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गणेश चतुर्थी विशेषः विभीषण के डर से इस पहाड़ी पर छिपे थे 'विनायक'

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Published : Aug 23, 2020, 3:35 PM IST

Updated : Aug 23, 2020, 5:49 PM IST

शिव-पार्वती के पुत्र भगवान गणेश के चमत्कारों के बारे में आपने बहुत सी कहानियां पढ़ी होंगी. उनके अलग-अलग रूपों वाले कई मंदिरों के दर्शन किए होंगे, लेकिन आज हम आपको तमिलनाडु के ऐसे गणेश मंदिर की कहानी बताने जा रहे हैं. जो आपने कहीं भी नहीं पढ़ी होगी. आइये जानते हैं गणेश चतुर्थी पर तमिलनाडु के पहाड़ पर स्थित उच्ची पिल्लयार मंदिर की कहानी.

Uchchi Pillaiyar
'उच्ची पिल्लयार मंदिर'

चेन्नई : तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में रॉक फोर्ट पहाड़ी पर भगवान गणेश का उच्ची पिल्लयार मंदिर स्थित है. कावेरी नदी के पास बने इस मंदिर को गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य पर सजाया गया है. हर साल की तरह इस साल भी यहां 100 किलो काजूकतली भोग के लिए तैयार की जा रही है.

इस ग्रेनाइट पर्वत पर कई राजवंसों ने अपनी छाप छोड़ी है, कई दावा करते हैं कि उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया. कुछ शासकों ने अपने राज्य के विस्तार के साथ इस 'उच्ची पिल्लयार मंदिर' को भी अपनी भव्यता में शामिल किया.

तमिलनाडु में गणेश को 'पिल्लैयार' के नाम से जाना जाता है. वैसे तो आपने पूरे देश में कई प्रकार के गणेश मंदिरों के दर्शन किए होंगे, लेंकिन यह मंदिर बेहद लोकप्रिय है क्योंकि यहां देवता का निवास 273 फीट की ऊंचाई पर है. जिसकी वजह से इसे 'उच्ची पिल्लयार' कहा जाता है. यहां पहुंचने के लिए भक्तों को 437 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.

Uchchi Pillaiyar
273 फीट की ऊंचाई स्थित पर स्थित 'उच्ची पिल्लयार मंदिर'

यह न केवल विनायक मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि मध्य में स्तंभों के साथ उत्कृष्ट हॉल और नीचे मणिक विनायक मंदिर, थायुमाना स्वामी (शिव) मंदिर स्थापित है. इसके अलावा पल्लव और पांडिया राजाओं के रॉक फोर्ट मंदिर साथ ही जैनों के शिलालेख भी मौजूद हैं.

माना जाता है कि इस स्थान पर गणेश एक कौए का रूप लेकर कर कोडगु पहाड़ियों पर ऋषि अगस्त्य के पास पहुंचा. जहां वह तपस्या कर रहे थे. कौए ने अपनी प्यास बुझाने के लिए उनके कमंडल का पानी दक्षिण की ओर गिरा दिया. जिसके कारण कावेरी नदी का उदगम हुआ. उसके बाद नदी के प्रवाह की निगरानी रखने के लिए कौआ ग्रेनाइट की पहाड़ियों पर बस गया.

Uchchi Pillaiyar
कावेरी नदी पर निगरानी रखता मंदिर

ज्यादातर पहाड़ी पर स्थित मंदिर पेरुमल (भगवान विष्णु) और मुरुगन (कार्तिकेय) के हैं. यह एक पहाड़ी पर विनायक का एकमात्र मंदिर है. इसके अलावा ग्रेनाइट पर्वत गणेश के आकार से मिलता-जुलता बालासुब्रमण्यम मंदिर है.

पुराणों के अनुसार भगवान शिव, रक्षस थिरिसुरन की तपस्या और भक्ति की सराहना करते हुए सामने आए थे. शिव ने अपने भक्त को अपने तीसरे सिर को काटने और जलाने से रोका था.

