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जानें भाजपा की राजनीति पर राम जन्मभूमि आंदोलन का असर

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Published : Aug 2, 2020, 3:13 PM IST

Updated : Aug 2, 2020, 8:28 PM IST

-janmabhoomi movement impact
राम जन्म भूमि आंदोलन

उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने हाथों भगवान राम की जन्मस्थली पर राम मंदिर की आधारशिला रख इतिहास रचेंगे. इस आंदोलन के पीछे भारतीय जनता पार्टी का पूरा इतिहास छिपा है. आइए जानते हैं राम जन्मभूमि आंदोलन में भाजपा ने क्या भूमिका निभाई थी. कैसे इस आंदोलन की शुरुआत हुई और कैसे यह अंजाम तक पहुंचा. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

हैदराबाद : वह 80 के दशक की शुरुआता थी, जब विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के कार्यकर्ताओं सहित हिंदुओं ने राम मंदिर बनाने को लेकर आंदोलन आरंभ किया. यही समय था जब मंदिर निर्माण के लिए समिति का गठन किया गया था. 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य लोगों ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) स्थापना की थी. इस पार्टी ने उदारवादी रणनीति अपनाई, लेकिन 1984 के चुनाव में कोई असर नहीं डाल पाई, जिसके बाद पार्टी की विचारधारा में बदलाव आया.


भाजपा का मंदिर तोड़ने का आरोप
1984 में लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और यह उनके नेतृत्व में पार्टी राम मंदिर आंदोलन के लिए एक राजनीतिक आवाज बन गई. इसके बाद भाजपा ने एक आक्रामक देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए आरोप लगाया कि मस्जिद के निर्माण के लिए राम मंदिर को तोड़ा गया था.

आंदोलन बना भाजपा के चुनाव अभियान का हिस्सा
इस आंदोलन के कारण बीजेपी को अप्रत्यासित जन समर्थन प्राप्ता हुआ. आंदोलन को भाजपा के चुनाव अभियान का हिस्सा बनाया गया और इसने 1989 में 85 लोकसभा सीटें जीतीं.

शाह बानो मामला
1986 में शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार के फैसले ने हिंदुओं के बीच अपने ताने-बाने को भारी नुकसान पहुंचाया. इसी समय भाजपा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और हवा दी. कांग्रेस के इस कदम को अपने पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने वाला माना गया.

बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने की अनुमति
हिंदुओं का विश्वास पुनः जीतने के लिए 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने उत्तर प्रदेश के सीएम बीर बहादुर सिंह को बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने के लिए कहा, ताकि हिंदू तीर्थयात्रियों को भगवान राम की पूजा करने की अनुमति दी जा सके.

'राम राज्य' बनाने का वादा
1989 में नौवीं लोकसभा के गठन के लिए आम चुनाव हुए थे. तब राजीव गांधी ने फैजाबाद से अपना अभियान शुरू किया था, जिसमें राजीव ने 'राम राज्य' बनाने का वादा किया था.

रथ यात्रा : एलके आडवाणी ने बदला बीजेपी का भविष्य

  • लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ पर 10,000 किलोमीटर लंबी यात्रा निकाली. प्रमोद महाजन की भी इस यात्रा में महती भूमिका थी, जिसके बाद वह भीजेपी के लिए उभरता हुआ सितारा बन गए. इस मिशन का उद्देश्य अयोध्या में एक भव्य मंदिर के निर्माण में सहायता के लिए एक जन संपर्क कार्यक्रम करना था.
  • तय किया गया था कि आडवाणी की यात्रा प्रतीकात्मक होगी.
  • सितंबर 1990 में भाजपा अध्यक्ष एल.के. आडवाणी ने अयोध्या आंदोलन के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए पदयात्रा करने का फैसला किया. यह 1989 के चुनावों के दौरान भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा था. प्रमोद महाजन ने आडवाणी पर धीरे काम करने पर उंगली उठाईल जिसके बाद यह यात्रा जीप से करने का फैसला किया गया.
  • महाजन ने आडवानी को सुझाव दिया कि वह एक मिनी बस लें और इसे रथ के रूप में फिर से डिजाइन करें. यही वजह है कि आडवाणी ने अपनी पहली टोयोटा रथ यात्रा शुरू की. दो साल बाद बाबरी मस्जिद के विध्वंस के परिणामस्वरूप होने वाली घटनाओं की एक श्रृंखला को उत्प्रेरित किया.
  • उन्होंने गुजरात के सोमनाथ से इस यात्रा की शुरुआत की और मध्य भारत के रास्ते अयोध्या गए. इस रथ के विचार ने एक महान जुटावक के रूप में काम किया.
  • इसके बाद हिंदुत्व समर्थकों ने मंदिर की घंटियां बजाईं, थालियों को पीटा और रथ का स्वागत करने के लिए नारे लगाए. कुछ ने रथ पर तिलक लगाया और उसके पहिए से धूल को अपने माथे पर लगाया.
  • 1989 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को 85 सीट मिली थीं, जो भगवा राजनीति के कारण 1991 के आम चुनाव में बढ़कर 120 हो गईं.

पढ़ें - राम मंदिर : 40 दिनों में 50 साल का सफर

कैसे हुआ रथ यात्रा का समापन

  • 18 अक्टूबर 1990 को रथयात्रा के स्वैच्छिक कार्य समाप्त होने के कुछ ही दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर में भाजपा नेता एलके आडवाणी को गिरफ्तार करवाया था.
  • उस समय लालू जनता दल का हिस्सा थे, जो केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का हिस्सा थी.
  • उनके आदेशों पर आडवाणी को एक हफ्ते के लिए अज्ञात स्थान पर रखा गया, ताकि आंदोलन को विफल किया जा सके.
  • भाजपा ने केंद्र से समर्थन वापस ले लिया.
  • इस दौरान देश राजनीतिक रूप से अस्थिर और सांप्रदायिक रूप से विभाजित हो गया था.
  • अगले दो वर्ष तक भाजपा विपक्ष में रही, जबकि आरएसएस और उससे जुड़े लोग जैसे विश्व हिंदू परिषद राम मंदिर आंदोलन को गति देने में लगे रहे.
  • आडवाणी ने कई कार्यक्रमों में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप न केवल दो साल बाद बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, बल्कि देश की राजनीति को फिर से परिभाषित किया.
Last Updated :Aug 2, 2020, 8:28 PM IST
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