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पाकिस्तानी बर्बरता की दास्तां कहती कैप्टन सौरव कालिया की शहादत

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Published : Jul 22, 2020, 7:30 PM IST

Updated : Jul 22, 2020, 7:40 PM IST

विंग कमांडर अभिमन्यु के पाकिस्तान के कब्जे में होने वाली बात को पाक ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर लिया था. हालांकि पूर्व में कई ऐसी घटनाई हुई हैं, जब पाक ने भारतीय सैनिकों को कब्जे में लेकर उन्हें बुरी तरह यातनाएं दीं और अंत में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. कुछ ऐसा ही किस्सा कैप्टन सौरभ कालिया का भी है, जिन्हें पाक ने इतनी यातनाएं दीं जिनके बारे में जानकर किसी भी भारतीय का खून खौल उठेगा. जानें पाक की बर्बरता की एक और कहानी...

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पाकिस्तान की बर्बरता का बड़ा उदाहरण

हैदराबाद : पाकिस्तान की बर्बरता का अंदाजा सौरभ कालिया के बारे में जानकर लगाया जा सकता है. 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई में कालिया समेत अन्य पांच सिपाहियों को पाक की बर्बरता का शिकार होना पड़ा था.


कैप्टन सौरभ कालिया के बारे में एक नजर :

कैप्टन सौरभ कालिया पंजाब स्थित अमृतसर के रहने वाले थे और यूपीएससी द्वारा आयोजित कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी के लिए चुने गए थे. 1998 में उनका कमीशन हुआ था.

कारगिल युद्ध शुरू होने से पहले उनकी पहली पोस्टिंग जनवरी 1999 में कारगिल सेक्टर में चौथी बटालियन में हुई थी.

22 साल की छोटी सी उम्र में शहीद हुए वह पहले सैन्य अधिकारी थे.

घटनाएं :

बात 15 मई 1999 की है, जब कैप्टन सौरभ कालिया और पांच अन्य सैनिक लद्दाख के काकसर सेक्टर में बजरंग पोस्ट की नियमित गश्त पर निकले थे.

एलओसी पर भारतीय सीमा के अंदर रहने के बावजूद पाकिस्तानी आर्मी के घुसपैठियों ने उन्हें पकड़ लिया. कालिया को तीन सप्ताह तक बंदी बनाकर रखा गया और बुरी तरह यातनाएं दी गईं.

पाकिस्तान द्वारा की गई बर्बरता के निशान उनके शरीर पर साफ नजर आ रहे थे. नौ जून 1999 को पाक आर्मी ने कालिया का शव भारत को सौंपा था.

पोस्टमार्टम में सामने आई यातना की हद

कालिया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट जब सामने आई, तो पता चला कि किस तरह उन्हें यातनाएं दी गईं. उनके शरीर को सिगरेट से जलाया गया. गर्म छड़ों को कान में डाला गया. उनकी आंखें निकाल दी गईं. उनके ज्यातादर दांत तोड़ दिए गए. होंठ काट दिए गए. नाक भी काट दी गई. इसके अलावा उनके और उनके साथियों के निजी अंग भी काट दिए गए थे. अंत में उन्हें गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी.

न्याय के लिए लड़ रहा एक पिता, लेकिन 21 साल बाद भी नहीं मिला न्याय :

अक्टूबर 1999 में तब सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने कालिया के घर का दौरा किया और अंतरराष्टीय न्यायालय (जीओआई) के साथ इस मुद्दे को उठाने का वादा किया, लेकिन बाद में सेना ने कालिया के पिता से कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे में दो देश शामिल हैं और इसे केवल विदेश मंत्रालय, पीएम कार्यालय या रक्षा मंत्रालय ही उठा सकते हैं.

इसके बाद उन्होंने पीएमओ, एमईए और एमओडी के समक्ष मामला उठाया.

इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग के माध्यम से पाकिस्तान के पीएम के लिए भी लिखा, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.

मानवाधिकार आयोग के पास जाने पर बताया गया कि इस तरह के मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती. जब उन्होंने सशस्त्र बलों के न्यायाधिकरण से संपर्क किया, तो उन्होंने भी टाल दिया.

भारत के राष्ट्रपति के लिए उनकी अपील के छह महीने बाद एक उत्तर मिला कि मामला मॉड में भेज दिया गया है.

इसके बाद उन्होंने 2012 में सर्वोच्च न्यायालय में मामला दायर किया.

सरकार की प्रतिक्रिया

नरेंद्र मोदी सरकार का कहना है कि पाकिस्तान के खिलाफ मामले को आईसीजे में आगे बढ़ाना व्यावहारिक नहीं. केंद्र की यह प्रतिक्रिया तब सामने आई थी, जब कालिया के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की थी.

यूपीए की बात करें, तो उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कहा कि आईसीजे में मामले को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, क्योंकि पाकिस्तान इसकी अनुमति नहीं देगा.

भारत को लगता है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय है और आईसीजे द्वारा द्विपक्षीय या आंतरिक मामले में गैर-हस्तक्षेप होना चाहिए.

वहीं पाकिस्तानी सरकार ने कहा है कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों की मृत्यु बहुत ज्याद खराब मौसम की वजह से हुई और उनके शव एक गड्ढे में मिले थे.

Last Updated : Jul 22, 2020, 7:40 PM IST
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