एक और मान्यता के अनुसार यहां वायु देव और आदि शेषन के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसे बाद में कैलाश पर्वत पर आयोजित किया गया. जब आदि शेषन ने अपना एक सिर उठाया दो तीन पहाड़ियां टूट गई थीं, जिसका एक हिस्सा आंध्र प्रदेश के कालाहस्ती में, दूसरा तमिलनाडु के त्रिची में और तीसरा श्रीलंका के त्रिंकोमाली में गिर गया. तामिलनाडु में गिरे हिस्सों को कैलाश पर्वत के रूप में पूजा जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विनायक (गणेश) विभीषण के सामने एक बालक के रूप में प्रकट हुए थे. विभीषण राम के राज्याभिषेक के बाद रंगनाथ की मूर्ति लेकर लौट रहे थे. विभीषण मूर्ति लेकर लंका जा रहे थे. देवता नहीं चाहते थे कि विभीषण वह मूर्ति लंका ले जाए. इसके लिए उन्होंने गणेश भगवान से मदद मांगी. मूर्ति को लेकर एक मान्यता थी कि जहां वह रखी जाएगी वहीं स्थापित हो जाएगी. तब चलते-चलते विभीषण तामिलनाडु के त्रिचि पहुंचे. तब उन्हें कावेरी नदी में नहाने का विचार आया. उन्होंने वह मूर्ति संभालने के लिए एक भगवान गणेश के बाल रूप को दे दी और उसे बता दिया कि वह इस मूर्ति को जमीन पर न रखे. विभीषण के जाने पर उसने वह जमीन पर रख दी. उसके बाद वह मूर्ति उसी पर्वत पर स्थापित हो गई. तभी विभीषण ने उस बाल रूपी गणेश का पीछा किया तब गणेश ने ग्रेनाइट की पहाड़ियों पर अपने दर्शन दिए थे. अब भी रंगनाथ देवता की मूर्ति वैराग्य मुद्रा में श्रीलंका की ओर स्थापित है.

यहां तक कि अंजनेय (हनुमान भगवान) का भी इस पर्वत से संबंध है. उनकी तपस्या से संतुष्ट होने पर शिव प्रकट हुए और उनकी मांग पूछी. तब हनुमान ने इस मंदिर का हिस्सा बनना चाहते थे. इस प्रकार थायुमाना स्वामी मंदिर में अंजनेय को शिव की पूजा करते हुए दिखाया गया है.

भूगर्भीय अध्ययन के अनुसार विशाल ग्रेनाइट पर्वत एक अरब साल से ज्यादा पुराना है. चट्टान के चारों ओर किला है, इसलिए इसे रॉक किला कहा जाता है. यह प्राचीन चट्टान त्रिची की पहचान के रूप में अमर हो गई है. शौकिया इतिहासकार और जिला स्टांप वेंजर्स इसोसिएशन के अध्यक्ष विजयकुमार कहते हैं कि यह किला ऐतिहासिक महत्व की कई लड़ाइयों का गवाह रहा है.

इसने मदुरई नायक राजाओं और बीजपुर की सल्तनत, मराठों और अंग्रेजों के भयंकर युद्ध को देखा है. यह द्रविड़ वास्तुकला का एक उदाहरण किला विजयनगर साम्राज्य का एक सुरक्षित मोर्चा था. बाद में कर्नाटक युद्ध के दौरान यह औपनिवेशिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करते हुए, अंग्रेजों के हाथों में चला गया.

किले के भीतर सबसे परानी संरचना पल्लव युग की रॉक-फोर्ट गुणा मंदिर है, जो 580 ई.पू. छठी शताब्दी से संबंधित जैन भिक्षुओं के शिलालेख हैं. 10वीं शताब्दी से यह शाही चोलों के अधीन था. 14वीं शताब्दी ईस्वी में मलिक काफूर के आक्रमण के बाद यह दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया.

फिर विजयनगर साम्राज्य के पतन के समय, मदुरै नायक, साम्राज्य के प्रमुख ने इसे नियंत्रित किया और टैंक, मिश्रित दीवार और अन्य संरचनाओं का निर्माण किया. अंग्रेजों की सहायता से अरकोट नवाब ने अपने भतीजे चंदा साहब और उनके साथ लड़ रहे फ्रांसीसी सैनिकों को हराया. यह दक्षिण भारत में औपनिवेशिक अधिग्रहण का महत्वपूर्ण मोड़ था.

Last Updated :Aug 23, 2020, 5:49 PM IST
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