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उत्तराखंड: IFS संजीव चतुर्वेदी के लोकपाल में प्रतिनियुक्ति का मामला, '8 हफ्ते में निर्णय ले केंद्र'

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Published : Sep 3, 2022, 4:23 PM IST

आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के लोकपाल में प्रतिनियुक्ति का मामला गरमा गया है. केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) की नैनीताल सर्किट बेंच ने केंद्र सरकार को संजीव चतुर्वेदी के लोकपाल पद पर प्रतिनियुक्ति के मामले में आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लेने के आदेश केंद्र सरकार को दिए हैं.

Uttarakhand News
IFS संजीव चतुर्वेदी

देहरादून: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) की नैनीताल सर्किट बेंच ने भारतीय वन सेवा के चर्चित अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान हल्द्वानी संजीव चतुर्वेदी के लोकपाल पद पर प्रतिनियुक्ति के मामले (matter of deputation of Sanjiv Chaturvedi) में आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लेने के आदेश केंद्र सरकार को दिए हैं.

2019 से लटका है मामला: ट्रिब्यूनल ने कहा है कि संजीव चतुर्वेदी (IFS Sanjiv Chaturved) की ओर से गठित लोकपाल संस्था में प्रतिनियुक्ति के लिए 2019 में आवेदन किया गया था. आवेदन को उत्तराखंड सरकार ने अनापत्ति प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए अपनी संस्तुति 23 दिसंबर 2019 को भेज दी थी. तब से केंद्र स्तर पर यह निर्णय लंबित था.

26 मई को पूरी हो गई थी सुनवाई: कैट की नैनीताल बेंच की न्यायिक सदस्य प्रतिमा गुप्ता व प्रशासनिक सदस्य तरुण श्रीधर की पीठ ने 26 मई को मामले में सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रखा था, जिसे पहली सितंबर को सुनाया गया. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का कहना था कि लोकपाल पद (IFS Officer Sanjiv Chaturvedi in Lokpal) के लिए कोई विज्ञापन नहीं निकला है. विज्ञापन की प्रति उपलब्ध कराने पर ही सरकार निर्णय लेगी. जबकि आईएफएस संजीव ने सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से प्राप्त दस्तावेज अदालत के समक्ष पेश किया. जिसमें लोकपाल के कार्यालय ने साफ बताया कि लोकपाल प्रतिनियुक्ति के लिए कभी भी विज्ञापन नहीं निकाला. लोकपाल की स्थापना से अब तक पिछले तीन साल में अखिल भारतीय सेवा के तमाम अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर तैनाती दी गई.

कैट ने अपने आदेश में केंद्र सरकार को लेकर बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि 'कोर्ट इस तथ्य से पूरी तरह आश्चर्यचकित है कि प्रतिनियुक्ति के प्रत्यावेदन में निर्णय लेने से संबंधित सीधे साधे मामले को अनावश्यक रूप से जटिल बना दिया और आरोप प्रत्यारोप की झड़ी लगा दी'. कोर्ट ने 15 दिसंबर को पारित उस आदेश की भी याद दिलाई, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार को आईएफएस संजीव के मामले में उदारता एवं खुलापन दिखाने का अनुरोध किया था.
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कैट ने यह भी कहा है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी होने के नाते संजीव केंद्र सरकार या उसके अंतर्गत स्वायत्त संस्थान में प्रतिनियुक्ति के लिए योग्य हैं और पब्लिक अथॉरिटी होने के नाते उनके अनुरोध पर निर्णय लेने को केंद्र सरकार बाध्य है. न्यायालय ने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि विचार विमर्श की प्रक्रिया एवं निर्णय की प्रक्रिया हर हाल में आठ सप्ताह में पूरी होनी चाहिए. यदि केंद्र सरकार को लगता है कि इस प्रतिनियुक्ति पर निर्णय लेने को लोकपाल सक्षम है तो इसी अवधि के भीतर संजीव के प्रकरण को लोकपाल के पास भेज दिया जाए.

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