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दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए धान के खेतों में कमी

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Published : Oct 16, 2020, 11:11 PM IST

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदुषण को कम करने के लिए पंजाब और हरियाणा पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष कम क्षेत्र में धान की खेती की है.

दिल्ली में वायु प्रदूषण
दिल्ली में वायु प्रदूषण

नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने शुक्रवार को बताया कि विभिन्न राज्यों में धान की खेती (गैर बासमती) के लिए कम क्षेत्र का उपयोग किया गया है, जिसके कारण यह उम्मीद की जा रही है कि पराली जलाने में कमी आएगी . उम्मीद जताई जा रही कि इससे दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण में सुधार होगा.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 2020- 21 में गैर-बासमती खेती के लिए 20.76 लाख हेक्टेयर भूमि की खेती की गई है, जबकि 2019-20 में 22.21 लाख हेक्टेयर भूमि इस्तेमाल की गई थी. इसी तरह, हरियाणा में 6.48 लाख हेक्टेयर के बजाय 4.27 लाख हेक्टेयर में खेती की गई है.

एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए, CPCB के सचिव प्रशांत गर्गवा ने कहा, पंजाब और हरियाणा में इस साल गैर-बासमती की खेती कम की गई है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार दिल्ली में प्रदूषण बढ़ाने में पराली का योगदान कम रहेगा.

उन्होंने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के कारण पराली जलाने के योगदान के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि पराली जलाने का योगदान विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें फसल अवशेषों के जलने, हवा की दिशा, हवा की गति शामिल हैं.

उन्होंने बताया कि 15 अक्टूबर को वायु प्रदूषण में इसका छह प्रतिशत योगदान था. पराली जलाने का योगदान 35-40 दिनों तक रहता है.

सीपीसीबी के एक अधिकारी ने आगे कहा कि यह लगभग 15 दिनों तक 15 प्रतिशत योगदान सेअधिक हो जाता है और बाकी समय यह वायु प्रदूषण में 10 फीसदी से कम योगदान देता है.

उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में मौसम की स्थिति सितंबर के बाद से प्रदूषक तत्वों के फैलाव के लिए बेहद प्रतिकूल है, क्योंकि 1 सितंबर और 14 अक्टूबर के बीच की PM10 एकाग्रता पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में अधिक है.

गुरुवार को, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दावा किया था कि पराली जलने का वायु प्रदूषण में केवल 4 फीसदी का ही योगदान है, जिसके कारण उनके और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया.

इस मामले में सीएम केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि अगर पराली जलने से केवल 4 फीसदी प्रदूषण होता है, तो पिछले एक पखवाड़े में अचानक प्रदूषण क्यों बढ़ गया है? इससे पहले हवा साफ थी.

उन्होंने कहा कि हर साल एक ही कहानी है. पिछले कुछ दिनों में प्रदूषण के किसी भी स्थानीय स्रोत में उछाल नहीं आया है.

इस मामले में पूछे जाने पर एक पर्यावरण विशेषज्ञ विमलेंदु झा, जिन्होंने एक्टिविस्ट ग्रुप स्वेचा की स्थापना की, ने ईटीवी भारत को बताया, वायु प्रदूषण पर पराली जलने का प्रभाव प्रत्येक दिन पर निर्भर करता है.

कई मायनों में केंद्रीय मंत्री सही कह रहे थे कि किसी विशेष दिन पर प्रदूषण का भार 5-10 प्रतिशत से होता है और किसी दिन जब पंजाब या हरियाणा से तेज हवा बहती है, तो यह लगभग 30-40 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. यह बात पिछले साल SAFAR के एक अध्ययन के बाद सामने आई.

उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली की हवा प्रदूषित होने का मुख्य कारण पराली जलना नहीं है क्योंकि शहर में कई स्थानीय मुद्दे हैं जो वायु प्रदूषण में लगभग 95 फीसद का योगदान देते हैं. यदि पराली जलना मुख्य समस्या होती तो जनवरी का वायु गुणवत्ता सूचकांक 800-900 नहीं होता. पराली जलाना समस्या को केवल 30 दिनों तक बढ़ा सकता है.

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पर्यावरण मंत्रालय ने प्रमुख वायु प्रदूषण स्रोतों को रोकने के लिए 15 अक्टूबर को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों में निरीक्षण के लिए सीपीसीबी की 50 टीमों को भी तैनात किया है. साथ ही वायु प्रदूषण को रोकने के लिए दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान भी लागू किया गया है.

वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के प्रभाव के बारे में पीछे जाने पर झा ने कहा कि कुछ वर्षों में, परिधीय राजमार्ग, बीएस-VI ईंधन का उपयोग, दिल्ली के भीतर 1-2 थर्मल पावर प्लांटों को बंद करने के कारण हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ है, हालांकि जिस तरह की समस्या का सामना हम कर रहे हैं वह इसकी की तुलना में बहुत कम है.

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