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महिला दिवस विशेष : 'मम्मी मुझे बचा लो' की एक चीख ने महिला को बना दिया 'पाठा की शेरनी'

उत्तर प्रदेश में चित्रकूट के हरिजनपुर में रहने वाली रामलली डाकुओं से लड़कर 'पाठा की शेरनी' कहलाईं. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानिए इनकी कहानी ईटीवी भारत पर.

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सांकेतिक चित्र
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Published : Mar 3, 2020, 1:26 PM IST

चित्रकूट : एक घरेलू कामकाजी, कम पढ़ी-लिखी महिला. समाज के नियमों का पालन करने वाली. एक दिन अचानक वह डकैतों का सामना निहत्थे होकर करती है और पाठा की शेरनी बन जाती है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर चित्रकूट के पाठा में एक छोटा सा गांव हरिजनपुर है. बहुत दिनों तक इस गांव में डकैत ददुआ का राज चलता था, लेकिन एक निहत्थी महिला ने डाकुओं के दांत खट्टे कर दिए थे.

बात 17 मई साल 2001 की है. जब पाठा से डाकुओं ने सतना के बैंक मैनेजर जगन्नाथ तिवारी के 24 वर्षीय बेटे मनीष का अपहरण कर लिया. डाकू युवक को हरिजनपुर लेकर आए. किसी तरह युवक ने खुद को छुड़ाया और भागकर रामलली की टूटी-फूटी झोपड़ी में जा पहुंचा. युवक को घबराया देख रामलली ने उससे उसकी हालत का कारण पूछा. तभी युवक ने रामलली को 'मम्मी मुझे बचा लो' कह कर रोने लगा और पूरी कहानी कह डाली.

जानिए रामलली की कहानी

हंसिया से किया डाकूओं का सामना
युवक की कहानी जानकर रामलली को उस पर दया आ गई. उन्होंने तय किया कि वह दोबारा युवक को डाकुओं को नहीं सौंपेंगी. रामलली ने आस-पास की महिलाओं को मनाया और डाकूओं से लड़ने की ठान ली. 25 से 30 की संख्या में हथियारबंद डाकुओं ने रामलली के घर धावा बोल युवक को वापस करने को कहने लगे. इस पर रामलली को कुछ नहीं सूझा और हंसिया हाथ में लेकर डाकुओं पर दहाड़ते हुए कूद पड़ी. रामलली को डाकुओं से लड़ता देख अन्य महिलाओं ने डाकुओं पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. इस हमले से डाकू वापस बीहड़ में भाग गए.

डाकुओं ने किया पति का अपहरण
रामलली ने पति और गांव की सहयोग से चिट्ठी देकर मानिकपुर थाने पर सूचना भेजी. इस बात की सूचना डाकुओं को लग गई और रास्ते में ही रामलली के पति का अपहरण कर लिया. इस पर भी रामलली नहीं घबराई और अपने इरादे पर अडिग रहीं. ग्रामीणों की मदद से सूचना पुलिस को दी और पुलिस ने युवक को उसके परिजनों से मिलावाया. इसके बाद पुलिस ने कांबिग करते हुए रामलली के पति को डाकुओं की कैद से छुड़ा लिया.

पढ़ें- छत्तीसगढ़ : 'मालवा की मदर टेरेसा' को पद्मश्री से किया जाएगा सम्मानि

कहलाईं पाठा की शेरनी
इस घटना के बाद रामलली की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी. साथ ही उस वक्त अखबार की पहली सुर्खियों में इनका नाम छाया रहा. खबर पूरे प्रदेश में फैल गई. उस वक्त के तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ ने इस सराहनीय कार्य के लिए 6 सितंबर 2001 को रामलली को एक लाइसेंसी बंदूक और उपहार देकर सम्मानित किया. जिला प्रशासन ने इनके साथ-साथ ग्रामीणों को भी बंदूक भेंट की. धीरे-धीरे रामलली को बीहड़ के पाठा वासियों ने शेरनी उपनाम दे दिया और आज रामलली के घर के मुख्य दरवाजे पर 'पाठा की शेरनी' नाम खुदा हुआ है.

राज्यपाल कर चुके हैं सम्मानित
उत्तर प्रदेश सरकार ने रामलली की इस बहादुरी के लिए तत्कालीन राज्यपाल ने 8 मार्च 2002 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर निमंत्रण देकर राजभवन बुलाया. यहां राज्यपाल ने रामलली को बहादुरी के सम्मान से सम्मानित किया. रामलली आज अधेड़ हो चुकी हैं पर आज भी उनके अंदर वही जज्बा वही हिम्मत बरकरार है. गांव की महिलाओं की प्रेरणा स्रोत पाठा की शेरनी बनने की ललक आज भी इस गांव और आसपास के गांव की बच्चियों में साफ देखी जा सकती है.

