ने कहा था कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के प्रमाण बहुत दिनों तक नहीं रह पाते. केंद्र ने कहा था कि भारत में अशिक्षा, महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त न होना और समाज की मानसिकता की वजह से वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रख सकते.

केंद्र ने कहा था कि इस मामले में राज्यों को भी पक्षकार बनाया जाए ताकि उनका पक्ष जाना जा सके. केंद्र ने कहा था कि अगर किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ किए गए किसी भी यौन कार्य को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा तो इस मामले में फैसले एक जगह आकर सिमट जाएंगे और वो होगी पत्नी. इसमें कोर्ट किन साक्ष्यों पर भरोसा करेगा ये भी एक बड़ा सवाल होगा. 12 जनवरी को सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी राजशेखर राव ने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने में बाधा संबंधी अपवाद को खत्म करने का समर्थन किया था. राव ने कहा था कि मैं इस मामले पर जितना ज्यादा समय व्यतीत करता हूं, मुझे लगता है कि ये एक खराब प्रावधान है. संसद को कई दफा इसका आकलन करने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने इस प्रावधान को बनाये रखा.

उन्होंने कहा कि कोर्ट बोल चुकी है कि रेप किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाती है. अगर कोई महिला वैवाहिक रेप की शिकायत नहीं करती है इसका मतलब ये नहीं है कि इसके संवैधानिकता की बात नहीं हो सकती है. राजशेखर राव के अलावा कोर्ट ने इस मामले में दो हस्तक्षेपकर्ताओं की दलीलें भी सुनीं. एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वकील राज कपूर ने धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद ही संसद ने इस अपवाद के प्रावधान को बनाये रखा है. उन्होंने कहा था कि अलग रहने पर पुरुष और महिला न केवल शरीर से अलग रहते हैं बल्कि दिलोदिमाग से भी अलग रहते हैं. ऐसे में ये कहना गलत है कि अपवाद का ये प्रावधान संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है. दूसरे हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वकील ऋत्विक बिसारिया ने भी याचिका का विरोध किया था.

11 जनवरी को हाईकोर्ट ने कहा था कि हर महिला को चाहे वो शादीशुदा हो या गैरशादीशुदा, उसे नहीं कहने का अधिकार है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि विवाहित महिला के साथ भेदभाव क्यों? क्या विवाहित महिला के गरिमा भंग नहीं होती है और अविवाहित महिला की गरिमा को ठेस पहुंचती है. कोर्ट ने कहा था कि महिला चाहे शादीशुदा हो या गैरशादीशुदा उसे नहीं कहने का हक है. क्या पचास दूसरे देशों ने गलत किया जो वैवाहिक रेप को अपराध करार दिया है. कोर्ट ने कहा था कि यह दलील स्वीकार करना मुश्किल है कि महिलाओं के पास दूसरे कानूनी विकल्प मौजूद हैं.

याचिका एनजीओ आर आईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति समेत दो और लोगों ने दायर की है. याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि यह अपवाद विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों की ओर से की गई यौन प्रताड़ना की खुली छूट देता है.

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