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राज्यों के द्वारा श्रम कानून में बदलाव, विरोध शुरू

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Published : May 9, 2020, 7:19 PM IST

Updated : May 9, 2020, 9:43 PM IST

कोरोना संकट और लॉकडाउन से हुए घाटे की भरपाई के लिए देश के कई राज्यों ने अब अलग-अलग उपाय करना शुरू कर दिया है. वहीं उद्योग जगत को सुविधा देने और निवेश को आकर्षित करने के लिए कुछ राज्यों ने श्रम कानून में बदलाव करने शुरू कर दिए हैं. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

संतोष गंगवार (फाइल फोटो)
संतोष गंगवार (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : कोरोना संकट और लॉकडाउन से हुए घाटे की भरपाई के लिए लिए देश के कई राज्यों ने अब अलग-अलग उपाय शुरू कर दिए हैं. वहीं उद्योग जगत को सुविधा देने और निवेश को आकर्षित करने के लिए कुछ राज्यों ने श्रम कानून में बदलाव करने शुरू कर दिये हैं. भाजपा साशित राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल और गुजरात में लेबर लॉ में बदलाव की तैयारी है तो गैर भाजपा राज्यों में पंजाब,महाराष्ट्र, केरल और राजस्थान जैसे राज्यों के नाम सामने आ रहे हैं.

इनमें से दो प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने बड़े बदलावों की घोषणा कर दी है. उत्तर प्रदेश ने जहां तीन कानूनों के अलावा अगले तीन साल तक सभी पुराने कानून निरस्त कर दिए हैं. वहीं मध्य प्रदेश ने भी एक हजार दिन के लिए लेबर लॉ को सस्पेंड करने का निर्णय लिया है. अन्य राज्यों ने भी मजदूर कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जिनमें काम करने के समय को आठ घंटे से बढ़ा कर 12 घंटे प्रतिदिन करने का निर्णय भी शामिल है.

ऐसे में देशभर के मजदूर संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. आरएसएस की मजदूर इकाई ने मजदूर कानून में छेड़छाड़ पर कड़ा विरोध व्यक्त करते हुए आंदोलन करने की बात भी कह दी है.

गौरतलब है कि भारतीय मजदूर संघ ने गुरुवार को केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार के साथ मजदूर संगठनों की बैठक में भी इसका विरोध किया था और शुक्रवार को प्रवासी मजदूरों के विषय में मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीके सजी नारायण और महासचिव विर्जेश उपाध्याय ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन भी सौंपा था.

राज्यों के बीच जहां उद्योग और निवेश को आकर्षित करने की होड़ लगी है. वहीं देशभर के मजदूर संगठन लेबर लॉ में किसी भी तरह के बदलाव का विरोध कर रहे हैं.

देश के सात राजनीतिक दलों ने शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस पर चिंता व्यक्त की है और राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की मांग की है. सात राजनीतिक दलों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI), आरएसपी, राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई (एमएल), एआईएफबी और वीसीके शमील हैं. इन सभी राजनीतिक दल के नेताओं ने राष्ट्रपति कोविंद को लिखे पत्र में राज्यों द्वारा मजदूर कानून को निरस्त किए जाने को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि कोरोना महामारी से लड़ाई के नाम पर सरकार लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का प्रयास कर रही हैं.

वहीं राज्यों की तरफ से बात करने वाले बताते हैं कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से राजस्व में गिरावट आई है और उद्योग ठप्प पड़ने से आगे भी राज्यों के सामने बड़ी चुनौती है. ऐसे में सभी राज्य चाहेंगे कि उनके यहां ज्यादा से ज्यादा निवेश बढ़े और इसके लिए उन्हें उद्योग को सहुलियत देनी पड़ेगी.

हालांकि बदलाव का विरोध कर रहे दल और संगठन कहते हैं कि मजदूरों के अधिकार की कीमत पर सरकारें अपना मतलब पूरा करना चाहती हैं.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ने उत्तर प्रदेश सरकर द्वारा तीन साल तक सभी श्रम कानून निरस्त किए जाने पर ट्वीट किया कि जल्द ही सभी भाजपा शासित राज्य मजदूर कानून को निरस्त कर देंगी और फिर केंद्र सरकार इसको महामारी से लड़ाई के नाम पर पूरे देश पर थोप देगी. मोदी 'वेल्थ क्रियेटर' को सम्मान देने की बात करते हैं, लेकिन साथ ही 'वेल्यू क्रियेटर' को नष्ट कर रहे हैं.

मजदूर कानून को निरस्त या उसके साथ राज्यों द्वारा छेड़-छाड़ के विरोध में वाम दल, अन्य मजदूर यूनियन और यहां तक की आरएसएस समर्थित भरतीय मजदूर संघ भी एक सुर में बोलते दिख रहे हैं.

जहां बाकी राज्यों ने मजदूर कानून में आंशिक बदलाव की बात की है, वहीं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने इन्हें लगभग पूर्णतः निरस्त करने की बात की है. ऐसा बताया जा रहा है कि बाकी भाजपा शासित राज्य भी आने वाले समय में इस तरह की घोषणा कर सकते हैं.

ऐसे में देखना होगा की क्या सभी मजदूर संगठन एक मंच से इस बदलाव का विरोध कर इसे कहां तक रोक पाते हैं.

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Last Updated : May 9, 2020, 9:43 PM IST
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