ये है इनका परिवार
रामलली हरिजनपुर की रहने वाली हैं और इनका विवाह भी हरिजनपुर में ही हो गया. डाकुओं के खौफ के साए में इनका बचपन गुजरा. सामान्य महिला की जिन्दगी जी रही हैं. इनके परिवार में पति दो बच्चे, जिनमें एक लड़का दिव्यांग है और एक बेटी है.

चित्रकूट : एक घरेलू कामकाजी, कम पढ़ी-लिखी महिला. समाज के नियमों का पालन करने वाली. एक दिन अचानक वह डकैतों का सामना निहत्थे होकर करती है और पाठा की शेरनी बन जाती है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर चित्रकूट के पाठा में एक छोटा सा गांव हरिजनपुर है. बहुत दिनों तक इस गांव में डकैत ददुआ का राज चलता था, लेकिन एक निहत्थी महिला ने डाकुओं के दांत खट्टे कर दिए थे.

बात 17 मई साल 2001 की है. जब पाठा से डाकुओं ने सतना के बैंक मैनेजर जगन्नाथ तिवारी के 24 वर्षीय बेटे मनीष का अपहरण कर लिया. डाकू युवक को हरिजनपुर लेकर आए. किसी तरह युवक ने खुद को छुड़ाया और भागकर रामलली की टूटी-फूटी झोपड़ी में जा पहुंचा. युवक को घबराया देख रामलली ने उससे उसकी हालत का कारण पूछा. तभी युवक ने रामलली को 'मम्मी मुझे बचा लो' कह कर रोने लगा और पूरी कहानी कह डाली.

जानिए रामलली की कहानी

हंसिया से किया डाकूओं का सामना
युवक की कहानी जानकर रामलली को उस पर दया आ गई. उन्होंने तय किया कि वह दोबारा युवक को डाकुओं को नहीं सौंपेंगी. रामलली ने आस-पास की महिलाओं को मनाया और डाकूओं से लड़ने की ठान ली. 25 से 30 की संख्या में हथियारबंद डाकुओं ने रामलली के घर धावा बोल युवक को वापस करने को कहने लगे. इस पर रामलली को कुछ नहीं सूझा और हंसिया हाथ में लेकर डाकुओं पर दहाड़ते हुए कूद पड़ी. रामलली को डाकुओं से लड़ता देख अन्य महिलाओं ने डाकुओं पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. इस हमले से डाकू वापस बीहड़ में भाग गए.

डाकुओं ने किया पति का अपहरण
रामलली ने पति और गांव की सहयोग से चिट्ठी देकर मानिकपुर थाने पर सूचना भेजी. इस बात की सूचना डाकुओं को लग गई और रास्ते में ही रामलली के पति का अपहरण कर लिया. इस पर भी रामलली नहीं घबराई और अपने इरादे पर अडिग रहीं. ग्रामीणों की मदद से सूचना पुलिस को दी और पुलिस ने युवक को उसके परिजनों से मिलावाया. इसके बाद पुलिस ने कांबिग करते हुए रामलली के पति को डाकुओं की कैद से छुड़ा लिया.

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कहलाईं पाठा की शेरनी
इस घटना के बाद रामलली की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी. साथ ही उस वक्त अखबार की पहली सुर्खियों में इनका नाम छाया रहा. खबर पूरे प्रदेश में फैल गई. उस वक्त के तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ ने इस सराहनीय कार्य के लिए 6 सितंबर 2001 को रामलली को एक लाइसेंसी बंदूक और उपहार देकर सम्मानित किया. जिला प्रशासन ने इनके साथ-साथ ग्रामीणों को भी बंदूक भेंट की. धीरे-धीरे रामलली को बीहड़ के पाठा वासियों ने शेरनी उपनाम दे दिया और आज रामलली के घर के मुख्य दरवाजे पर 'पाठा की शेरनी' नाम खुदा हुआ है.

राज्यपाल कर चुके हैं सम्मानित
उत्तर प्रदेश सरकार ने रामलली की इस बहादुरी के लिए तत्कालीन राज्यपाल ने 8 मार्च 2002 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर निमंत्रण देकर राजभवन बुलाया. यहां राज्यपाल ने रामलली को बहादुरी के सम्मान से सम्मानित किया. रामलली आज अधेड़ हो चुकी हैं पर आज भी उनके अंदर वही जज्बा वही हिम्मत बरकरार है. गांव की महिलाओं की प्रेरणा स्रोत पाठा की शेरनी बनने की ललक आज भी इस गांव और आसपास के गांव की बच्चियों में साफ देखी जा सकती है.

ये है इनका परिवार
रामलली हरिजनपुर की रहने वाली हैं और इनका विवाह भी हरिजनपुर में ही हो गया. डाकुओं के खौफ के साए में इनका बचपन गुजरा. सामान्य महिला की जिन्दगी जी रही हैं. इनके परिवार में पति दो बच्चे, जिनमें एक लड़का दिव्यांग है और एक बेटी है.

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